सोमवार, फ़रवरी 28

पहाड़िन के हाथ मंजीरें, रोशन के हाथ घुंघरु

सर्जना शर्मा

पिछली पोस्ट में मैनें पंडवानी गायिका प्रभादेवी से आपको मिलवाया था, आज मिलिए हिमाचल प्रदेश की गद्दी जनजाति की मौसादा दायिका कंचन से।

प्रभादेवी और कंचन के संघर्ष और जीवन की परिस्थितियों में बहुत अंतर है . लेकिन दोनों हैं बेहतरीन लोक कलाकार। कंचन अपने पति रोशन के साथ दिल्ली आयी थी इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के निमंत्रण पर  इंदिरा गांधी राष्टीय कला केंद्र ने जीवंत परंपरा में महाभारत पर हुए जय उत्सव में  दोनों  को बुलाया था । रोशन हिमाचल प्रदेश की गद्दी जनजाति का युवक है .और भरमौर क्षेत्र के चंबा जिले से दिल्ली आया था । मौसादा गायन उसका पुश्तैनी पेशा है।मौसादा यानि महाभाररत , रामायण , कृष्ण लीला शिव लीला और विष्णु भगवान का गुण गान।  उसने अपने पिता और दादा से गाना सीखा । लेकिन कंचन ऐसे परिवार से आती है जिसका गायन से दूर दूर तक का भी रिश्ता नहीं था।

कंचन बीस साल की थी जब उसकी रोशन से शादी हुई । कंचन सही मायने में रोशन की सहचरी और अर्धांगिनी है। दोनों की जोड़ी देखने में भगवान विष्णु और लक्ष्मी की जोड़ी जैसी लगती है । कंचन अति गौरवर्णा और सुंदर है। तीखे नैन नक्श, पहाड़िनों जैसी ही  पतली दुबली। दोनों की जोड़ी जय उत्सव में बहुत हिट रही . दोनों अपनी पांरपरिक पोशाक पहनते । कंचन  छींट का कलीदार घाघरा पहने हुए थी जिसे ये घघरू कहते हैं और पूरी बांहों की कुर्ती जिसे ये लुहांचड़ी कहते हैं भारीभरकम घाघरे को टिकाने के लिए बकरी के बालों की बनी काली रस्सी यानि गागी लपेटे रहती थी । और सुंदर गोटेदार सलमें सितारे वाली बड़ी सी ओढ़नी । एक तो रूप इतना और उपर से गद्दी डिज़ाइन के गहने माथे पर टीका (मान टीका ) नाक में बड़ी सी गोल चंद्रमा के आकार की जड़ाऊं नथ ( बालु ) और गले में  चंद्रहार । रोशन सफेद रंग की सुत्थन (पायजामा नुमा  ) के उपर घेरगार चोगा पहनता है और लिर बहुत प्यारी टोपी जिसमें मोर पंख और फुंदने लगे रहते हैं । सीधेसादे ये गद्दी मूलरूप से भगवान शिव के भक्त हैं । लेकिन इन्हें पूरी महाभारत और रामायण ज़ुबानी याद है । और भगवान विष्णु और लक्ष्मी की आराधना भी । हिमाचल प्रदेश में मौसादा गायक को गुराई और गायिका गुराइन कहते हैं ।
             
कंचन जब पूरी तरह सजी धजी होती है तो साक्षात देवी लगती है । मानो किसी कलाकार ने एक मूर्ति गढ़ दी हो । कंचन का स्वर रोशन से भी ज्यादा मधुर है और रोशन जहां भूल जाता है  वहीं से कंचन सुर पकड़ लेती है।

कंचन तुम्हारे परिवार में तो गायन की कोई परंपरा नहीं फिर तुम कैसे इतना अच्छा  गाने लगी हो ?

