मंगलवार, मई 24

पानी पानी रे...बिन पानी सब सून


सर्जना शर्मा
भयंकर गर्मी का महीना जयेष्ठ चल रहा है। इस महीने की गर्मी शरीर के लिए बहुत घातक हो सकती है अगर हम अपना ठीक से ध्यान ना रखें तो । भारत पूरी दुनिया में एकमात्र ऐसा देश है जिसमें 6 ऋतुएं हैं। हमारे सारे त्यौहार, पर्व ऋतुओं के अनुकूल ही है । इस महीने में सबसे ज्यादा महिमा जल की है। सूर्य की तेज़ किरणों में धरती के साथ साथ मनुष्य के शरीर के भीतर का जल भी सूखने लगता है। और हमारे ऋषि मुनियों ने इस महीने में जल के सरंक्षण को धर्म से जोड़ा ।  हमारा परंपरागत समाज  पूर्वजों के  बनाए नियमों का पालन भी करता है । आधुनिक लोग भले ही अपने स्वार्थ के दायरे में बंधे रहते हों लेकिन हमने अपने बचपन में देखा कि हमारे पड़ोस की बहुत सी महिलाएं जयेष्ठ के महीने में नंगें पांव रहने और जल ना पीने का व्रत लेती थीं । स्वयं भले ही ना पीएं लेकिन दूसरों के लिए शर्बत बना कर देना , राहगीरों के लिए ज़मीन खोद कर घड़े ऱखना और फिर उसमें स्वयं जल भरने जाना वो भी दिन में दो या तीन बार । हम छोटे थे तो हम चाव चाव से उनके साथ जाते और घड़े पानी के भर कर आते । सूर्य की तपन को अपने पांवों तले महसूस करना और स्वयं प्यासे रह कर ये अनुभव करना कि अगर पानी ना मिले तो क्या हालत होती है ।हमारी संस्कृति की एक ऐसी सोच है जो तप और संयम से दूसरों के लिए जीना सीखाती है । जल की महिमा का बखान हमारे वेदों और पुराणों में है । आज पश्चिमी देश --' सेव वॉटर यानि पानी बचाओ ' का ज्ञान हमें दे रहे हैं लेकिन हमारे पूर्वजों ने  हज़ारों वर्ष पहले लिखा --" जल को दूषित करने वाला नरक में जाता है " । पाप,और पुण्य  , स्वर्ग और नरक  भारतीय जनमानस. में गहरे पैठे रहते हैं ।भले ही नरक और पाप  के डर से  ही सही हमारे पूर्वज जल को स्वच्छ तो रखते थे । अथर्ववेद में जल पर सबसे ज्यादा श्लोक हैं जिनमें जल को जीवन का अमृत और भेषज यानि औषधि माना गया है । जल के दान को महादान बताया गया है । अगर आप अपने व्रत त्यौहारों पर ध्यान से विशलेषण करें तो आप पायेंगें कि सभी त्यौहार और व्रत मौसम से जुड़े हैं । तपती गर्मी में हम शीतल जल , शर्बत पीते हैं सत्तू , खीरा ककड़ी तरबूज और खरबूज खाते हैं ।और आप देखेंगें कि निर्जला एकादशी जो इसी महीने में पड़ती है (इस साल 12 जून को है  ) हम जल से भरा घड़ा , पखां , शरबत की बोतल , खरबूजा , ककड़ी , सत्तू , छतरी और जूते का दान करते हैं । ये वही सब वस्तुएं हैं जिनका हम गर्मियों में बहुत इस्तेमाल करते हैं औऱ इन्ही का हम दान भी करते हैं । यानि सीधा सा गणित है दूसरों की भी मदद करो जिनके पास इन सब वस्तुओं का अभाव है उन्हें दान करो । प्याऊ लगवाना ,पशु , पक्षियों के लिए जल की व्यवस्था करना धर्म माना गया है । इससे कितना पुण्य मिलता है इसका फैसला तो चित्रगुप्त ही करेंगें लेकिन ये तय है कि हमारी संस्कृति में सह अस्तित्व का बहुत महत्व है । इस भयंकर गर्मी में पशु पक्षियों को भी तो पानी चाहिए औऱ हम मनुष्यों को धर्म के माध्यम से ये सीखाया गया कि उनका भी ध्यान रखो ।
                                                                            गर्मी के महीने में गर्मी पड़ना भी बहुत आवश्यक है । अगर जेठ नहीं तपेगा तो सावन नहीं बरसेगा , और सावन नहीं बरसेगा तो किसानों को बहुत नुकसान होगा , फसल का नुकसान होगा और आखिर में हम सबको इसका नुकसान उठाना पड़ेगा । प्रकृति बहुत उदार और विशाल है उसके मौसमी फल भी हमारे शरीर को फायदा पहुंचाते हैं । इस मौसम के सभी  फलों और सब्जियों में पानी की मात्रा बहुत ज्यादा होती है । खीरा विटामिन ए , पोटेशियम से भरपूर होता है तो खरबूजा  पोटेशियम और विटामिन सी से भरपूर होता है । खीरा , ककड़ी तरबूज और खरबूजा शरीर को खनिज लवण देते हैं । ये फल खाने से लू नहीं लगती ।
