मंगलवार, अक्तूबर 21

अष्ट लक्ष्मी आठ रूप आठ मनोकामनाएं
अश्वदायि गोदायी धनदायि महाधने । धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे ।। पुत्रपौत्र धनं धान्यं हस्त्यश्र्वाश्र्वतरी रथम् । प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे ।। धन ,ऐश्वर्य,वैभव ,संपदा की देवी लक्ष्मी से केवल धन की नहीं घोड़े , गाय , सर्वकामना पुत्र पौत्र धन धान्य रथ सब के लिए कामना की गयी है श्री सूक्त की इन पंक्तियों में । वेदों में भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी की कृपा की कामना हम और आप जैसे साधारण मनुष्य तो क्या स्वर्ग के देवता भी करते हैं । वेदों में देवी लक्ष्मी को महालक्ष्मी , कमला पद्माक्षी आदि नाम दिए गए हैं तो पुराणों में अष्टलक्ष्मी का वर्णन है । महालक्ष्मी के ये आठ रूप केवल धन ही नहीं देते बल्कि धरती पर आकर जितने भी प्रकार के सुख हैं वो सब प्रदान करती हैं । दुनिया में आने वाले हर मनुष्य को धन की कामना रहती ही है । गरीब आदमी गुज़ारे लायक पैसा कमाने , लखपति करोड़पति और करोड़पति अरबपति बनने की इच्छा रखता है । जितना धन कमा लो उतना कम जितनी सुख सुविधाएं जुटा लो उतनी कम इच्छाएं अनंत अपार हैं । जिनकी कामना हर मनुष्य के मन में हैं वो स्वयं कहां रहना पसंद करती हैं ये जानना भी ज़रूरी है । महाभारत के अनुशासन पर्व में लक्ष्मी स्वंय , गुणवती , पतिपरायण , सबका मंगल चाहने वाली तथा सद्गुण संपन्न होती हैं । भगवान कृष्ण की पटरानी रूकमिणी को बताती है --- “ मैं उन पुरूषों के घर सदा निवास करती हूं जो सौभाग्यशाली , निर्भिक , सच्चचरित्र और कर्तव्यपरायण हैं । अक्रोधी, भक्त , कृतज्ञ , जितेंद्रिय तथा सत्व संपन्न होते हैं । जो स्वभाव से ही निज धर्म , कर्तव्य तथा सदाचरण में तत्पर रहते हैं । धर्मज्ञ और गुरूजनों की सेवा सदा लगे रहते हैं । मन को वश में रखने वाले , क्षमाशील और सामर्थ्यशाली हैं । इसी प्रकार में उन स्त्रियों के घर में रहती हूं जो क्षमाशील जितेंद्रिय , सत्य पर विश्वास रखने वाली होती हैं जिन्हें देख कर सबका चित्त प्रसन्न हो जाता है । जो शीलवती, सौभाग्यवती , गुणवती , पतिपरायण , सबका मंगल चाहने वाली तथा सद्गुण संपन्न होती हैं “। यानि लक्ष्मी किसके पास आएंगी उनकी भी अपनी कुछ शर्तें और नियम हैं । केवल धनवान हो जाना ही सनातन परंपरा में विशेष मायने नहीं रखता उसके साथ साथ उपरोक्त सभी गुण होना भी आवश्यक है । हमारे वेदों और शास्त्रों में जीवन में के चार पुरूषार्थ -- धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष । इनका क्रम ऐसे ही तय नहीं किया गया है उसके पीछे हमारे मनीषियों , ऋषि मुनियों की गहन सोच थी । सबसे पहले धर्म धर्म का अर्थ यहां इंग्लिश के रिलीजन शब्द से ना लगाया जाए यहां इसका अर्थ है अपने कर्तव्यों को धारण करते हुए नैतिकता की राह पर चलना । और इस राह पर चल कर धन कमाना , धन से अपनी सांसारिक कामनाओं की पूर्ति करना और जीवन के सभी सुख भोग कर मोक्ष की राह पर चलना । माना गया है कि धर्म की राह पर चल कर कमाए गए धन से ही मोक्ष प्राप्ति की इच्छा मन में जागती है। दीपावली के अवसर पर प्रथम पूज्य गणेश के साथ लक्ष्मी पूजन की परंपरा सदियों से चली आ रही है । गणेश मंगलकारी , रिद्धि सिद्धि शुभ और लाभ के दाता हैं और लक्ष्मी भौतिक सुख साधनों की दात्री । लक्ष्मी की उपासना सबसे पहले भगवान नारायण ने बैकुठं लोक में महालक्ष्मी के रूप में की । ब्रह्मा जी ने दूसरी बार इनकी पूजा की फिर भगवान शिव ने भगवान विष्णु ने क्षीर सागर में इनकी उपासना की । इसके बाद स्वायंभुव , मनु , मानवेंद्र ,ऋषियों , मुनियों और फिर सद्गृहस्थों ने की । भगवती महालक्ष्मी स्वर्ग के राजा इंद्र के राज्य में सभी ऐश्वर्यों के साथ विराजमान थीं लेकिन महर्षि दुर्वासा के शाप के कारण राजा इंद्र को छोड़ कर सुमुद्र में चली गयी । श्रीहीन होने से राजा इंद्र और अन्य देवी देवताओं का सारा वैभव और ऐशवर्य चला गया । तब सबने मिल कर बैकुंठ लोक में जा कर नारायण से प्राथर्ना की कि कि किसी तरह लक्ष्मी स्वर्ग में फिर से लौट आएं । लक्ष्मी को फिर से पाने के लिए समुद्र मंथन किया गया देवताओं औऱ राक्षसों ने मिल कर मंथन किया समुद्र से निकले चौदह रत्नों में धरती के वासियों के लिए सबसे सुंदर उपहार लक्ष्मी ही थीं । समुद्र मंथन से निकली लक्ष्मी ने भी भगवान विष्णु को ही अपने पति के रूप में वरण किया । सनातन परंपरा में आदि शक्ति के तीन रूप है महाकाली , महालक्ष्मी और महासरस्वती । ये तीनों क्रम से तमो , रजो और सतो गुणों की प्रतीक हैं । हमारे समाज में घर की बेटी औ बहू की तुलना लक्ष्मी से की गयी है । किसीके धर बेटी जन्म लेती है तो कहा जाता है लक्ष्मी आयी है । और बहु आती है तो उसे गृह लक्ष्मी की पदवी दी जाती है । यहां ये विचारणीय है कि बेटी और बहू को काली या सरस्वती नहीं कहा जाता लक्ष्मी ही कहा जाता है । लक्ष्मी भगवान विष्णु की पत्नी हैं भगवान विष्णु जगत के पिता यानि पालनहार है । लेकिन भगवान विष्णु स्वयं कहते हैं कि उनकी शक्ति लक्ष्मी हैं । वही उनसे जगत का पालन करवाती हैं । श्रीमद् देवी भागवत पुराण में लक्ष्मी के सुंदर रूप का वर्णन है --- जो देवी अपनी स्नेहभरी दृष्टि से विश्व को निरंतर निरखती और लक्षित करती रहती हैं, वही अत्यंत गौरवांन्वित होने के कारण महालक्ष्मी के नाम से प्रसिद्ध हुईं । योगसिद्धि के कारण नाना रूपों में विराजमान हुईं । परिपूर्णतम , परमशुद्ध सत्वस्वरूपा भगवती लक्ष्मी संपूर्ण सौभाग्यों से संपन्न हो कर महालक्ष्मी के नाम से बैकुंठ में निवास करती हैं । प्रेम के कारण समस्त नारी समुदाय में उन्हें ही प्रधान माना गया । स्वर्ग में राजा इंद्र के यहां वे स्वर्ग लक्ष्मी के नाम से , पाताल में पाताल लक्ष्मी के नाम से , राजाओं या आज के संदर्भ में कहें तो सत्ता वर्ग के यहां राज्य लक्ष्मी के नाम से विराजती हैं । और आम समाज में वो घर घर में गृह लक्ष्मी के नाम से जानी जाती हैं । घर ग-स्थी चलाना बच्चों का पालन पोषण करना पूरे परिवार की स्नेह . ममता करूणा