" शादी हो कर आयी तो परिवार की परंपरा को निभाना ज़रूरी था क्योंकि  मेरी सास भी मेरे ससुर के साथ गाने जाती है  । शुरू में तो गांव गांव जा कर गाने में शर्म आती थी लेकिन इनके साथ जा जाकर गाना सीखा इन्हें ध्यान से सुनती और अब तो मैं इनकी भी गलतियां सुधार देती हूं " ।

कंचन अपने पति की छाया बन कर चलती है दोनों के बीच एक मधुर रिश्ता है । दोनों को देख कर उनके बीच के मूक मधुर संवाद को देख कर कोई भी उनके रिश्ते की मिठास का अहसास कर सकता है । दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं । दोनों एक दूसरे के पूरक हैं । रोशन कहता है वैसे तो मैं अकेले गा सकता हूं लेकिन अब कंचन के बिना मज़ा नहीं आता । रोशन वायलियननुमा एक छोटा रूबाना बजाता है और दूसरे हाथ में खंजड़ी रखता है । दांए हाथ से रूबाना बजाता है और बांए हाथ में घुंघरू  बांध कर खंजड़ी बजाता है । और कंचन के हाथ में रहते हैं कांसी के मंजीरे । और तीन वाद्य यंत्रों के साथ ये अपने मधुर स्वर में पुराणों और महाकाव्यों को अपनी भाषा में लोक शैली  में गाते हैं ।

गद्दी जनजाति भरमौर इलाके में रहती हैं पहले ये बंजारों जैसा जीवन जीते थे पशु पालन करते थे लेकिन अब रोशन का परिवार बंजारा जीवन नहीं जीता . उनका अपना बड़ा सा घर और खेती बाड़ी की ज़मीन है । बकरी और गाएं पाल रखी हैं । गद्दियों में भी चार वर्ण है । रोशन और कंचन बताते हैं वो ब्राह्मण हैं और उनके पुरखे सदियों से ऐसे ही भगवान का गुणगान करते आ रहे हैं । दोनों दसवीं तक पढ़े हैं और उनके तीनों बच्चे भी पढ़ रहे हैं ।

रोशन के परिवार  का पूरे इलाके में बहुत मान सम्मान है । उन्हें जागरण के लिए बुलाया जाता है , चौकी के लिए बुलाया जाता है ।  मंदिरों में व्रत उत्सवों पर ये गाते हैं । अब तो सरकार भी इन्हें लोक गायन के लिए बुलाती है । और दिल्ली के जय उत्सव में इन्हें गाने का अवसर मिला तो ये   अपना सौभाग्यशाली मानते हैं।

इन्होने जय उत्सव में जो महाभारत गायी उसका एक छोटा सा अंश-

कौरवों का दरबार लगा है पांडवों से कैसे निपटा जाए इस पर विचार चल रहा है

--- हस्तिनापुर रंहदे पांडव राजे --- बो हां
 
मेरा मालक जाणे---- बाजो ले हां जी

भद्रपुरी रहंदे राजा दुर्योधना--- बो हां जी हां

      ना मुके पांडव ना मुके कौरवां ओ  हां जी हां
      ना चुक्के रोज़ां के हो झगड़े हां जी

      मेरा मालक जाणे बाजो ले हांजी
       इंद्रप्रस्थ तांइए थी लड़ाई बो हांजी
       लड़ाई बो हां मेरा मालक    जाणे बो हांजी हां
       सुण सुण ओ मेरे राजा दुर्योधना --हां
       हो दुर्योधना हो हां जी हां हां --- हो
       तां के बोला मेरा राजा दुर्योधना हां जी
         दुर्योधना हां मेरा मालक जाणे दुर्योधनमा हां जी
  दुर्योधन कहता है -------------       
          
             इन्हा पांडवां नहीं मरणा मेरे भगवाना हो जी
            मेरा मालक जाणे बाजो ले हांजी
            मेरी छाती ना गम हटणा वो हांजी
         मामा शकुनि गल्ल गलानां----- बो हांजी ( मामा शकुनि कहते हैं )
         डर मत करे  मेरे भांजे राजा दुर्योधना--- हां जी
          अब नहीं रहणा पांडवां दुर्य़ोधना---- हां जी ओ हां जी
         
    कौरवों की सभा में धृतराष्ट्र , द्रोणाचार्य , कृपाचार्य भीष्म पितामह सब बैठे हुए हैं सब दुर्योधन को सलाह देते हैं ----
            सुण सुण मेरे राजा दुर्य़ोधना हां जी
            सुण लेणी बात हमारी रामा हो जी ---हां -- हां
           कृष्ण राजा के रे पास चली जाइयो दुर्योधना हो जी -- हां
                    मेरा मालक जाणे बाजो ले हां जी -- हां -----