                 इस मौसम में शरीर में पित्त उभरता है . गर्मी लगती है और प्यास भी लगती है ।  हमारे परंपरागत ठंडे पेय में शिकजंवी , आम का पाना , इमली का पाना , सत्तू और छाछ  पीया जाता था । जो शरीर को बाहरी नहीं भीतरी शीतलता देते थे । पोषक आहार विशेषज्ञ अरूण कुमार पानी बाबा  कहते हैं कि शिकजंवी में मिल की बनी चीनी ना डाल कर देसीतरीके से बना बूरा मिलाना चाहिए । और उसमें त्रिकटू ज़रूर डालना चाहिए । त्रिकटू काली मिर्च , सौंठ और पीपल को बराबर मात्रा में मिला कर कूट कर बनाया जाता है । अरूण जी कहते हैं त्रिकटू को फलों की चाट में , रायते में सबमें मिलाएं तो वात , कफ और पित्त तीनों संतुलित रहते हैं । और त्रिकटू 12 महीने प्रयोग किया जा सकता है । कच्चे आम , प्याज पुदीने और हरी मिर्च की चटनी भी इस मौसम में वरदान मानी गयी है । जो लोग प्याज नहीं खाते वो बिना प्याज़ के भी ये चटनी बना सकते हैं ।
               ज्योतिष शास्त्र में भी इस महीने की अनोखी व्याख्या है । हमारे परिचित ज्योतिषाचार्य अशोक कुमार जी ने जल और ज्योतिष विषय पर गहन अध्ययन किया है  ।उन्होने जल और मनुष्य के ज्योतिषय संबंध का अद्भुत विश्लेषण किया है । भारतीय महीनों के नाम नक्षत्रों के हिसाब से रखे गए हैं । जयेष्ठ मास की पूर्णिमा को चंद्रमा जयेष्ठा नक्षत्र में होता है । इस नक्षत्र का स्वामी बुध है जो दूसरों के कष्ट की अनुभूति कराता है ।  ये महीना जब आरंभ होता है तो चंद्रमा वृश्चिक राशि में होता है वृश्चिक भी जल की राशि है और इस महीने के सभी त्यौहार जल से जुड़े हैं . निर्जला एकादशी , गंगा दशहरा और भगवान जगन्नाथ की स्नान पूर्णिमा । और इसी महीने में भगवान जगन्नाथ की चंदन यात्रा और नौका विहार होता है ।इस नक्षत्र के देवता इंद्र है जो वर्षा के देवता है । यहां इंद्र , इंद्रियों के शमन का प्रतीक है और जप तप का संदेश देते हैं ।
                                चंद्रमा को मन का स्वामी माना गया है । चंद्रमा की घटती बढ़ती किरणों का प्रभाव मनुष्य के शरीर पर पड़ता है ।मनुष्य के शरीर में भी 72 फीसदी जल है । पृथ्वी का अधिकतर भाग भी जल से भरा है । वृश्चिक राशि में चंद्रमा नीच का माना जाता है औऱ इसकी नीचता को शुभता में बदलने के लिए जल के दान का विधान रखा गया है । आप जल जितना दान करेंगें चंद्रमा उतना ही शुभ होगा और मन भी प्रसन्न रहेगा । मन ठीक होगा तो शरीर भी प्रसन्न रहेगा । प्रसन्न रहने पर तन मन में उर्जा और उत्साह का संचार रहता है . उत्साह और उर्जा से सकारात्मक सोच बनती है । अशोक जी का मानना है इससे बुध ग्रह शुभ हो जाता है । अच्छी बुद्धि होने पर इंसान कर्म भी  अच्छे ही करता है यानि शनिदेव शुभ हो गए । अच्छे कर्मों से कामनाएं पूर्ण होती हैं और सुख की अनुभूति होती है अर्थात शुक्र शुभ हो गया । और अच्छे रास्ते से धन कमाने वालों का मन फिर आध्यात्म और भक्ति की और मुड़ता है । यानि देवगुरू बृहस्पति शुभ हो गए । . भक्ति मार्ग में रूकावटें डालने वाला राहू भी जब मनुष्य की सरलता और निष्कपटता देखता है तो वो अनूकूल हो जाता है । धर्म अर्थ और काम के बाद शेष बचता है मोक्ष केतु मोक्ष देने वाला ग्रह माना गया है और वही मोक्ष की राह पर चलने की बुद्धि देता है । यानि जल का  और संरक्षण मनुष्य का जीवन ही बदल देते हैं । इसलिए तपती गर्मी में जन कल्याण , धरती के अन्य प्राणियों के कल्याण और अपने कल्याण के लिए जल को शुद्ध रखो , संरक्षण करो , नदियों सरोवरों की पवित्रता बनाए रखो और जितना हो सके जल का दान करो । उतना ही पानी इस्तेमाल करें जितना ज़रूरी है बर्बाद ना करें । निर्जला एकादशी को निर्जल व्रत रखने के पीछे भी यही सोच रही होगी कि जल का सरंक्षण करो अपने लिए भी और धरती के सभी प्राणियों के लिए भी । अपने घर के आसपास पानी के घड़े रखें , पशु पक्षियों के लिए पीने का पानी  रखें । आप अगर पाप पुण्य में  बी  विश्वास नहीं रखते तो नेक काम करके आपके दिल को शांति तो अवश्य मिलेगी ।  