के भाव के साथ देख भाल करना गृह लक्ष्मी के गुण हैं । इसी लिए महिलाओं की तुलना ऐश्वर्य और सौभाग्य की अधिष्ठात्री देवी श्री महालक्ष्मी से घर की बहु बेटी की तुलना की गयी है । महालक्ष्मी गृहस्थों के घरों में संपूर्ण मंगलों को भी मंगल प्रदान करने वाली देवी संपत्ति स्वरूपा हो कर वास करती हैं । भूषण ,रत्न , फल, जल ,राजा, रानी ,दिव्य नारी ,गृह, संपूर्ण धान्य, वस्त्र, पवित्र स्थान, देवताओं की प्रतिमा ,मंगल कलश , माणिक्य ,मोतियों की सुंदर मालाएं , बहुमूल्य हीरे ,चंदन ,वृक्षों की सुंदर शाखाएं और नूतन मेघ इन सभी में भगवती लक्ष्मी का अंश विराजमान है । पालनहार भगवान विष्णु की शक्ति महालक्ष्मी पूरे जगत का ऐसे ही पालन करती है जैसे मां अपने नवजात शिशु को अपना दुध पिला कर पालती है । संपूर्ण सौभाग्य दायिनी होने के कारण महालक्ष्मी अनेक रूपों में पूजी जाती हैं । उन्हें अष्ट लक्ष्मी के रूप में पूजा जाता है । प्रचलित अष्टलक्ष्मी स्तोत्र के अनुसार अष्टरूप हैं -- आदि लक्ष्मी ,धान्य लक्ष्मी , धैर्य लक्ष्मी , गज लक्ष्मी , संतान लक्ष्मी , विजय लक्ष्मी , विद्या लक्ष्मी और आठवीं हैं श्री धन लक्ष्मी । आदि यानि जिसका ना आरंभ है ना अंत है जो सतत और शास्वत हैं । सृजन और संहार से परे हैं वो हैं आदि शक्ति । जो पूरे जगत का निरंतर पालन करती हैं । अब यदि आप अपनी समृद्ध परंपरा पर गौर करें तो पायेंगें कि देवी देवता बड़े बूढे जब किसी को आशीर्वाद देते हैं तो कहते हैं – “तुम्हारा घर सदा धान्य से भरपूर रहे “। खाद्यान्न , फल , सब्जी प्रदान करके धान्य लक्ष्मी भूख मिटाती है । जहां धान्य लक्ष्मी की कृपा रहती है वहां खाने पीने के किसी सामान की कमी नहीं रहती भंडारे सदा भरे रहते हैं । तीसरा रूप है धैर्य लक्ष्मी । मन में शांति विवेक और धैर्य से ही जीवन सुखद सरल रहता है । संकट विपत्ति और विपरीत समय होने पर मन में धैर्य धारण करके परिस्थिति का सामना करना और संकट से उबरना एक विवेकशील स्त्री और पुरूष दोनों के गुण हैं । औऱ ये गुण प्रदान करती हैं धैर्य लक्ष्मी । विपरीत परिस्थितियों में बहुत दुखी होना या फिर क्रोधित होना या फिर मानसिक संतुलन खो बैठना अपेक्षित नहीं होता । अगर किसी घर की स्वामिनी परिस्थितियों से निपटना ना जानती हो तो अनेक समस्याएं खड़ी हो जाती हैं । इसलिए मन में धीरज धरना बहुत ज़रूरी है । आपने देखा होगा कि पुरूषों के मुकाबले कठिन परिस्थितियों में महिलाएं भावनात्मक रूप से ज्यादा मज़बूत रहती हैं । और क्योंकि हर घर में महालक्ष्मी गृह लक्ष्मी के रूप में विराजमान हैं तो वो गृह लक्ष्मियों को धैर्य भी प्रदान करती हैं । गज लक्ष्मी ,भव्य सुंदर हाथी पर बैठी ऐशवर्य और शक्ति की प्रतीक गज लक्ष्मी राजसी शान और गौरव की प्रतीक हैं । मां का स्वभाव ही है अपने बच्चे का पालन पोष्ण करना सदा उस पर नज़र रखना उसके कल्याण और विकास में लगे रहना । संतान लक्ष्मी बच्चों पर अपनी कृपा बनाए रखती हैं । मां के रूप में महिलाओं से केवल संतान का पालन ही नहीं करवाती बल्कि प्यार से स्नेह से सावधानी से बच्चे के पल पल के विकास पर नज़र रखती हैं । अपने आशीर्वाद से संतान का कल्याण करती हैं । उन्हें बुद्दि . विकास और सफलता देती हैं । महालक्ष्मी का छठा रूप है विजय लक्ष्मी । कार्य सिद्धि हर कार्य में विजय . राजदरबार में, कोर्ट कचहरी में जीवन के रण में हर कार्य में सिद्धि देती हैं विजय लक्ष्मी । सा विद्या या विमुक्तये यानि जिसके द्वारा मुक्ति प्राप्त हो वही विद्या है । श्रुति , स्मृति , इतिहास पुराण , दर्शन आदि सभी एक स्वर से भगवती विद्या की स्तुति करते हैं । विद्या को अमृत भी कहा गया है । विद्या के स्वरूप भी समय काल परिस्थिति के अनुसार बदले । उच्च शिक्षा प्राप्त भी धन कमाने का साधन बन गया है । विद्या के बिना जीवन अधूरा है । ज्ञान चक्षु खुलने पर मनुष्य विवेक और बुद्धि प्राप्त करता है । लक्ष्मी केवल धन की प्रतीक नहीं है बल्कि जीवन के उच्च आदर्शों और सद्गुणों की प्रतीक भी हैं । केवल धनवान होना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि ज्ञानवान , बुद्धिमान , विवेकशील होना भी आवश्यक है । अष्ट लक्ष्मी के क्रम में आठवीं हैं धन लक्ष्मी । यानि धन सर्वोपरि नहीं उसके पहले बहुत से सद्गुणों का संचय होना चाहिए । केवल धम कमा लिया और मन को सुख नहीं या समाज में सम्मान नहीं तो फिर एसे धन का क्या लाभ । इसीलिए कहा गया है कि सद्गृहस्थों के घर में महालक्ष्मी उल्लू वाहिनी नहीं होनी चाहिए गरूड़ वाहिनी होनी चाहिए . गरूड़ वाहिनी लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ निवास करती हैं और सद् मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं । काला धन कमा कर भौतिक सुख सुविधाएं सब जुटायीं जा सकती हैं लेकिन जीवन का सच्चा सुख औऱ आनंद गरूड़ वाहिनी लक्ष्मी ही देती हैं । आज जीवन में महालक्ष्मी के ये आठ रूप धर्म , अर्थ काम मोक्ष जीवन के चारों पुरूषार्थ प्रदान करते हैं । नोट – लोक रक्षा के लिए आदि शक्ति ने श्री या कहें तो लक्ष्मी का रूप धरा । श्री और लक्ष्मी सबके लिए लक्ष्यमाणा होती हैं लोग जिससे आकृष्ट होते हैं जिसका लक्ष्य करते हैं जिसका आक्षय चाहते हैं वही लक्ष्मी हैं श्री हैं । शक्ति का श शब्द है वो ऐशवर्य का प्रतीक है । क्ति पराक्रम का प्रतीक है । ऐश्वर्य और पराक्रम दोनों देने वाली शक्ति कहलाती हैं । सभी ऋद्धि सिद्धि की अधिष्ठात्री समस्त वैभव की जननी समस्त सुख सुहाग ऐशवर्य की दात्री हैं । महर्षियों ने स्त्रियों को शक्ति स्वरूपा बताया है महर्षि आत्रेय ने चरक संहिता में माता, बहन बेटी ,पत्नी और पुत्रवधु अनेकों अनंत रूप धारण करके समाज में शक्ति का संचालन करती हैं । महर्षि आत्रेय के अनुसार स्त्रियों में प्रीति का वास है वो जननी हैं धर्म का वास स्त्रियों में हैं इसलिए धर्म पत्नी हैं । अर्थ स्त्रियों में है इसलिए लक्ष्मी हैं । माया प्रकृति और शक्ति तीनों एक हैं लेकिन अनेक रूप हैं और ये आठ लक्ष्मियां भी शक्ति के ही विभिन्न रूप हैं ।
http://rasbatiya.blogspot.com/