          दुर्योधन भगवान कृष्ण के पास जाता है । भगवान कृष्ण कहते हैं ---

         ता के बोलदे मेरे कृष्ण भगवाना महाराज जी हां -------
        सुण सुण मेरे राजा दुर्योधना हो जी हां ---
          सुण सुण हो मेरे राजा अरजुना जी हां हां ----
          ग्वालु केरी खेल नहीं होणी बो हां जी हां
          मेरा मालक जाणे बाजो ले हां जी -- हां -----
          ऐ ता होणा महाभारता  रामा महाभारता---- जी हां

         सतक्षुणी सेना अर्जुना जो करी बक्शंत हो मेरे मालका जी हां हां ---

        ग्यारह क्षुणी सेना जो करी बक्शंत हो मेरे मालका हो -----
         ए ता होणा महाभारता जी हो  हां हां ।
        कुरूक्षेत्रा रामा पुज्जी कीणा जांदे बो हां जी ----
          मेरा मालक जाणे बाजो ले हां जी -- हां -----

           दोनों सेना कट्ठी लग्गी होण हां जी -- हां
           ए ता होणा महाभारता जी हो -- हां हां जी -- हां
            हर तरह के बाजे बजूरे लगे बजण हो हां जी हां 
                मेरा मालक जाणे बाजो ले हां जी -- हां -----

              वैसे तो इसका अर्थ लगाना मुश्किल नहीं है लेकिन पंजाबी भाषा ना समझने वालों के लिए सरल अर्थ -----

             हस्तिनापुर  में पांडव राजा रहते थे
             मेरा मालिक मेरा भगवान जानता है
            भद्रपुरी में राजा दुर्योधन रहता था
             उनके रोज़ के लड़ाई झगड़े खत्म नहीं हो रहे थे 
                 उनके रोज़ के झगड़े बढ़ते ही जा रहे थे
              इंद्रप्रस्थ को लेकर लड़ाई थी
              कौरवों की सभा  लगी है
                दुर्योधना कहता है
               ये पांडव मर क्यों नहीं
              जब तक ये नहीं मरेंगें तब तक मेरी छाती का गम नहीं मिटेगा .
                  मामा शकुनि अपने भांजे दुर्योधन से कहते हैं मेरे भांजे तू डर मत
                   अब पांडव नहीं रहेंगें
                   कौरवों के दरबार में बैठे भीष्म पितामह , कृपाचार्य , द्रोणाचार्य दुर्योधन को सलाह देते हैं
              कि तुम जा कर भगवान कृष्ण से मिलो
                 दुर्य़ोधन भगवान कृष्ण से मिलने जाता है और युद्ध के लिए मदद मांगता है
                 भगवान कृष्ण कहते हैं सुम नेरे राजा दुर्योधन ये कोई ग्वालों का खेल नहीं है
                 अब तो महाभारत होगा , संग्राम होगा
                  भगवान कृष्ण ने दुर्योधन को ग्यारह अक्षुणी सेना दी और
                  अर्जुन को शतक्षुणी सेना दी और कहा
                   अपनी अपनी सेनाएं लेकर अब तुम दोनों कुरूक्षेत्र के मैदान में पहुंच जाओ
                    कुरूक्षेत्र के मैदान में कौरवों पांडवों की सेनाएं एकत्र होने लगीं
                    रणभेरी बजने लगी तरह तरह के वाद्य बजने लगे
                            
         ये गद्दी महाभारत  की एक छोटी सी झलक है महाभारत महीनों तो क्या पूरे साल भर गायी जा सकती है ।