शनिवार, मई 21

सपनो के खौफ में जिंदगी की जीत

 सर्जना शर्मा

 सपनों की रहस्यमयी दुनिया पर पिछली पोस्ट में मैनें लिखा था कि सपने कैसे अनहोनी का संकेत दे जाते हैं लेकिन हम उन्हें केवल सपना मान कर भूल जाते हैं और जब कुछ दिन या महीनों के बाद सपना सच होता है तो हम सोचते हैं अरे इस घटना के बारे में तो मुझे पहले ही सपना आ गया था । पिछली पोस्ट में मैनें दो ऐसी घटनाओं का ज़िक्र किया था आज एक और सच्ची घटना ----

                              1998 की बात है गर्मियों के दिनों में मुझे एक सपना आया कि मेरी बहन का बड़ा  बेटा मेरे हाथ से छूट कर एक नदी में बह गया है मैं उसे पकड़ने की कोशिश करती रही लेकिन वो नदी के बहाव के साथ बहता गया । मेरी नज़र उसी पर रही और कोशिश भी कि किसी तरह उसे नदी से निकाल लूं . मैं दूसरी तरफ से घूम कर नदी के किनारे गयी और तब तक मेरा भांजा भी वहां पहुंच गया और मैं उसे नदी के निकाल कर ले आयी और वो बिल्कुल ठीक ठाक था . सुबह उठ कर मैनें घर में सबको ये सपना बताया और मेरे पापा और बीजी और हम सबने फैसला किया कि बच्चों को नदी या तालाब के पास लेकर नहीं जाना है। बचाव रखना है। तीन चार महीने बीत गए हमारे मन से भी सपने का खौफ कम हो गया।