सोमवार, सितंबर 22

नवरात्र में देवी का भोग


नवरात्र में कन्या पूजन

पहले नवरात्र को एक कन्या से आरंभ करके नौवें नवरात्र तक नौ कन्याओं का पूजन करें प्रतिदिन एक एक कन्या बढ़ाते जाएं । कन्या पूजन में दो वर्ष की आयु पूरी कर चुकी कन्या से लेकर दस वर्ष तक की कन्या को पूजन करें । कन्या की आयु स्वरूप पूजन का फल दो वर्ष कुमारी दुख दरिद्र नाश तीन वर्ष त्रिमूर्ति धर्म ,अर्थ काम की सिद्धि धन , धान्य , संतान की वृद्धि चार वर्ष कल्याणी राज सुख,विजय संपूर्ण मनोकामना पूर्ति पांच वर्ष रोहिणी रोग नाश छह वर्ष कालिका शत्रु का शमन सात वर्ष चंडिका ऐश्वर्य, धन की पूर्ति आठ वर्ष शांभवी दुख दरिद्र का नाश , संग्राम में विजय नौ वर्ष दुर्गा कठिन कार्यसिद्धि,दुष्ट शत्रु का संहार दस वर्ष समुद्रा सर्व मनोरथ सफलता

शक्ति की आराधना का पर्व नवरात्र ।

शारदीय नवरात्र – शक्ति की आराधना का पर्व त्वं परा प्रकृति: साक्षाद् ब्रह्मण: परमात्मन: । त्वतो जातं जगत्सर्वं त्वं जगज्जननी शिवे ।। --- हे शिवे तुम परब्रहम परमात्मा की परा शक्ति हो , तुम्ही से सारे जगत की उत्पत्ति हुई है तुम्ही विश्व की जननी हो । प्रकृति की जितनी भी शक्तियां हैं वे सब ईश्वरीय शक्ति की ही अभिव्यक्तियां है . इसीलिए मूलशक्ति को सर्व सामर्थ्य युक्त कहा गया है । पुरी दुनिया में जहां कहीं भी शक्ति का स्फुरण दिखता है वहां सनातन प्रकृति अथवा जगदम्बा की ही सत्ता है । ये शक्ति मां की तरह सृष्टि को विकास से पहले अपनी कोख में रखती है उसकी वृद्धि और पोषण करती है उसका प्रसार करती है। और फिर उत्पन्न हो जाने पर उसकी रक्षा करती है । यही शक्ति ब्रहमा , विष्णु और महेश की जननी है । शक्ति विहिन होने पर ब्रहमा , विष्णु और महेश भी कुछ नहीं कर पाते । प्रकृति यानि प्र जिसका अर्थ है प्रकृष्ट और कृति का अर्थ है सृष्टि सृष्टि करने में जो परम प्रवीण है उसे देवी प्रकृति कहते हैं । प्रकृति तमो , रजो और सतो गुण से संपन्न है । सृष्टि के आदि में जो देवी विराजमान रहती है उसे प्रकृति कहते हैं । और सृष्टि के अवसर पर जो परब्रह्म परमात्मा स्वयं दो रूपों में प्रकट हुए प्रकृति ओर पुरूष दायां अंग पुरूष और बांया अंग प्रकृति यानि शक्ति । यही प्रकृति बह्म स्वरूपा , नित्या और सनातनी है . भगवती दुर्गा शिव स्वरूपा हैं आदि देव महादेव की पत्नी हैं । ब्रह्मादि देवता ऋषि मुनि इनकी आराधना करते हैं । यश, मंगल , सुख मोक्ष औऱ हर्ष प्रदान करती हैं औऱ दुख शशोक हरती हैं । देवों के देव महादेव की अपार शक्ति हैं उन्हें परम श्कतिशाली बनाए रखती हैं । ये अनंता है समय पड़ने पर अनेक रूपों में जन्म लेती हैं दुष्चों का संहार करती हैं । देवी प्रकृति का दूसरा स्वरूप भगवती लक्ष्मी हैं । परम प्रङु श्री हरि की शक्ति हैं । संपूर्ण जगत की सारी संपत्तियां उनके स्वरूप हैं औऱ संपत्ति की अधिष्ठात्री देवी माना गया है । ये परम सुंदर ,शांत अति उत्तम स्वभाव वाली और समस्त मंगलों की प्रतिमा हैं । अपने पति श्री हरि से वो अति प्रेम करती हैं औऱ श्री हरि भी उनसे बहुत प्रेम करते हैं । इसलिए भगवान विष्णु के अनेक नामों में से कुछ नाम हैं श्रीधर श्री निवासन आदि । महालक्ष्मी के रूप में देवी का ये परम स्वरूप वैकुण्ठ में ङी हरि की सेवा करता है और स्वर्ग में स्वर्ग लक्ष्मी राजाओं के यहां राजलक्ष्मी और गृहस्थियों के यहां गृहलक्ष्मी के रूप में व्यापारियों के यहां वाणिज्यरूप में विराजती हैं । वाणी , विद्या, बुद्धि और ज्ञान की देवी हैं सरस्वती । मनुष्यों को बुद्धि , कविता , मेधा ,प्रतिभा और स्मरण शक्ति उन्हीं की कृपा से प्राप्त होती है । स्वर संगीत औऱ ताल उन्हीं के रूप हैं । सिद्धि विद्या उनका स्वरूप हैं वे व्याख्या और बोध स्वरूपा हैं । शांत तपोमयी देवी सरस्वती श्वेत वस्त्र धारण करती हैं औऱ हाथ में वीणा पुस्तक लिए रहती हैं । देवी प्रकृति के इन्हीं तीनों रूपों के पूजन औऱ आराधना का पर्व हैं नवरात्र यानि नौ रात्रियां । वर्ष में दो बार ऋतुओं के संधिकाल में नवरात्र आते हैं । वासंतिक नवरात्र और शारदीय नवरात्र । वासंतिक नवरात्र शात ऋतु औऱ वसंत ऋतु के संधिकाल में आते हैं इसलिए वासंतिक नवरात्र कहलाते हैं . वासंतिक नवरात्र चैत्रप्रतिपदा से आरंभ होते हैं और शारदीय नवरात्र वर्षाऋतु औऱ शरद ऋतु के संधिकाल में आते हैं । इन नौ दिनों में परम शक्ति के नौ रूपों की आऱाधना की जाती है। त्रेता युग से पहले केवल वासंतिक नवरात्र होते थे युग में मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान राम को अति बलशाली लंकापति रावण पर विजय पाने के लिए शक्ति चाहिए थी और हिंदु कैलेंडर के आश्विन महीने के शुक्ल पक्ष से लेकर नवमी तक उन्होनें आदि शकित जगत जननी मां जगदंबा की आराधना की । मां भवानी ने ना केवल उन्हें अष्टमी के दिन दर्शन दिए बल्कि लंका पर विजय पाने के लिए अपार शक्तियां भी दीं । लंकापति रावण भी आदि देव महदेव का परम भक्त था । उसके पास भी भगवान शिव की दी अनेक सिद्धियां और बल था । लेकिन आज् शख्ति की कृपा से ही भगवान राम रावण का वध कर सके और लंका पर विजय पा सके । सनातनम परंपरा के अनुसार आश्विन महीना चातुर्मास का तीसरा महीना है । चातुर्मास में सभी देवी देवता शयन करते हैं । भगवान श्री राम को देवी मां का अकालबोधन करना पड़ा अकालबोधन यानि असमय पुकारना । औऱ उनकी पुकार पर मां आयीं भी पश्चिम बंगाल में आज भी दुर्गा पूजा के समय अकालबोधन एक महत्वपूर्ण पूजा विधी है । इसके बिना दुर्गा पूजा संभव नहीं है । नवरात्र नौ दिन का पर्व है शाक्त परंपरा ( शक्ति की उपासना ) में नवरात्र को तीन भागों में बांटा गया है । पहले तीन नवरात्र में मां भगवती के महाकाली रूप का पूजन । दुर्गा का भक्त अपने तमो गुण दूर करता है । बीच के तीन चौथे ,पांचवें और छठे नवरात्र को मां के महालक्ष्मी रूप का पूजन कर अपनी भक्ति से रजोगुण प्राप्त करता है । महालक्ष्मी दुनिया के सभी सुख ,सुविधाएं ऐश्वर्य और संपदाएं देती हैं । अंतिम तीन नवरात्र सांतवां आठवां और नौवां महासरस्वती का पूजन होता है । तमोगुण दूर करके रोज गुण प्राप्त करके सतो गुण की ओर बढता है औऱ ज्ञान का प्राप्ति करता है । भले ही नवरात्र महाकाली , महालक्ष्मी और महासरस्वती के तीन रूपों की आराधना है लेकिन आम देवी भक्त इन नौ दिनों में दुर्गा के नौ रूपों की पूजा करते हैं – क्रम से शैलपुत्री , ब्रह्चारिणी , चंद्रघंटा , कूष्मांडा , स्कंदमाता , कात्यायनी , कालरात्रि , महागौरी और नवें औऱ अंतिम दिन सिद्धीदात्री स्वरूप की पूजा की जाती है । नवरात्र तन और मन के शोधन का पर्व है। जब हम एक ऋतु से दूसरी ऋतु में प्रवेश करते हैं तो हमें अपनी काया के शोधन की आवश्यकता होती है । हर ऋतु का खानपान अलग है । इसलिए अगली ऋतु के लिए अपने शरीर को तैयार करने से पहले ऋतुओं के संधिकाल में शरीर को डिटॉक्सीफाई करना ज़रूरी है । इसीलिए नवरात्र में आम दिन खाए जाने वाले भोजन दाल रोटी सब्जी चावल को त्याग किया जाता है फलाहार लिया जाता है । नवरात्र शरीर में नव उर्जा का संचार करते हैं । और नवरात्र में की गयी साधना मन और आत्मा का शोधन करती हैं । तन और मन स्वस्थ प्रसन्न रहने पर ही व्यक्ति अपना हर काम ठीक से कर सकता है और दुनिया के समस्त सुखों को भोगता हुआ मोक्ष की राह पर चल सकता है । इसलिए नवरात्र पर्व के मर्म को समझते हुए परम शक्तिशाली नवरात्र पर्व में अपने तन मन का शोधन करें। ज्ञान , भक्ति और तप की राह पर चलते हुए अपने जीवन को हर दृष्टि से सफल बनाने का प्रयास करें ।