सोमवार, फ़रवरी 21

छत्तीसगढ़ का गौरव पंडवानी गायिका प्रभादेवी...सर्जना शर्मा

"मैं इतनी उड़ान भरुं , इतनी ऊंची उडूं , इतनी ऊंची उडूं कि तीजन दीदी के बराबर पहुंच जाऊं , बस मेरे छतीसगढ़ का नाम हो , मेरे मां बाप का नाम हो , मेरे गुरूदेव का नाम हो मेरे देश का नाम हो " वो  बोलती जा रही थीं और उनकी  आंखों में सितारे चमक रहे थे , उनके सांवले सलोने चेहरे पर ऐसा मधुर भाव  आ रहा था जिसे मैं शब्द ही नहीं दे पा रही हूं  । बस उनका  वो हसरतों से भरा चेहरा बार बार मेरे सामने आ रहा है । दिल्ली के इंदिरा गांधी कला केंद्र में वो मेरे सामने बैठी थी गहरे हरे रंग की ठेठ छतीसगढ़ी साड़ी , मांग में ढ़ेर सारा सिंदूर माथे पर बड़ी सी बिंदी , गले में, बाजुओं में हाथों में चांदी के परंपरागत गहने और कमर में चांदी की मोटी सी सुंदर तगड़ी । पतली दुबली सी ये महिला छतीसगढ़ की पंडवानी गायिका है प्रभादेवी । इंदिरा गांधी कला केंद्र में चल रहे जय उत्सव -- जीवंत परंपरा में महाभारत , में वो अपने इलाके की महाभारत कथा सुनाने आयी हुई है । उनकी नवरस भरी पंडवानी तो मैं कईं दिन से सुन रही थी लेकिन जब पहली बार बात की तो एक ऐसी प्रभादेवी से परिचय हुआ जो एक प्रतिभाशाली कलाकार होने के साथ  साथ एक बेहतरीन इंसान भी हैं और अपने दम पर ऊंची उड़ान भरने की हिम्मत रखती हैं  । तीजन बाई ने पंडवानी में खूब नाम कमाया सम्मान पाए , देश विदेश में घूमी । प्रभादेवी के लिए तीजन बाई रोल मॉडल हैं उनके लिए मन में वो बहुत सम्मान रखती हैं । और उसी ऊंचाई को छूना  चाहती हैं जहां तीजन बाई पहुंची।

 प्रभा ने पंडवानी गायन कैसे शुरू किया मैनें सवाल किया तो वो अपने अतीत में चली गयीं उनके पिता राम सिंह यादव भी उनके साथ बैठे हुए थे । प्रभा ने बताया उनके गांव में एक बार एक पंडवानी  गायिका आई  उस समय वो तीसरी क्लास में पढ़ती थी । और उसी दिन तय कर लिया कि बस वो भी पंडवानी गायिका ही बनेगीं । और महाभारत के कुछ प्रसंग ले कर जब तब  गाना  शुरू कर दिया । गांव के बड़े बूढ़ों ने सुना तो उन्हें लगा लड़की में दम है इसे पंडवानी की शिक्षा मिलनी चाहिए। गुरू की खोज  शुरू कर दी गयी । और आखिर में गांव के लोगों ने गुरू खोज दी दिया- उनके गांव चंदखूरी फार्म से दूर बासिन गांव के झाडूराम देवांगन । और अपने माता पिता की इकलौती संतान प्रभा छोटी सी उम्र में घर छोड़ कर गुरू की शऱण में चली गयीं । माता पिता तो बिल्कुल नहीं चाहते थे कि छोटी सी सुकुमार बेटी आंखों से दूर हो जाए । लेकिन बच्ची ने ठान लिया था कि वो पंडवानी गायिका बन कर ही रहेगी । गुरू देवांगन को पूरी महाभारत जुबानी याद थी, अनेक सम्मानों ,पुरस्कारों से सम्मानित थे । अब जहां कहीं गुरू जी पंडवानी गाने जाते प्रभा भी साथ साथ जातीं और ध्यान से सुनतीं कि गुरू जी क्या और कैसे गा रहे हैं । अकेले में वैसे ही गाने की प्रैक्टिस करतीं ।

गुरू जी के बेटे कुंजबिहारी ने उन्हें सबल सिंह चौहान द्वारा लिखी महाभारत दी । उसमें पूरी महाभारत दोहों और चौपाइयों में है । चौपाइंया याद करनी शुरू की । हारमोनियम तबला बजाना सीखा । अब गुरू जी ने देखा कि प्रभा सीख  रही है तो उन्होने अपने साथ मंच देना शुरू किया । गुरू जी गा लेते तो छोटी सी बच्ची की बारी आती दस पंद्रह मिनट वो भी गातीं सुनने वाले दंग रह जाते इतनी छोटी सी बच्ची और इतनी प्रतिभा । देखते देखते छतीसगढ़ की महाभारत उन्हें जुबानी याद हो गयी । और गुरू ने सोने को आग में तपा कर कुंदन बना दिया। अब वो पंडवानी गाने जाती है राज्य सरकार से बहुत सहायता मिलती है । प्रभा देवी अपनी कहानी सुना रही थी और उनके पिता की आंखों से झर झर आंसू बह रहे थे । उन्हें वो दिन याद रहे थे जब उनकी छोटी सी बेटी पंडवानी के लिए उन्हें छोड़ कर चली गयी थी । लेकिन अब वो खुश भी हैं कि उनकी बेटी नाम कमा रही है ।