                                 दिसंबर में क्रिसमिस की छुट्टियों में   मेरी बहन  अपने दोनों बेटों के साथ अपने पति के पास पंजाब चली गयी ।  उन दिनों  मेरी बहन के पति की अबोहर के पास गोविंदगढ़ में पोस्टिंग थी । आबादी से दूर आर्मी  का ये इलाका भाखड़ा बांध से आने  वाली इंदिरा गांधी कैनाल के पास था।  बच्चों के लिए ऐसी जगहों में खेलने कूदने और मस्ती करने के भरपूर अवसर रहते हैं। मेरी बहन के अलावा के और अफसरों के बच्चे भी  वहां  थे और सब मिल कर खूब धमाचौकड़ी करते। एक दिन चार बच्चे ,मेरी बहन का बड़ा बेटा कार्तिकेय कमांडिंग ऑफिसर का बेटा अर्जुन वेणुगोपाल और दो अन्य आर्मी अफसरों के बच्चे बिना किसी को बताए नहर के किनारे खेलने चले गए। लंच का समय था अर्जुन को उनका सहायक आ कर ले गया। अब एक बच्चे के मन में ना जाने क्या आया कि उसने कार्तिकेय को नहर में धक्का दे दिया। सभी बच्चों की उम्र पांच छह साल के आसपास थी। नहर लगभग 12 फीट गहरी है और पानी का बहाव बहुत तेज़। धक्का देने के बाद वो आवाज़े लगता रहा लेकिन कार्तिकेय तब तक डूबने लगा था और उस बच्चे  दिखाई देना बंद हो गया। तब वो परेशान हुआ और भागकर अर्जुन और उनके सहायक को वापस बुला कर लाया। लेकिन कार्तिकेय ना आवाज़ का जवाब दे रहा था और ना ही नज़र  आ रहा था। अर्जुन के सहायक ने और बच्चों ने मिल कर शोर मचाया। इतने में मेरे जीजा जी की युनिट  का एक और जवान वहीं से गुज़र रहा था।  उसे जब बात पता चला तो वो झट से नहर में कूद गया वो अच्छा तैराक माना जाता था , लेकिन उसे कार्तिकेय मिला ही नहीं उल्टे वो भी  तेज़ धारा में बहने लगा । इतने में कुछ और जवान इक्ट्ठे हो गए ।  मेरे जीजा की युनिट  सिखों की है सब लोग पगड़ी पहनते हैं नहर के किनारे खड़े एक जवान ने अपनी पगड़ी खोल कर नहर में कूदे जवान की तरफ फैंकी और एक सिरा स्वयं पकड़े रखा । लगभग डेढ़ किलोमीटर जाने के बाद उस जवान को कार्तिकेय मिल गया और अपनी पीठ पर लाद कर वो उसे बाहर लाया । सबसे पहले तो सेना की ट्रेनिंग के अनुसार उसने कार्तिकेय को उल्टा करके पेट से पानी निकाला । और फिर उसे गोद में लिए लिए ही मेरी बहन के पास लाया । तब को बहुत सारे जवान बच्चे और महिलाएं जुट गए थे । मेरी बहन ने शोर सुना और थोड़ी हैरान भी कि इतने लोग एक साथ हमारे घर की तरफ क्यों आ  रहे हैं । जब उन्होने कार्तिकेय को लाकर लिटाया और पूरी बात सुनाई तो मेरी बहन सुन्न रह गयी । सर्दियों के दिन इतने सारे कपड़े जूते स्वेटर पहले बच्चा कुछ भी  हो सकता था । लेकिन कार्तिकेय अविचलित था । ना डरा ना उसके चेहरे पर हादसे की घबराहट ।
           खैर मेरी बहन और उसके पति के मन पर उस समय क्या बीती होगी कोई भी  अनुमान लगा सकता है । बचाने वाले  जवान को उसकी बहादुरी के लिए पुरस्कृत किया गया।
                                                                   मेरी बहन और उसके पति ने हमें दिल्ली में इस बारे में कोई खबर नहीं दी। जब वो जनवरी में लौटी तो उसने पूरी किस्सा सुनाया । घर में वातावरण बहुत भावुक हो गया ।  भगवान को हमने कोटि कोटि धन्यवाद दिया  की उसकी  अपार कृपा  से हमारा बच्चे सिर से अनहोनी टल गयी । मैनें उससे पूछा -- तुम्हे डर नहीं लगा पानी में ? उसने हमें जो उत्तर दिया उसे सुन कर हम तो हतप्रभ रह गए. उसने कहा ---" बिल्कुल नहीं मम्मी मेरे साथ भगवान थे । उन्होने मुझे डरने ही नहीं दिया पकड़े रखा "। पांच साल के बच्चे से ऐसे उत्तर की अपेक्षा हमें  नहीं थी । लेकिन भगवान के प्रति मेरी आस्था और गहरी  हो गयी ।
                                                                                                    और चार महीने पहले आया सपना सच हो गया । मेरी बहन ने बताया कि उस दिन कार्तिकेय ने -- इस्कॉन में मिलने वाली टी शर्ट पहली हुई थी -- जिस पर भगवान कृष्ण बने थे और लिखा था -- आई लोस्ट माई हार्ट इन वृंदावन ।