रविवार, अगस्त 31

पर्यूषण पर्व ----धर्म जीवन को संवारता है गढ़ता है । अंहकार का भाव ना रखूं , नहीं किसी पर खेद करूं । देख दूसरों की बढ़ती को कभी ना ईष्या भाव धरूं ।। रहे भावना ऐसी मेरा सरल सत्य व्यवहार करूं । बने जहां तक इस जीवन में औरों का उपकार करूं ।। ये कुछ पंक्तियां है -- “मेरी भावना “ की जो हम अपने स्कूल में हर रोज़ सुबह प्रार्थना के समय गाते थे । आज तक मेरी भावना पूरी याद है भूली नहीं . भूलीं ही नहीं बल्कि जीवन में अनेक बार जब दुविधा में मन होता है तो मेरी भावना मन ही मन दोहरा लेती हूं । कच्ची क्लास से लेकर ( जी हां मैं हिंदी माद्यम स्कूल से पढ़ी हूं उस समय नर्सरी और केजी नहीं होती कच्ची पक्की क्लास होती थी ) दसवीं कक्षा तक हर रोज़ हमारा दिन स्कूल में नमोकार मंत्र , मेरी भावना, भगवान महावीर जी की आरती और राष्ट्र गान से शुरू होता था । मैं जैन स्कूल से पढ़ी हूं । हमारा स्कूल श्वेतांबर 13 पंथी स्थानक वासी था । हमारे घर पर भले ही कट्टर सनातन धर्म का पालन होता था लेकिन स्कूल में जैन धर्म का कड़ा पाठ पढ़ाया गया । स्कूल चूंकि जैन प्रबंधन का था इसलिए आसपास जैन धर्म को मानने वाले बहुत से लोग रहते थे । स्कूल में अनेक पदों पर जैन ही थे । बचपन से जैन धर्म के कठोर अनुशासन ने ऐसा ही बना दिया था जैसे फौज में जवानों और अफसरों की कड़ी ट्रेनिंग होती है । स्कूल में प्याज़ अंडा मीट आदि का लंच कोई नहीं ला सकता था । अगर कोई पकड़ा जाता था तो कोई सुनवाई नहीं सीधे स्कूल से निष्कासन । स्कूल में स्थानक थी जहां जैन साधु और साध्वियां आकर समय समय पर प्रवास करते थे । चौमासे में तो महाराज जी ( जैन साधु और साध्वियां ) प्रवास करते ही थे वैसे भी समय समय पर आते रहते थे । क्योंकि हमारे स्कूल में पाली भाषा के जैन ग्रंथों की दुर्लभ लायब्रेरी थी और धर्म गुरूजी भी थे जो जैन साधु साध्वियों को पढाते थे और हमारे स्कूल में धर्म का पीरियड़ लेते थे । बाकी सारे पीरियड़ 45 मिनट के होते थे लेकिन धर्म का पीरियड़ एक घंटे का होता था । हर साल धर्म की परीक्षा होती थी । मैनें मेरी बहन और अन्य बहुत से छात्रों ने नवकार , रजत और स्वर्ण और हीरक परीक्षाएं पास की । जैन धर्म की साल में एक बार परीक्षा होती थी बोर्ड लुधियाना में था हमारे प्रश्न पत्र वहीं से बन कर आते थे और वहीं उत्तर पुस्तिकाएं जांची जाती थीं । उस समय कभी कभी बहुत कोफ्त होती थी हे भगवान अपना भी पढो औऱ उपर से धर्म भी पढ़ो लेकिन अब लगता है कितना अच्छा किया हमारे स्कूल ने जो धर्म का पीरियड़ रखा । हमें बेहतर इंसान बनाया हमारे दिल में दया धर्म परोपकार जैसे गुण जगाए । स्कूल मे जैन साधु साध्वियों का प्रवास रहता था उनके अति कठिन नियम देख कर हम सोचते थे कैसे ये लोग ऐसा जीवन जी लेते हैं । सचमुच जैन धर्म के साधु संतों का जीवन बहुत कठिन और त्याग से भरपूर है । जब भी किसी महाराज जी का आगमन होता तो हम बैंड बाजे के साथ महाराज जी की अगवानी करने जाते । पांचवीं कक्षा से दसवीं तक के बच्चे लाईन बना कर पूरे जुलूस की शक्ल में जाते और महाराज जी की अगवानी करके लाते । जब महाराज विहार ( प्रस्थान ) करते तब भी वैसे ही विदा किया जाता जैसे अगवानी की जाती थी । जैन धर्म में चौमासे के अलावा कहीं भी ज्यादा दिन महाराज जी नहीं रूक सकते । जैन साधु आते तो लड़को की ड्यूटी स्थानक में लगती थी । गुरू जी से नोट्स लेना देना महाराज जी को आहार (भोजन ) के लिए ले जाना स्कूल के छात्रों के जिम्मे रहता था । और जब साध्वियों का प्रवास होता तो छात्राओं की ड्यूटी रहती थी । दिन छिपने के बाद साधुओं के पास कोई लड़की नहीं जा सकती और साध्वियों के पास कोई लड़का नहीं जा सकता । महाराज जी बिजली का स्विच ना ऑन करते हैं ना ऑफ करते हैं । इसलिए उनके पास रहना ज़रूरी होता था । वो अपना पठन पाठन करते और हमें भी साथ साथ ज्ञान देते रहते । उनकी सीख जीवन में बहुत काम आयीं हमें बहुत अच्छा इंसान बनाया । चातुर्मास के बीच में आते पर्यूषण पर्व । आठ दिन के इस पर्व में महाराज जी के अलावा जैन धर्म के अनेक विद्वान आते घंटो प्रवचन होते । इन 8 दिनों में पढ़ाई ना के बराबर होती थी । सभी जैन अपने घर में सवा-- सवा लाख के नमोकार मंत्रों का जाप रखते । एकासना करते । पाठ करने वालों की सूचियां पहले से बन जातीं हम भी नमोकार मंत्र का जाप करते एक एक घंटे की पारी लगती । उन दिनों में स्कूल जाना थोड़ी बोरियत लगती शायद बचपन में धर्म की गंभीर चर्चा किसी को भी इतना ही बोर करती । हमने इन दिनों के लिए अपने कुछ गेम ईजाद कर रखे थे । स्कूल के हॉल में बैठे बैठे वही गेम खेलते चुपचाप किसी को पता ना चले । जैसे जैसे बड़े हुए बात समझ आने लगी । जब स्कूल पास करके बाहर निकले तो धर्म के उस पीरियड़ , महाराज जी की सेवा और उन प्रवचनों का असर जीवन में दिखा पर्यूषण पर्व के अंतिम दिन होती थी संवत्सरी यानि क्षमा पर्व जिसमें हम सब एक सुर में अपने जाने अंजाने में किए हुए पापों के लिए जाने अंजाने में किसी का दिल दुखाने के लिए दिल से क्षमा मांगते । क्षमा ही नहीं बल्कि एक संकल्प भी --- करूं नहीं कराऊं नहीं अनुमोदु नहीं वचन से का संकल्प भी लेते । जैन धर्म के 25 बोल में से एक बोल है ये जिसका अर्थ है --- ना में कोई पाप और बुरा कर्म करूं , ना कराऊं औऱ ना ही अनुमोदन करूं । महाराज जी हमें हमेशा बताते थे कि केवल बुरे कर्म करने से ही पाप नहीं लगता बल्कि किसी दूसरे करवाने और उकसाने का भी उतना ही पाप है । यहां तक कि अगर किसी बुरे कर्म करने वाले को आपने कहा कि बहुत अच्छा किया । उसका भी उतना ही पाप है । सनातन धर्म , जैन धर्म और सिख धर्म की जिस मज़बूत नींव पर बचपन की शिक्षा दीक्षा हुई उसने एक व्यापक सोच दी । अच्छे बुरे ,पाप पुण्य का अंतर समझाया । “आजकल सेकुलरज़िम के नाम पर स्कूलों से MORAL EDUCATION समाप्त कर दी गयी है उससे समाज का ही नुकसान हो रहा है “--- हिंदु धर्म के पुरोधा औऱ स्कॉलर सांसद कर्ण सिंह ने संयुक्त राष्ट्र के एक कार्यक्रम में दिल्ली में चिंता जतायी थी । और उनकी चिंता बहुत स्वाभाविक भी है । सेकुलरज़िम सर्व धर्म सम भाव का पाठ पढाता है ना कि किसी एक धर्म को अच्छा या बुरा बताता है। धर्म को बहुसंख्यक और अल्पसंख्यक की दीवार में नहीं बांटता । हर धर्म सुंदर है हर धर्म नैतिकता का पाठ पढ़ाता है । मेरा अपना अनुभव बहुत अच्छा है । जैन स्कूल में पढ़ने और उनके कठोर नियमों के पालन ने मुझे सनातन धर्म से दूर नहीं किया , लगभग हर संडे या फिर महीने में एक बार नाड़ा साहिब गुरूद्वारा जाने से मैं सिख नहीं बन गयी लेकिन धर्मों के इस सुंदर मिश्रण ने मेरे जीवन को भी सुंदर बनाया । जीने की नेक और अच्छी राह सिखायी । जिस तरह का सेकुलरज़िम आज चलन में है उस से तो मैं दूर रहना ही बेहतर समझूंगी ।