जय उत्सव में प्रभा देवी की पंडवानी सुनना एक सुखद अनुभव रहा . अपनी मंडली के साथ वो गाती हैं एकतारा और खड़ताल स्वयं बजाती है । पल में महान योद्धा अर्जुन बनती है तो दूसरे ही पल अर्जुन की सखा कृष्ण ।  मधुर लेकिन बुलंद स्वर । पंडवानी में केवल गायन और वादन ही काफी  नहीं है अभिनय भी महत्वपूर्ण है । प्रभादेवी जिसका किरदार निभाती हैं वैसी ही हो जाती हैं । किरदार में पूरी तरह डूब जाती हैं । उन्हें देख कर लगता है वो गा नहीं रही हैं बल्कि आनंद  के सागर में गोते लगा रही हैं । एक गोता लगाती है और बाहर आती है । वो स्वयं बताती हैं कि जब अर्जुन के संवाद गाती है तो उन्हें लगता है अर्जुन धनुष बाण लिए हुए उनकी तरफ आ रहे हैं और जब कृष्ण के संवाद गा रही होती हैं तो लगता है सुदर्शन चक्र लिए पीतांबर धारी बढ़े चले आ रहे हैं । यही है अपने काम में आकंठ डूब जाने का प्रमाण महाभारत को पल पल जीने का प्रमाण ।
 महाभारत में सबसे अच्छा क्या लगता है ?  ऐसा कौन सा प्रसंग है जो आपको बहुत प्रिय है ?  प्रभा ने कहा द्रोपदी का स्वयंवर और सुभद्रा का भगवान कृष्ण से विवाह .।और प्रभा ने ये भी बताया कि क्यों . प्रभा कहती है इसमें श्रृंगार रस है और इसे महिलाएं भी समझती हैं औऱ जब मेरी महिला श्रोता झूम उठती हैं तो मुझे भी आनंद आता है ।

छतीसगढ़ की महाभारत और लोक कथाओं में द्रोपदी को मां पार्वती का अवतार माना जाता है और मां जगदंबा की तरह पूजा जाता है । प्रभा कहती हैं उनके इलाके में द्रोपदी का उपहास नहीं उड़ाया जाता वहां द्रोपदी के पांच पति होने के पीछे एक पौराणिक कहानी जुड़ी है । प्रभा द्रोपदी की बात जब करती है तो उनके हाथ श्रद्धा से जुड़ जाते हैं । वो बताती हैं कि एक  गाय के श्राप से ही मां पार्वती को पांच पतियों की पत्नी बनना पड़ा ।

एक बार एक गाय के पीछे पांच सांड पड़े थे गाय स्वंय को बचा रही थी मां पार्वती ने देखा तो वो गाय को देख कर हंस पड़ी । तब गाय ने श्राप दिया कि मैं तो असहाय गाय हूं तुम्हे नारी के रूप में पांच पतियों की पत्नी बनना पडेगा । प्रभा  बताती हैं कि गाय के श्राप के कारण ही मां पार्वती ने द्रोपदी के रूप में जन्म लिया . और जहां मां पार्वती जायेंगी वहां भगवान शिव को तो जाना ही पड़ेगा इसलिए पांचों पांडव भगवान शिव का ही अवतार हैं । द्रोपदी से जुड़ी ये लोक कथा छतीस गढ़ की आंचलिक महाभारत की कहानी है । और सदियों से यहां द्रोपदी को जगदंबा के रूप में पूजा जाता है । और महाभारत का ये लोक रूप , व्याख्या वहां के जनमानस में लिखित महाभारत से कहीं ज्यादा गहरी आस्था से जुड़ी है ।