                                                 ये तो मेरे अपने बच्चे से जुड़े सपने हैं । सत्तर के दशक में मुझे एक दिन अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी सपने में आए । अमिताभ बच्चन ने  मुझ से कहा कि मेरी तबियत खराब रहती है हम अब दिल्ली रहने आ रहे हैं । मुझे लगा कि आजकल अमिताभ हिट हैं उनकी फिल्में देखते रहते हैं इसलिए ऐसा सपना आया । लेकिन कुछ दिन बाद ही अखबारों की सुर्खियां बनी कि अमिताभ को अस्थमा, मुंबई से दिल्ली शिफ्ट हो रहे हैं ।और फिर वो कुछ  अरसे तक अपने गुलमोहर वाले घर में दिल्ली रहे । सपने संदेश देते हैं आने वाले समय के बारे में बताते हैं इसका मुझे पूरा विश्वास है। मैनें तो आजतक ना जाने कितने ऐसे  अनुभव किए हैं ।

सोमवार, मई 16

ईश्वर की छाया में आगाह करती सपनों की दुनिया


  एक महीना दस दिन के लंबे अंतराल के बाद आज मैं पोस्ट लिख रही हूं । ये पोस्ट पढ़ कर आप सब जान जायेंगें कि मैं इतने दिन ब्लॉगिंग से दूर क्यों रही । पिछली पोस्ट पांच अप्रैल को लिखी थी जिस पर आपकी बहुत प्रतिक्रियाएं आयीं लेकिन मैं आप को धन्यवाद भी नहीं दे पायी । आशा है आप सब मुझे भूलें  नहीं होंगें । आपके साथ स्नेह की डोर पक्की है । आप जब ये पोस्ट पढ़ेंगें तो मेरी मजबूरी समझ ही लेंगें । आपकी प्रतिक्रियाएं मुझे यकीन करायेंगी कि मैं अब भी अपने प्यारे से ब्लॉग परिवार की सदस्य हूं --सर्जना शर्मा  


 पिछले महीने नौ अप्रैल को मेरी बड़ी बहन सरीखी सहेली मधु जोशी का फोन आया । मधु बहुत मस्तमौला किस्म की हैं . दिल की बहुत  अच्छी दोस्तों की दोस्त ना किसी से ईष्या ना किसी से द्वेष , कभी मेरा मन किसी बात को लेकर बहुत परेशान होता है तो मधु से ही बात करती हूं और फिर वो ऐसा समझाती हैं कि मन शांत हो जाता है । कहती हैं समय आने पर सब अपनी गति को प्राप्त हो जाते हैं तुम नाहक परेशान मत हुआ करो । और फिर साथ ही मेरा मनोबल बढ़ाने के लिए कहती हैं --" हम जैसे सीधे सच्चे लोग दुनिया में बहुत कम है . इसलिए लोगों की चालाकियां और दुष्टताएं हमारे दिल को चोट पहुंचाती हैं । लेकिन हम हम रहेंगें और वो वो ही रहेंगें । बस मस्त रहो " । लेकिन उस दिन जब मधु का फोन आया तो उन्होनें सबसे पहला सवाल दागा--- तुम ठीक  तो हो ना ?
 
हां मैं बिल्कुल मस्त और फिट हूं ।
 
नहीं सच बताओ कोई परेशानी तो नहीं, तबियत तो ठीक है ?
 