parushan parv . jain dharam , moral education


गुरुवार, अगस्त 21

मौका चूक गए बाबा रामदेव .... डरते नहीं तो आज होते संत सिपाही

मौका चूक गए बाबा रामदेव ---- --------------------------------------------- योगगुरू बाबा रामदेव आजकल ना जाने कहां हैं । केंद्र में नयी सरकार के गठन के बाद जिस तरह की भूमिका की उनसे अपेक्षा की जा रही थी वो दिखना तो दूर बाबा ही नदारद हैं । चुनावों से पहले जिस तरह बाबा ने सिंह नाद किया था उससे बहुत सी उम्मीदें जगीं थीं । बाबा रामदेव ने योगभ्यास को एक नवजीवन दिया इसमें दो राय नहीं हैं . योग की क्रांति बाबा ने जन जन में ला दी । लेकिन बाबा चूक गए ।दिल्ली के रामलीला मैदान में यदि बाबा ने उस दिन बहादुरी दिखायी होती तो आज सारा परिदृश्य बदला होता . बाबा रामदेव औरतों के कपड़े पहन कर छुप कर ना भागते तो आज उन्हें संत सिपाही के रूप में माना जाता । बाबा रामदेव हरिद्वार में पले बढ़े वहां संतों और बाबाओं की लंबी परंपरा है . एक बार दुनिया त्याग दी तो फिर डर किसका । अपने लिए नहीं जीना समाज के लिए जीना है तो फिर गोली बंदूक का डर क्यों । इसी बात पर आपको ऋषिकेश के स्वर्ग आश्रम की एक सच्ची घटना बताती हूं । ये बात 20 वीं सदी के आरंभ की है . स्वर्ग आश्रम में एक बाबा होते थे काली कंबली वाले . सच्चे साधु, सच्चे संत, सच्चे तपस्वी उनकी एकमात्र संपत्ति थी उनका काला कंबल इसीलिए उनका नाम पड़ गया काली कंबली वाले बाबा । आज से लगभग 114 साल पहले हरिद्वार ऋषिकेश में घने जगंल होते थे । ना आज की तरह सड़के थी और ना ही इतनी आबादी । लोग कारवां में आते थे हरिद्वार स्नान करने । इस इलाके में एक दुर्दांत डाकू होता था गुज्जर जाति का सुलतान । सुलतान अमीर तीर्थयात्रियों को लूटता था । संपन्न आश्रमों में डाका डालता था और दिन के समय आता था । लेकिन उसके भी कायदे कानून थे । डाका डालने से पहले वो आश्रम को दो दिन पहले सूचना दे देता था । एक बार उसने स्वर्ग आश्रम को सूचना भेजी की वो लूटने आ रहा है । बाबा काली कबंलीवाले आश्रम के कर्ता धर्ता थे । बाबा ने आश्रम के सभी निवासियों से कहा कि घबराना नहीं मैं सब संभाल लूंगा । जिस दिन गुज्जर सुलतान को आना था बाबा ने सबको अपने अपने कमरों में ही रहने की हिदायत दी और स्वयं खजाने की चाबियां लेकर आश्रम के मुख्य द्वार के पास बैठ गए । सुल्तान डाकू 6 अन्य डाकूओं के साथ हथियारों से लैस हो कर घोड़ों पर आया । बाबा ने आगे बढ़ कर सुल्तान का स्वागत किया । उसे खजाने की चाबियां थमाई और कहा -- "सुल्तान तुम्हें आश्रम के खजाने से जो लेकर जाना है ले जाओ . लेकिन तुम किसी की भी जान नहीं लोगे एक भी गोली नहीं चलाओगे । अगर मारना ही है तो मुझे मारना "। बाबा ने सुल्तान की आवभगत की भी पूरी तैयारी कर रखी थी । बाबा काली कबंलीवाले ने सुल्तान और उसके साथियों को पानी पिलाया और कहा -- "थोड़ी देर विश्राम कर लो फिर खजाना लूट लेना । तुम्हारे और तुम्हारे साथियों के लिए मैने भोजन बनवा कर रखा है भोजन करे बिना मत जाना । मुझे तुमसे ना कोई दुश्मनी है ना तुम्हारा डर है । इस इलाके का सर्वोच्च पुलिस ऑफिसर मेरा भक्त है . मैं चाहता तो पूरे स्वर्ग आश्रम को छावनी में बदल देता . लेकिन नहीं तुम मेरे लिए एक इंसान हो । ये तुम्हारा पेशा है इसलिए मैनें कुछ नहीं किया मेरे लिए धन दौलत और मेरे प्राण कोई मायने नहीं रखते "। सुल्तान डाकू सन्न रह गया । उसे उम्मीद ही नहीं थी कि बाबा काली कंबली वाले इतनी आसानी से खजाने की चाबी दे देंगें और उसकी दिल से आवभगत करेंगें । वो बाबा के पैरों में गिर पड़ा उसके पास जितनी सोने की अशरफियां थीं उसने बाबा को थमा दी कहा मेरी तरफ से आश्रम को दान । उसने प्रेम पूर्वक अपने साथियों सहित बाबा का बनवाया हुआ भोजन किया और चला गया । अगर बाबा रामदेव दिल्ली के रामलीला मैदान में उस रात को दिल्ली पुलिस के सामने सीना तान कर खड़े हो जाते और कहते -- पहली गोली मेरे उपर चलाना औऱ मेरी लाश के उपर से गुज़र कर मेरे भक्तों पर हमला करना तो दिल्ली पुलिस में इतनी हिम्मत ना होती कि वो निहत्थे और मासूम लोगों पर कहर ढ़ाती. और ना ही बाबा को औरतों के कपड़े पहन कर भागना पड़ता । खैर अब तो बाबा रामदेव मौका चूक चुके हैं । ( बाबा काली कंबली वाले का ये किस्सा shri M की किताब -- APPRENTICED TO A HIMALAYAN MASTER --- AN AUTOBIOGRAPHY OF A YOGI में लिखा है ये सच्ची घटना है )