अब प्रभा ने अपनी जय मां कौशल्या पंडवानी पार्टी बना रखी है , रेडियो पर गाती हैं टीवी पर गाती है मंच पर गाती हैं गांवों में गाने जाती हैं । शादी हुए कईं साल हो गए तीन बच्चे हैं । पति घर पर रह कर खेती बाड़ी संभालते हैं और बच्चों की देख रेख भी करते हैं । दो बेटियां हैं एक बेटा । सब पढ़ रहे हैं कोई भी पंडवानी को अपना पेशा बनाना चाहेगा तो वो मना नहीं करेगीं । इस साधारण सी दिखने वाली महिला ने अपनी लगन से एक मंजिल हासिल कर ली है बस अब हसरत है ऊंची उड़ान भरने की । प्रभा देवी बहुत महिलाओं के मिसाल हैं ।
                                                                                                                    

सोमवार, फ़रवरी 14

मैं चित्रांगदा हूं...

सर्जना शर्मा
 
 अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पास आ रहा है, बड़े बड़े अंतरराष्ट्रीय सेमीनार , संगोष्ठियां , पुरस्कार समारोह होंगें । महिलाओं को समान अधिकार देने की पैरवी की जायेगी। कहना ना होगा इंटरनेशनल वूमैन डे यानि अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पश्चिम की आधुनिक अवधारणा और देन है । मेरी बहुत सी उच्चपदस्थ  महिलाओं को अंतराष्ट्रीय महिला दिवस खोखला लगता है । उनका मानना है एक दिन महिला दिवस मना कर हासिल क्या होता है क्या साल के बाकी दिनों में भी महिलाओं को अधिकार नहीं मिलना चाहिए? कुछ ऐसे नामों को पुरस्कार के लिए चुन लिया जाता है जो मीडिया के लिए अच्छी खबर  बनती हैं  । 
 महिला अधिकारों के लिए हमें पश्चिम की और देखने की ज़रूरत अब पड़ रही है । पश्चिम की जो वूमैन लिब की अवधारणा है वो हमारे समाज में सच कहूं तो फिट  नहीं बैठती ।  हो सकता है बहुत सो लोग मेरी इस राय से सहमत ना हो लेकिन ये मेरी निजी राय और सोच है । हमारे उनके सामाजिक परिवेश में बहुत अंतर है । हमारे यहां सामाजिक परिवेश और संस्कृति पश्चिम से अलग है । ऐसा नहीं है कि हमारे पास महिलाओं के समान अधिकारों या समाज में ऊंचे दर्जै की अवधारणा नहीं थी । अगर हम अपने प्राचीन और समृद्ध भारतीय इतिहास में झांकें तो हमें महिलाओं के अधिकारों के बारे में बहुत सी बातें पता चलेगीं । और आज भी हमारे वनवासी और कबीलाई समाज में मातृ प्रधान सत्ता है । उनके पास इतने अधिकार हैं, इतनी आज़ादी है कि  आधुनिक समाज में देखने को भी नहीं मिलेगी । वेदों , पुराणों और महाकाव्यों में भी महिलाओं के सशक्त चरित्र हैं । दिल्ली में चल रहे इंदिरा गांधी नेशनल  सेंटर फॉर आर्ट में आजकल  जय उत्सव चल रहा है । इसमें लोक परंपराओं में महाभारत  पर चर्चा विचार , लोक गायन , लोक नृत्य चल रहा है . देश विदेश से आए विशेषज्ञ लोक परंपरा की दृष्टि से महाभारत  पर अपने रिसर्च पेपर प्रस्तुत कर रहे हैं  । लोक परंपरा का जो महाभारत है वो वेद व्यास के महाभारत  से भिन्न है । उसकी कथाएं भिन्न हैं । महिला पात्रों को बहुत सशक्त  दिखाया गया है । उन्हें अपने तरीके से जीने की आजादी है । उनके पास आज की उच्च शिक्षित महिला से कहीं ज्यादा अधिकार हैं । और ये अधिकार कागज़ के पन्नों में ही नहीं है बल्कि देश के दूर दराज इलाकों से आए कलाकारों की टोलियों में महिलाओं की बराबर की भागीदारी भी इसका प्रमाण है। मेरी ऐसी बहुत  सी कलाकारों से मुलाकात हुई जो आदिवासी इलाकों में रहते हुए भी महाभारत  की महान विदुषियां हैं । कथा वाचन , गायन , वादन और नृत्य में पारंगत हैं । एक एक करके आपसे इनका परिचय करवाऊंगीं ।
  