मधु की आवाज़ में झलकती चिंता और बार बार पूछते रहने पर मुझे हैरानी हुई । हां लेकिन तुम बार बार क्यों ऐसा पूछ रही हो ?
 
"कल रात मुझे सपना आया कि एक भयंकर कुत्ता तुम्हारे उपर झपट रहा है और मैं उसे भगा रही हूं लेकिन वो तुम्हारा पीछा ही नहीं छोड़ रहा है । मुझे तुम्हारी बहुत चिंता हो रही है अपना ख्याल रखना " ।
 
मधु मुझसे बहुत स्नेह रखती हैं हर दुख सुख में साझीदार रहती हैं । हमारे घर की सदस्य जैसी हैं मुझे लगा ऐसे ही उन्हें  कोई सपना आ गया होगा । क्योंकि मनोवैज्ञानिक भी कहते हैं कि जिनसे हम बहुत प्यार करते हैं अपने अवचेतन मन में उनकी चिंता करते रहते हैं । शायद मधु की इसी चिंता का परिणाम होगा
लेकिन मधु के फोन के लगभग आधे घंटें बाद मेरे बड़े चाचा जी की बेटा ममता का फोन आया । ममता कभी फोन नहीं करती साल में कभी एक आध बार  या कभी शादी ब्याह और गमी में मिलते हैं ।
ममता का भी पहला सवाल यही था -- दीदी आप ठीक हो ना ?
 
हां मैं बिल्कुल ठीक हूं तुम बताओ तु्म्हारे पति और  बच्चे कैसे हैं ?
 
उसने मेरे सवाल का आधा अधूरा उत्तर दिया और फिर उसकी सुईं भी वहीं अटक गयी - सच बताओ ना आप ठीक हो मुझे दो तीन दिन से आपके बारे में बुरे बुरे सपने आ रहे हैं ?
 
अब मेरे मन में भी थोड़ा सा खटका हुआ कि एक ही  दिन और कुछ ही समय के अंतराल पर दो फोन और वो भी मेरी कुशलता की चिंता को लेकर ।
  लेकिन काम की व्यस्तता और नवरात्र के कारण मैं उनकी बात को भूल सा गई ।
 
11 अप्रैल को कन्या पूजन के समय ना जाने अचानक क्या हुआ कि मेरी पीठ में असहनीय दर्द होने लगा उठना बैठना मुश्किल हो गया और शाम होते होते अस्पताल में दाखिल होने की नौबत आ गयी ।क्योंकि डिस्क स्लिप हो गयी थी ।  जब रात को अस्पताल में बिस्तर पर लेटी तो मधु और ममता के फोन की बात याद आयी । जिसे मैनें उनके मन का वहम समझ कर टाल दिया था तो क्या उन्हें मेरा बीमारी का संकेत पहले ही मिल गया था । उन्होने मुझे सचेत भी किया लेकिन मैं
सपने को सपना ही मानती रही और दो दिन बाद उन दोनों का सपना सच हो गया । और फिर पूरे बीस दिन में बिस्तर पर रही और काफी तकलीफ से गुज़री अब भी कईं घंटे लगातार बैठ नहीं सकती हूं ।
 
                      ऐसे अऩुभव आप सबके भी बहुत रहे होंगें । मुझे भी कईं बार अपने परिजनों को लेकर ऐसे सपने आए और कुछ दिन बाद वही घटनाएं  घटीं । मेरी बहन का बड़ा बेटा कार्तिकेय  तीन  महीने का रहा होगा कि मुझे सपना आया मैं एमसीडी के एक कूड़ा घर के सामने से गुज़र रही हूं ।  कूड़ा घर के बाहर कूड़े के ढ़ेर पर मेरी बहन का बेटा कार्तिकेय पड़ा है । मैने उसे देखा और उठा कर अपने सीने से लगा लिया और घर ले आयी । एक दो महीना गुज़र गया सब ठीक चलता रहा । जब वो पांच महीने का हुआ तो हम उसे लेकर पहली बार अपने घर पंचकूला गए । दिसंबर का महीना था । 
 
एक दो दिन के बाद उसे बुखार उल्टियां और दस्त लग गए । हम स्थानीय डॉक्टर को दिखाते रहे जिसे बहुत काबिल माना जाता था । 
 