मंगलवार, जुलाई 8

Sarjana Sharama Timeline Recent Status Photo / Video Place Life Event Status Photo / Video Place Life Event Sarjana Sharama 49 minutes ago · Edited माता पिता की सेवा में अपार शक्ति - भगवान भी युगों से खड़े हैं भक्त की प्रतीक्षा में -------------------------------------------------------------------------------------------- एक बहुत प्राचीन पौराणिक कथा है कि बुदधिमान गणेश ने अपने माता पिता शंकर की परिक्रमा करके कह दिया था कि उन्होनें पूरी दुनिया का चक्कर लगा लिया क्योंकि उनके लिए माता पिता ही पूरी दुनिया हैं... See More LikeLike · · Promote · Share Sarjana Sharama 2 hours ago · Edited महिलाओं को आज़ादी , कितनी हद तक --------------------------------------------------- ज़ी टीवी के " ज़िदंगी " चैनल पर आजकल पिछले कुछ दिन से एक सीरियल देख रही हूं -- ज़िदंगी गुलज़ार है ---- मेरी बहन देखती है तो उसके के कारण मैं भी देखने लगी । बहुत ही बढ़िया सीरियल है । पाकिस्तानी सीरियल मैं पहले भी बहुत देखती थी 90 के दशक में वीसीआर पर बाज़ार से पाकिस्तानी सीरियलों के कैसेट मिलते थे । धूप किनारे मेरा सबसे पसंदीदी सीरियल था । बहुत इमोशनल कहानियां , पात्र बहुत अच्छे । महिला किरदारों के सूट और बाकी की dresses देख कर ही मन खुश हो जाता है । इतने खुशनुमा रंग और डिज़ाईन । खैर अब 21 वीं सदी में ज़िदगी चैनल ने फिर से पाकिस्तानी समाज में झांकने का मौका दिया है । पाकिस्तान की जो तस्वीर हमारे मन में है ये सीरियल उसे तोड़ता है । वहां का आधुनिक समाज हमारे समाज से मिलता जुलता है । तीन मेहनतकश संस्कारी बहनों और उनकी मां के आसपास घूमती हैं कहानी में दो परिवार ऐसे भी हैं जिनकी बेटियां बहुत आधुनिक होने के साथ साथ अपनी शर्तों पर जीवन जीती हैं . सीरियल का नायक ज़ारून इन दोनों किरदारों से परेशान है . एक किरदार उसकी अपनी बहन है जो शादीशुदा होने के बाबजूद अपने पुरूष मित्रों के साथ कहीं भी कभी भी और किसी समय भी चली जाती है । जा़रून की बहन को उसकी मां की पूरी पूरी शै है । और दूसरा किरदार उसकी अपनी महिला मित्र है जो अब उसकी मंगेतर बन चुकी है । वो उसके लाइफ स्टाईल से बेहद परेशान है । यहां तक कि अपनी मां के लाईफ स्टाइल से भी वो खुश नहीं है । बहन जो कि तलाक लेने पर उतारू है उसे बहुत समझाता है कि वो अपने पति की बात माने । और अपनी मंगेतर को भी साफ शब्दों में कहता है कि वो इस तरह से उसकी जानकारी के बैगर कहीं भी मुंह उठा कर ना चल दे। यहां तक की साफ भी कर देता है कि इन हालात में शादी करना मुमकिन नहीं होगा । ज़ारून पढ़ा लिखा है और उंचे ओहदे पर बैठा सरकारी अफसर है । ज़िदंगी गुलजा़र है --- के ज़ारून की जो चिंता है उसे सीरियल के निर्माता निर्देशक ने बहुत सुंदरता के साथ बहुत नफीस तरीके पेश किया है और बहुत से सवाल हमारे सामने छोड़े हैं । क्या महिलाओं की आजा़दी का मतलब केवल इतना है कि स्वच्छदंता के साथ कहीं भी मुंह उठा कर किसी के भी साथ देर सबेर चल दो । देर रात तक घर से बाहर रहो । ये पाकिस्तानी समाज की ही नहीं हमारे समाज की भी समस्या है । - this is my life , i am 21st century women . i will live life on my terms and conditions . ये जुमले आप आजकल ज्यादातर महिलाओं के मुंह से सुन सकते हो । इसी सीरियल में एक और किरदार है कशफ मुर्तजा जिसके पिता ने केवल इसलिए दूसरी शादी कर ली कि वो तीन बहनें थीं । लेकिन तीनों बहनों को उनकी मां ऊंची तालीम देती है . कशफ भी हमारे आईएएस अफसर के बराबर सरकारी अफसर बन जाती है लेकिन जीवन के कायदे कानून नहीं भूलती । कॉ़लेज के दिनों में भी और बड़ी अफसर बनने के बाद भी । जारून और कशफ की आर्थिक हैसियत में बहुत अंतर है लेकिन ज़ारून को शादी के लिए कशफ जैसी लड़की चाहिए । मैं ज़ारून की चिंता से , सरोकारों से हमदर्दी रखती हूं और बहुत हद तक सहमत भी हूं । देर रात तक घर से बाहर गैरों के साथ घूमने को यदि महिलाओं की आज़ादी माना जाए तो शायद आजा़दी का पैमाना ही ग़लत है । पढना लिखना ज़हीन बनना और स्वच्छंद होना दो अलग बातें हैं । हम महिलाएं ये क्यों सोचती हैं कि बिल्कुल मर्दों जैसा लाइफस्टाइल अपना कर हम आधुनिक हो जायेंगें या बराबरी का दर्जा मिल जाएगा । आधुनिकता विचारों में होनी चाहिए । हमें अपने परिवार के बेटों को बेटियों से बेहतर होने का गुमान मन में नहीं पालने देने चाहिए । जब समाज के नज़रिए में परिवर्तन आएगा तो महिलाओं के हालात खुद बखुद बेहतर हो जाएंगें । ज़िदंगी गुलज़ार है केवल पाकिस्तान के उच्च और और उच्च मध्यम वर्ग की समस्याओं का आइना नहीं है हमारे समाज में अनेक परिवार इसी तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं । और यही कारण है कि परिवार टूट रहे हैं । मेरी बहन वकील है और out of court settlement के मामलों में mediation करती हैं । कईं बार घर आ कर सिरदर्द की गोली खाती हैं । मेरी बहन और अन्य महिला वकीलों का अनुभव है कि 80 फीसदी मेटरीमोनियल मामलों में लड़की और उसके माता पिता विशेषकर मां की भूमिका बहुत खराब है । और दहेज विरोधी कानून की आड़ में मनमानी करती हैं । हां कुछ मामले बहुत गंभीर किस्म के हैं जिनमें लड़की और उसका परिवार भुक्त भोगी है । सुखी खुशहाल परिवार की नींव परिवार के सभी सदस्य मिल कर रखते हैं ।
Sarjana Sharama Timeline Recent Status Photo / Video Place Life Event Status Photo / Video Place Life Event Sarjana Sharama 49 minutes ago · Edited माता पिता की सेवा में अपार शक्ति - भगवान भी युगों से खड़े हैं भक्त की प्रतीक्षा में -------------------------------------------------------------------------------------------- एक बहुत प्राचीन पौराणिक कथा है कि बुदधिमान गणेश ने अपने माता पिता शंकर की परिक्रमा करके कह दिया था कि उन्होनें पूरी दुनिया का चक्कर लगा लिया क्योंकि उनके लिए माता पिता ही पूरी दुनिया हैं... See More LikeLike · · Promote · Share Sarjana Sharama 2 hours ago · Edited महिलाओं को आज़ादी , कितनी हद तक --------------------------------------------------- ज़ी टीवी के " ज़िदंगी " चैनल पर आजकल पिछले कुछ दिन से एक सीरियल देख रही हूं -- ज़िदंगी गुलज़ार है ---- मेरी बहन देखती है तो उसके के कारण मैं भी देखने लगी । बहुत ही बढ़िया सीरियल है । पाकिस्तानी सीरियल मैं पहले भी बहुत देखती थी 90 के दशक में वीसीआर पर बाज़ार से पाकिस्तानी सीरियलों के कैसेट मिलते थे । धूप किनारे मेरा सबसे पसंदीदी सीरियल था । बहुत इमोशनल कहानियां , पात्र बहुत अच्छे । महिला किरदारों के सूट और बाकी की dresses देख कर ही मन खुश हो जाता है । इतने खुशनुमा रंग और डिज़ाईन । खैर अब 21 वीं सदी में ज़िदगी चैनल ने फिर से पाकिस्तानी समाज में झांकने का मौका दिया है । पाकिस्तान की जो तस्वीर हमारे मन में है ये सीरियल उसे तोड़ता है । वहां का आधुनिक समाज हमारे समाज से मिलता जुलता है । तीन मेहनतकश संस्कारी बहनों और उनकी मां के आसपास घूमती हैं कहानी में दो परिवार ऐसे भी हैं जिनकी बेटियां बहुत आधुनिक होने के साथ साथ अपनी शर्तों पर जीवन जीती हैं . सीरियल का नायक ज़ारून इन दोनों किरदारों से परेशान है . एक किरदार उसकी अपनी बहन है जो शादीशुदा होने के बाबजूद अपने पुरूष मित्रों के साथ कहीं भी कभी भी और किसी समय भी चली जाती है । जा़रून की बहन को उसकी मां की पूरी पूरी शै है । और दूसरा किरदार उसकी अपनी महिला मित्र है जो अब उसकी मंगेतर बन चुकी है । वो उसके लाइफ स्टाईल से बेहद परेशान है । यहां तक कि अपनी मां के लाईफ स्टाइल से भी वो खुश नहीं है । बहन जो कि तलाक लेने पर उतारू है उसे बहुत समझाता है कि वो अपने पति की बात माने । और अपनी मंगेतर को भी साफ शब्दों में कहता है कि वो इस तरह से उसकी जानकारी के बैगर कहीं भी मुंह उठा कर ना चल दे। यहां तक की साफ भी कर देता है कि इन हालात में शादी करना मुमकिन नहीं होगा । ज़ारून पढ़ा लिखा है और उंचे ओहदे पर बैठा सरकारी अफसर है । ज़िदंगी गुलजा़र है --- के ज़ारून की जो चिंता है उसे सीरियल के निर्माता निर्देशक ने बहुत सुंदरता के साथ बहुत नफीस तरीके पेश किया है और बहुत से सवाल हमारे सामने छोड़े हैं । क्या महिलाओं की आजा़दी का मतलब केवल इतना है कि स्वच्छदंता के साथ कहीं भी मुंह उठा कर किसी के भी साथ देर सबेर चल दो । देर रात तक घर से बाहर रहो । ये पाकिस्तानी समाज की ही नहीं हमारे समाज की भी समस्या है । - this is my life , i am 21st century women . i will live life on my terms and conditions . ये जुमले आप आजकल ज्यादातर महिलाओं के मुंह से सुन सकते हो । इसी सीरियल में एक और किरदार है कशफ मुर्तजा जिसके पिता ने केवल इसलिए दूसरी शादी कर ली कि वो तीन बहनें थीं । लेकिन तीनों बहनों को उनकी मां ऊंची तालीम देती है . कशफ भी हमारे आईएएस अफसर के बराबर सरकारी अफसर बन जाती है लेकिन जीवन के कायदे कानून नहीं भूलती । कॉ़लेज के दिनों में भी और बड़ी अफसर बनने के बाद भी । जारून और कशफ की आर्थिक हैसियत में बहुत अंतर है लेकिन ज़ारून को शादी के लिए कशफ जैसी लड़की चाहिए । मैं ज़ारून की चिंता से , सरोकारों से हमदर्दी रखती हूं और बहुत हद तक सहमत भी हूं । देर रात तक घर से बाहर गैरों के साथ घूमने को यदि महिलाओं की आज़ादी माना जाए तो शायद आजा़दी का पैमाना ही ग़लत है । पढना लिखना ज़हीन बनना और स्वच्छंद होना दो अलग बातें हैं । हम महिलाएं ये क्यों सोचती हैं कि बिल्कुल मर्दों जैसा लाइफस्टाइल अपना कर हम आधुनिक हो जायेंगें या बराबरी का दर्जा मिल जाएगा । आधुनिकता विचारों में होनी चाहिए । हमें अपने परिवार के बेटों को बेटियों से बेहतर होने का गुमान मन में नहीं पालने देने चाहिए । जब समाज के नज़रिए में परिवर्तन आएगा तो महिलाओं के हालात खुद बखुद बेहतर हो जाएंगें । ज़िदंगी गुलज़ार है केवल पाकिस्तान के उच्च और और उच्च मध्यम वर्ग की समस्याओं का आइना नहीं है हमारे समाज में अनेक परिवार इसी तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं । और यही कारण है कि परिवार टूट रहे हैं । मेरी बहन वकील है और out of court settlement के मामलों में mediation करती हैं । कईं बार घर आ कर सिरदर्द की गोली खाती हैं । मेरी बहन और अन्य महिला वकीलों का अनुभव है कि 80 फीसदी मेटरीमोनियल मामलों में लड़की और उसके माता पिता विशेषकर मां की भूमिका बहुत खराब है । और दहेज विरोधी कानून की आड़ में मनमानी करती हैं । हां कुछ मामले बहुत गंभीर किस्म के हैं जिनमें लड़की और उसका परिवार भुक्त भोगी है । सुखी खुशहाल परिवार की नींव परिवार के सभी सदस्य मिल कर रखते हैं ।