  आज बात महाभारत की एक सशक्त पात्र चित्रांगदा की । चित्रागंदा महान योद्धा अर्जुन की पत्नी थी । वनवास के दिनों में अर्जुन घूमते घामते बिष्णु देश यानि वर्तमान मणिपुर पहंच गया । वहां चित्रांगदा से मुलाकात होती है ।चित्रागंदा मणिपुर के राजा चित्रवाहन की बेटी थी  दोनों एक दूसरे पर मोहित हो जाते हैं और विवाह करने का फैसला करते हैं । मणिपुर में चूंकि मातृ प्रधान समाज था जो कि आज भी है राजा ने शर्त रखी कि विवाह कर लो लेकिन मेरी बेटी तुम्हारे साथ नहीं जाएगी और ना ही उसकी संतान । क्योंकि उसकी संतान ही राज्य की उत्ताराधिकारी  बनेगी । अर्जुन शर्त मान लेते हैं और दोनों का विवाह हो जाता है । चित्रांगदा जानती है कि अर्जुन सदा उसके साथ नहीं रहेगा लेकिन वो इसके लिए रोती गाती नहीं है। कल क्या होगा इसकी चिंता नहीं करती है। वेद व्यास की महाभारत  की  चित्रांगदा  के व्यक्तित्व ने  गुरू रविंद्र नाथ टैगोर  को बहुत  प्रभावित किया उन्होनें चित्रागंदा  को एक स्वाभिमानी और ऐसी महिला के रूप में प्रस्तुत किया जिसका अपना एक अस्तित्व है उनकी मूल बांग्ला कृति का हिंदी अनुवाद भारत भूषण अग्रवाल ने हिंदी में बहुत सुंदर तरीके से किया है ।
 
चित्रागंदा अर्जुन को अपना परिचय देती है = 
 
                           मैं चित्रागंदा हूं !
 
                   देवी नहीं , न ही मामूली रमणी हूं मैं ।
 
                   पूजा करके  जिसे माथे चढ़ाओ ,वह भी नहीं हूं मैं  ;
 
                 अवहेलना से पालतू बना कर पीछे डाल दो , मैं वह भी नहीं ।
 
                यदि संकट के पथ पर मुझे पार्श्व   में रखो ,
 
                  दुरूह चिंता में भागीदार बना लो ,
 
               अपने कठोर  व्रत में यदि हाथ बंटाने की अनुमति दो ,
 
                         सुख -दुख की सहचरी बनाओ ---
                           
                            मेरा  परिचय तुम तब पाओगे ।        
                                                     
   हज़ारों वर्ष पहले लिखे गए महाकाव्य से गुरूदेव रविद्रनाथ टैगोर ने चित्रांगदा    के चरित्र की व्याख्या आधुनिक  स्त्री के संदर्भ में  की है। आज की स्त्री जो चाहती है बिल्कुल वैसा ही परिचय  । इक्कीसवीं सदी में भी स्त्री ना देवी बनना चाहती है और ना ही पालतू। बस उसे चाहिए बराबर की भागीदारी।                                                                                  


 

बुधवार, फ़रवरी 2

माघ की महिमा...सर्जना शर्मा



विक्रमी संवत का ग्यारहवां  महीना माघ चल रहा है । क्या आप जानते हैं ये महीना शरीर को कैलशियम , विटामिन डी और आयरन  से पोषित करने का महीना है । इस महीने में सभी  त्यौहार तिल , गुड़ से मनाए जाते हैं । उड़द की दाल की खिचड़ी खायी जाती है और पवित्र नदियो में स्नान किया जाता है । सभी  देवी देवताओं की तिल और तिल से बने व्यंजनों से पूजा होती है । तिल कुटा चतुर्थी , षटतिला एकादशी , मौनी अमावस्या और इसी महीने में होती है। भुवनभास्कर  सूर्य देव की रथ सप्तमी । इसी महीने में ऋतुराज वसंत का आगमन होता है ।