लेकिन चार पांच दिन बीत गए हालत सुधरने के बजाए बिगड़ती चली गयी  ।
 
 मेरी बहन की ससुराल भी पास में ही है वो सब लोग भी आते जाते रहे सब बहुत परेशान थे । मेरी बहन के पति सेना में  अफसर हैं उस समय वो नागालैंड में किसी बड़े आपरेशन में लगे थे । फिर सबने फैसला किया कि बच्चे को चंड़ीमंदिर कैंट के कमांड अस्पताल में दाखिल करा देते हैं । अस्पताल में भी कार्तिकेय की हालत में कोई सुधार नहीं आया । और एक दिन शाम के समय उसने आंखों बंद कर ली और शरीर में कोई गति विधि नहीं रही । मैं और मेरी बहन ही उस समय कमरे में थे बाकी सब मेरी बीजी  ,मेरी बहन की सास, सुसर ,नाते रिश्तेदार , पड़ोसी सब बाहर वेटिंग  रूम मैं बैठे थे । हमारी आखिरी उम्मीद टूट गयी मैं और मेरी बहन रोते हुए बाहर आ गए -- हमने कहा वो अब नहीं रहा हमे छोड़ कर चला गया ।
इतने वर्षों के बाद हमारे घर में खुशियां आयी थीं सब बहुत खुश थे पड़ोसी और रिश्ते दार हम से ज्यादा खुश थे सब सन्न रह गए और सब रोने लगे । लेकिन मेरी मां नहीं रोयीं वो वहां से उठ कर चली गयीं ।
 थोड़ी देर बाद वो लौटीं चेहरे पर गम बिल्कुल नहीं और आत्म विश्वास से भरपूर और बोलीं --चलो कार्तिकेय को बड़ा डॉक्टर इमरजैसीं रूम मे लेकर जा रहा है ?
 
 सब रोते रोते चुप हो गए और मेरी बीजी का मुंह देखने लगे । सबने सोचा शायद बहुत   गहरा सदमा लगा है इसलिए बहकी बहकी बातें कर रही हैं । लेकिन उन्होने मेरी बहन का हाथ पकड़ कर खींचा और बोली चलो मेरे साथ । हम सब भागे भागे कार्तिकेय के रूम में गए तो देखा सचमुच डॉक्टर पलटा कार्तिकेय के बेड के पास खड़े थे उन्होनें आक्सीज़न बैगरह सब मंगवा लिया था और उसे बिना समय गंवाएं
 
इमरजैंसी रूम में ले गए । कमरे का दरवाज़ा बंद करने से पहले बोले -- मैं कुछ कह नहीं सकता अगर आज की रात ठीक से  गुज़र गयी तो आपके बच्चे
 को बचा लूंगा बरना कुछ नहीं कह सकता ।
 
 जिसे हम कमरे में ये सोच कर छोड़ आए थे कि इससे हमारा इतना ही नाता था , उसके जीवन की आस दिखने लगे तो कैसा लगता है । ये अनुभव हर वो मां और हर वो दिल कर सकता है  जिसके बच्चे और सगे संबंधी को नया जीवन मिल रहा हो ।
 
अब सबको लगा कि ये तो चमत्कार है । सब भगवान का लाख लाख शुक्र करने लगे कि चलो भगवान ने इतना किया और भी अच्छा करेंगें ।
उधर मेरे पापा जी घर पर बहुत बीमार थे । उन्हें तेज़ बुखार चल रहा था ।  सब ने कार्तिकेय के लिए ना जाने कितनी मन्नतें मांगी और मैं और मेरी बहन कईं दिन से कार्तिकेय के पास बैठ कर हनुमान बाहुक का पाठ कर रहे थे । उस रात भी  हमने सारी रात हनुमान बाहुक ना जाने कितना बार पढ़ा ।मेरी बहन के देवर मुकेश ने भी हम से लेकर हनुमान बाहुक पढ़ी । कहने लगा आप थोड़ा आराम कर लो । लेकिन आंखों में नींद कैसे आती ।
 