रविवार, जून 29

कलियुग का धाम श्री जगन्नाथ पुरी --- ---------------------------------------------- पुरूषोत्तम पुरी या कहे तो श्री जगन्नाथ पुरी भारत की सात प्राचीन पवित्र नगरियों में से एक है । वेदों, पुराणों और उपनिषदों में ओड़ीशा का उत्कल प्रदेश के नाम से वर्णन पाया जाता है । स्कंदपुराण में एक पूरा उत्कल खंड है । जिसमें पुरी औऱ भगवान जगन्नाथ का विस्तार से वर्णन है । आदुनिक ओड़ीशा राज्य की राजधानी भुवनेश्वर से पुरी लगभग 60 किलोमीटर दूर है । बंगाल की खाड़ी के किनारे ये पवित्र शहर बसा है । यहां का समुद्र महोदधि के नाम से जाना जाता है । पुरी भारत के चार पवित्र धामों में से एक है । चार धामों के क्रम में ये तीसरा धाम है और कलियुग का धाम है । पहला धाम उत्त्तर भारत में हिमालय की ऊंची चोटियों पर नर और नारायण पर्वत के बीच श्री बदरीनाथ है । यहां भगवान विष्णु बदरी के नाथ के नाम से विराजते हैं । कहते हैं एक बार भगवान विष्णु यहां कठोर तप करने आए तो लक्ष्मी जी को उनकी बहुत चिंता हुई औऱ उन्होनें बदरी यानि बेर के पेड़ का रूप लेकर विष्णु जी को धूप गर्मी सर्दी और बरसात से बचाया । इसलिए भगवान बदरीनाथ कहलाए । माना जता है भगवान विष्णु यहां स्नान करते हैं और ये सतयुग का धाम कहलाता है । दूसरा धाम पश्चिम भारत में सौराष्ट्र के तट पर द्वारका है । यहां भगवान विष्णु अपने द्वापर युग के अवतार भगवान कृष्ण के रूप द्वारकाधीश के नाम से विराजमान हैं । ये द्वापर का धाम है और भगवान विष्णु यहां वस्त्र बदलते हैं । स्नान करके वस्त्र बदल कर भगवान विष्णु पुरी जाते हैं । पुरी भगवान विष्णु का अन्न क्षेत्र है । यहां वो भोजन करते हैं । पुरी के श्री मंदिर में दुनिया की सबसे बड़ी रसोई है । इस रसोई की अग्नि कभी शांत नहीं की जाती माना जाता है अगर कभी शांत हो गयी तो फिर 12 साल के बाद प्रजल्लवित होगी । भगवान के लिए यहां अनेक प्रकार के भोग बनाए जाते हैं । भगवान को जब भोग लगाने के लिए भोजन ले जाते हैं तो सेवक अपना नाक ढ़क लेते हैं ताकि उन्हें भोजन की सुंगध भी ना आ सके । पुरी को अन्न क्षेत्र कहा जाता है यहां अन्न दान का सबसे ज्यादा महत्व है । माना जाता है पुरी में आतकर आप कुछ और दान करें या ना करें अन्न का दान ज़रूर करें क्योंकि अन्न दानम् महा दानम् है । यहां भोजन करके भगवान रामेश्वरम चले जाते हैं औऱ वहां जाकर सागर में शेषनाग की शैय्या पर विश्राम करते हैं । रामेश्वरम् त्रेता युग का धाम है । भारत के चार कोणों में बसे ये चार धाम पूरे देश को एकता के सूत्र में पिरोते हैं । आदिगुरू शंकराचार्य ने पुरी में पूरब की पीठ की स्थापना की । पुरी की पूरी अर्थ व्यवस्था श्री मंदिर के इर्द्गिर्द घूमती है । साल भर यहां लाखों तीर्थयात्री आते हैं । और रथ यात्रा के समय तो 8 से 10 लाख भक्त आते हैं । रथ यात्रा वो समय है जब भगवान अपने गैर हिंदु भक्तों को भी दर्शन देते हैं । श्री मंदिर में आज भी गैर हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है । रथ यात्रा के समय हर कोई भगवान जगन्नाथ का दर्शन करता है । दर्शन ही नहीं करता बल्कि उनके विग्रह से गले लग लग कर रोता है खुश होता है । ये दृश्य मैनें अपनी आंखों से देखा है । भगवान को गले लगाकर उनके भक्त फूट फूट कर रोते हैं । पुरी एकमात्र ऐसा स्थान है जहां भगवान के मूल विग्रह को गर्भगृह से बाहर निकाल कर दस दिन के लिए दूसरे मंदिर में स्थापित किया जाता है । दस दिन भगवान का रत्न सिंहासन सूना रहता है । इन दस दिनों में मंदिर की मरम्मत का काम पूरा किया जाता है । वर्तमान श्री मंदिर लगभग 1000 वर्ष पुराना है । पुराणों में पुरी की अपार महिमा बतायी गयी है --- ब्रह्म पुराण में लिखा है --- यथा सर्वेश्वरो विष्णु: सर्वलोकोत्तमोत्तम : । तथा समस्ततीर्थानां वरिष्ठं पुरूषोत्तमम् ।। पुरी में बारह महीने तीस दिन भक्तों का तांता लगा रहता है । हर प्रदेश की अपनी भक्ति परंपरा है . इस मंदिर के विशाल प्रांगण में लोग भगवान का लगा हुआ भोग लेकर खाते हैं । भजन कीर्तन करते हैं । प्रवचन होते हैं । आजकल मुझे जब भी पुरी जाने का सौभाग्य प्राप्त होता है पुरी से हमारे पारिवारिक मित्र मुकेश गोयंका औऱ उनकी पत्नी संगीता गोयंका साथ होते हैं । एयरपोर्ट से भी वही लेते हैं । अपने घर ले जाते हैं प्रेम औऱ आदर से खिलाते पिलाते हैं औऱ फिर हमें अपनी गाड़ी से पुरी ले जाते हैं । और बहुत खुश होते हैं । उनका मानना है प्रभु उन्हें सेवा का अवसर दे रहे हैं । जब हम उनके साथ श्री जगन्नाथ जी के दर्शन करते हैं तो मंदिर में कुछ देर बैठते ज़रूर हैं । वो कहते हैं--- "दीदी भगवान के घर कभी भी भागम भाग में नहीं आना चाहिए दर्शन के बाद कुछ देर बैठो ज़रूर । क्योंकि मान लो हम अपने किसी मित्र या रिश्तेदार के घर जा कर बैठे ना उसका आथित्य स्वीकार ना करें तो क्या उन्हें बुरा नहीं लगेगा । ऐसे ही भगवान भी बुरा मानते हैं " । मुकेश गोयंका का तर्क मुझे समझ आता है । सही लगता है । और श्री जगन्ननाथ पुरी आ कर श्री मंदिर के अंदर ही केले के पत्ते पर जो स्वादिष्ट और अमृत के समान भोजन मिलता है उसके तो कहने ही क्या । मुकेश के पंड़ाश्री हरि हर भगवान के भोग सेवक हैं और भगवान की कृपा से हमें हर बार बहुत गर्म और स्वादिष्ट भोजन प्रसाद के रूप में मिला है और वो भी जी भर कर । आप भी कभी श्री जगन्नाथ के दर्शन को जाएं तो वहां की रसोई में बना भोजन ज़रूर प्रसाद के रूप में लें । LikeLike · · Share
आज अपनी मौसी रानी गुंडीचा के घर जायेंगें भगवान -------- पुरी की रथ यात्रा आज से आरंभ ----------------------------------------------------------------------------- जगत के नाथ भगवान जगन्नाथ आज अपनी मौसी रानी गुंडीचा के घर जायेंगें । उनके साथ उनके भाई बलराम और बहन ,सुभद्रा भी जायेंगी । उड़ीसा में बंगाल की खाड़ी के किनारे बसी पवित्र नगरी पुरी में भगवान विष्णु जगन्नाथ के रूप में विराजते हैं । हर वर्ष आषाढ़ महीने के शुक्ल पक्ष की दूज को भगवान रथ पर सवार हो कर अपनी मौसी के घर जाते हैं । स्कंद पुराण के अनुसार दूज को यदि पुष्य नक्षत्र हो तो भगवान की यात्रा के लिए बहुत शुभ माना जाता है और इस साल बहुत ही शुभ संयोग है . आज रवि पुष्य नक्षत्र है । भगवान जगन्नाथ का एक नाम नीलमाधव भी है । जहां भगवान जगन्नाथ विराजते हैं उसे नीलांचल भी कहते हैं । नीलमाधव शबर जनजाति के मुखिया विश्ववसु के आराध्य थे । विश्ववसु के पास से मालवा के राजा इंद्रद्युमन के पास कैसे पहुंचे और कैसे बने काष्ठ के देवता ये एक अलग कहानी है जो मैं कल लिखूंगीं । बात करते हैं भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा की । भगवान जगन्नाथ उनके भाई और बहन विशाल और भव्य रथों पर सवार होकर रानी गुंडीचा के घर जाते हैं । रथ हर साल नए बनाए जाते हैं । रथ निर्माण की प्रकिया वंसत पंचमी से आरंभ हो जाती है । वसंत पंचमी को सोने की कुल्हाड़ी से रथों के लिए लकड़ी काटने का काम आरंभ हो जाता है । और अक्षय तृतीया से रथ निर्माण शुरू होता है । भगवान जगन्नाथ के प्रथम सेवक पुरी के महाराज होते हैं इसलिए सोने की कुल्हाड़ी से रथ निर्माण का शुभ आरंभ वही करते हैं । रथ आज भी पुरी के महाराजा के घर के सामने बनाए जाते हैं और आषाढ़ शुक्ल प्रतिपदा को रथों को खींच कर श्री मंदिर के सिंहद्वार पर ला कर खड़ा कर दिया जाता है । सिंह द्वार के पास पहला रथ भगवान जगन्नाथ का खड़ा होता है जिसका नाम है नंदी घोष , इस रथ के दो नाम और भी है गरूड़ ध्वज और कपिध्वज। दूसरा रथ उनकी बहन सुभद्रा का है दर्पदलन जिसे पद्मध्वज भी कहते हैं । बहन सुभद्रा का रथ अपने दो महान और प्रभावशाली भाइयों के बीच में खड़ा रहता है । दो भाइयों के सुरक्षा कवच के बीच बहन का रथ । तीसरा रथ भगवान जगन्नाथ के भाई बलभद्र का है जिसे तलध्वज कहते हैं । तीनों रथ उत्तरमुखी खड़े होते हैं । माना जाता है भगवान जगन्नाथ को रथ पर सवार देखने से जन्म जन्मांतर के पाप कट जाते है । भगवान को रथ पर लाकर बिठाते हैं शबर जनजाति के दैतापति । दैतापति शबर जनजाति के मुखिया विश्ववसु के वंशज हैं और ये स्वयं को भगवान जगन्नाथ का भाई कहते है। स्नान पूर्णिमा से लेकर नीलाद्रि विजय ( नीलाद्रि विजय क्या है अगली किसी पोस्ट में लिखूंगी ) तक दैतापति ही भगवान जगन्नाथ की सेवा करते हैं । ( दैतापति कौन है ये भी विस्तार से लिखूंगी ) आज दैतापति ढोल नगाड़े , झाँझ मंजीरे औऱ अन्य बाद्य बजडाते हुए नाचते गाते हुए भगवान जगन्नाथ औऱ उनके भाई बहन को रथ पर बिठायेंगें । पुरी के गजपति महाराजाधिराज रथ पर झाड़ू लगाते हैं जिसे छेरापहरन कहते हैं । माना जाता है भगवान की रथ यात्रा में शामिल होने 33 करोड़ पुरी देवी देवता आते हैं औऱ दस दिन तक यहीं वास करते हैं । सो आज भगवान छुट्टियां मनाने अपनी मौसी रानी गुंडीचा के घर जा रहे हैं । रानी गुंडीचा कैसे बनी उनकी मौसी ये भी बहुत रोचक कहानी है । रथ यात्रा के दौरान अपने अल्प ज्ञान के अनुसार मैं आप तक रथ यात्रा की रोचक जानकारियां पहुचाने का प्रयास करूंगी । प्रतीक्षा किजिेए अगली कड़ियों की ......... 1 ShareLikeLike · · Promote · Share