माघ महीना आरंभ होने से पहले सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण होता है । यानि धरती के समीप आ जाता है , वेदों पुराणों में मकर संक्रांति को  देवताओं की सुबह  कहा गया है । और इसके बाद से देवताओं का दिन आरंभ हो जाता है । उत्तरायण सूर्य अपने साथ नयी उर्जा लेकर आता है । प्रकृति और मनुष्यों में नव चेतना का संचार करता है । माघ महीने के सूर्य की किरणों में अगर  दस बजे से पहले बीस मिनट बैठ लिया जाए तो शरीर को भरपूर विटामिन डी  मिलता है । हमारे ऋषि मुनियों ने मौसम के अनुसार सारे व्रत , त्यौहार और स्नान पर्व रखे ।

माघ महीने में ब्रह्मुहुर्त में नदियों और सरोवरों में स्नान की हमारी चिर परंपरा है । ये स्नान हमारी सेहत से जुड़े हैं । माघ में तिल खाने का नियम इसलिए है कि तिल से शरीर को दूध से तीन गुणा ज्यादा  कैलशियम मिलता है । और कैलशियम शरीर में तभी खप सकता है जब हम साथ में विटामिन डी भी लें । विटामिन डी का प्राकृतिक स्त्रोत है सूर्य है  । सूर्य में तीन अलट्रा वायलेट किरणें होती हैं --- ए बी और सी । एल्ट्रा वायलेट बी किरणें विटामिन डी को ऑबजर्व करती हैं । अगर हम सूती कपड़े पहन लेते हैं तो सूती कपड़ा सूर्य की किरणों के विटामिन डी को ब्लॉक कर देगा । इसलिए हमारे ज्ञानी ध्यानी ऋषि मुनियों ने नदियो में स्नान की परंपरा रखी । नदी में स्नान करने जायेंगें तो कम से कम कपड़े पहन कर नहाएंगें । सूर्य की किरणें नदी के पानी को स्टरलाइज़ कर देती हैं और हमारे शरीर को विटामिन डी देती है । और इस  महीने में हम तिल कुट, रेवड़ी गजज्क , उड़द की दाल की खिचड़ी भी खाते हैं ।

भारतीय पर्व और त्यौहारों पर पश्चिम का विज्ञान   भी शोध कर रहा है । उसके जो परिणाम  सामने  आ रहे  हैं तो पता चल रहा है कि हमारे सभी  त्यौहार सेहत का खजाना है । माघ महीने में अगर हम पूरे नियमों का पालन करें और नियमानुसार खान पान रखें   तो पूरे साल का विटामिन डी , कैलशियम और आयरन हमारे शरीर में संचित हो जाएगा । और हां एक बात का ध्यान ज़रूर रखें कि सुबह दस बजे से पहले ही धूप का सेवन करें उसके बाद नहीं । योग विधा में विटामिन डी लेने का सबसे अच्छा  आसन  है सूर्य नमस्कार । और इस आसन में पूरे बीस मिनट लगते हैं यानि जितनी देर हमारे शरीर को विटामिन डी चाहिए बिल्कुल उतना  ही समय ।

दिल्ली के जाने माने  कोर्डियोलोजिस्ट हैं पद्म श्री  डॉक्टर के के अग्रवाल । उन्होनें एक किताब लिखी  है एलोवेद यानि एलोपैथिक और आयुर्वेद । उन्होनें इस पर  गहन शोध किया मरीज़ो पर आजमाया ,
उन्होनें पूरब और पश्चिम की चिकित्सा पद्धति का गजब फ्यूज़न किया है । और इसके परिणाम भी बहुत अच्छे आए हैं । उनसे इन सब विषयों पर अकसर बातचीत होती है । और धर्म और विज्ञान को मिला कर जब हम देखते हैं तो पातें हैं कि सनातन परंपरा स्वस्थ तरीके से  जीने की एक शैली है रूढ़ियों के दायरे में बंधा धर्म नहीं । आप को भी अब अगर कोई कहे कि क्या है माघ स्नान फालतू की बात तो आप उसे तर्क दे कर समझा सकते हैं कि ये एक स्वस्थ जीवन शैली है जिसे हमारे ऋषिमुनियों ने धर्म के दायरे में बांध दिया ताकि एक साधारण व्यक्ति भी सेहत का खजाना पा सके ।