सुबह होने को इंतज़ार था ।सुबह पता चला कि कार्तिकेय को आर्मी अस्पताल के नियमों के अनुसार डेंजर लिस्ट पर डाल दिया गया है और पिता को अस्पताल की तरफ से सूचना दे दी गयी है । हमारे मन में चिंता और बढ़ गयी । अगला दिन भी  चिंता में ही बीता । शाम  होते होते डॉक्टर पलटा ने कहा अब आपका बच्चा खतरे बाहर है । और  इसी खबर को सुनने का सबको इंतज़ार था । सब खुश हो गए । उस दिन भगवान की कृपा  का पता चला । भगवान का जितना धन्यवाद देते उतना कम । हनुमान जी के हनुमान बाहुक में इतनी शक्ति है कि निष्प्राण में प्राण डाल दे । उनके प्रति श्रद्धा आज भी इतनी है कि संकट की हर घड़ी में हनुमान जी का ही सहारा रहता है ।
कार्तिकेय की बीमारी की खबर मिलते ही नागालैंड से पहला कूरियर ( सेना के अफसरों जवानों का लाने , ले जाने वाला विशेष विमान ) पकड़ कर उसके पापा भी आ गए हमें खुशी इस बात की थी पिता को आकर खुश खबरी ही सुनने को मिली । और हम कार्तिकेय को घर ले कर आगए । सब खुश थे । इतना खुश कि मैं शब्दों में बयान ही नहीं कर सरकती मैनें पहले भी एक बार लिका था कि हमारा मौहल्ला एक बड़े परिवार की तरह था जिसमें सब सबके लिए थे । किसी एक का गम सबका  गम .,और किसी एक की खुशी सबकी  खुशी . हमने ,कार्तिकेय के दादा    दादी ने जितनी मन्नते मांगी थी उससे ज्यादा हमारे पड़ोसियों ने मांगी थी । किसी ने उसे चप्पलों से तोला तो किसी ने कथा करायी  और किसी ने प्रसाद चढ़ाया । और मेरे पापा को तो सारी कहानी तब बतायीI गयी  जब कार्तिकेय बिल्कुल ठीक हो गया क्योंकि वो दिल के मरीज़ थे शुक्र है कि उन दिनों उन्हें बुखार था और वो अस्पताल नहीं जापाए थे और हमने उनसे सच छुपाए रखा ।सारा संकट टलने के बाद दिमाग को सोचने की फुरसत मिली तो दो महीने पहले आया वो सपना याद आया जिसमें मैं कार्तिकेय को कूड़े के ढ़ेर से उठा कर लायी थी। क्या संकट का संकेत सपने में मुझे पहले ही मिल गया था । फिर भी हम सचेत क्यों नहीं हुए । सपनों की दुनिया केवल सपने नहीं सच्चाई है । और हमें सपनों के संकेत समझने भी चाहिएं । ऐसे मेरे और भी कईं अनुभव हैं जिन्हे मैं आपसे 20 मई को शेयर करूंगीं । लेकिन मन में एक सवाल आया कि डॉक्टर पलटा कार्तिकेय के रूम में पहुंचे कैसे वो तो उनकी विज़िट का समय भी नहीं था । हमने अपनी बीजी से पूछा कि आपको कैसे पता चला कि डॉक्टर पलटा कार्तिकेय को इमरजैंसी रूम में लेकर जा रहे हैं।
 
 उन्होने बताया कि ,"जब तुम लोगों ने आकर कहा कि वो नहीं रहा तो मुझे विश्वास ही नहीं हुआ कि जो बच्चा हमारे घर इतनी मनन्तों मुरादों के बाद आया वो हमें छोड़ कर चला जाएगा । मेरा भगवान इतना कठोर दिल नहीं हो सकता । मुझसे मेरी ये खुशी नहीं छीन सकता । मैं कार्तिकेय के कमरे की तरफ जा रही थी तो कॉरिडोर में दूर से मुझे  डॉक्टर पलटा दिखे और मैं भाग कर उन्हें बुला लायी कि जल्दी चलो मेरे बच्चे में शायद कुछ प्राण बचे हों । और डॉक्टर पलटा मेरे साथ तुरंत आ गए "  । मेरी बीजी को आज भी पूरा विश्वास है कि डॉक्टर पलटा के रूप में भगवान स्वयं कार्तिकेय को जीवनदान देने आए थे ।
और हमें भी यही विश्वास है ।