बुधवार, जून 18

AN AMZING SHOPKEEPER . MEET A GOOD SHOPKEEPER, सच्चा सौदा , धार्मिक सामान की दुकान , धार्मिक दुकानदार

-- एक दुकानदार ऐसा भी -- सामान लो, पैसा दो या ना दो
-------------------------------------------------------------------
आजकल की दुकानदारी बहुत कोरी करारी हो चुकी है । खाने पीने की दुकान से लेकर शो रूम और मॉल में खरीदादारी का सीधा सा नियम है पहले बिल बनवाओ फिर सामान लो । अब खरीददारी बहुत ही सपाट सी हो चुकी है दुकानदार और ग्राहक के बीच कोई संवाद या अपनापन नहीं बचा है । पुरानी दिल्ली और छोटे शहरों में खरीददारी करने का अब भी बहुत आनंद है दुकानदार प्रेम से बिठाते हैं फिर पूछते हैं क्या लोगे पहले कुछ खाना पीना फिर खरीददारी करना मान मनुहार औऱ प्रेम के साथ खरीदादारी अच्छी भी लगती है । हम बच्चे थे तो हमारे कस्बे में कपड़ा बेचने वाले , महिलाओं को साज श्रृंगार का सामना बेचने वाले यहां तक कि सोना चांदी बेचने वाले भी आते थे । सभी महिलाएं उनकी परमानेंट ग्राहक होती थीं । पैसा जब चाहे दे दो । एक साथ देदो किस्तों में दे दो कोई चिंता नहीं । उनके साथ एक अपनत्व का नाता रहता था । अब वो ज़माना बीत चुका लेकिन नोएडा की सुनहरी मार्किट के दुकानदार धर्मेंद्र सिंह जी ने बचपन के वो दिन याद दिला दिए । धर्मेंद्र सिंह हमारे बचपन के उन मोबाइल दुकानदारों से भी दस कदम आगे हैं । मेरा उनकी दुकान पर पहली बार तब जाना हुआ जब हमने 1999 में दिल्ली से नोएडा शिफ्ट किया । गृह प्रवेश के लिए पूजा के सामान की लिस्ट पंडित जी थमाई और दुकान का पता बता बता दिया . धर्मेंद्र सिंह की दुकान पर पूजा का सारा सामान औऱ धार्मिक पुस्तकें मिलती हैं । उसके बाद तो जितनी पूजा हुई या जो भी पूजा का सामान चाहिए उन्हीं से लेते । एक बार मेरी एक मित्र ने क्रिस्टल बॉल मंगवायी वो लगभग दो हज़ार की थीं । मैं इतने पैसे लेकर नहीं गयी थी । मैनें कहा बाद मेें दे दूंगी उन्होने बहुत निर्विकार भाव से कहा अच्छा । थोड़ी हैरानी हुई कि एक बार भी नहीं पूछा कब दोगी । ज्यादा परिचय भी नहीं । जब मैं उनके दो हज़ार रूपए देने गयी तो दुकान पर उनका भाई था मैनें उनके भाई को पैसे दे दिए । अगली बार धर्मेंद्र सिंह दुकान पर मिले मैनें उनसे कहा -- "भाई साबह वो दो हज़ार रूपया मैनें आपके भाई को दे दिया था "। धर्मेंद्र जी के शांत चेहरे का भाव एकदम बदल गया उन्होनें थोड़ी कड़ी आवाज़ में कहा -- "मैनें आपसे पूछा कि आपने पैसे दिए या नहीं दिए मैनें तो मांगे भी नहीं " । मुझे बहुत हैरानी हुई कैसा दुकानदार है खैर मैं चुप रही । धीरे धीरे उनसे परिचय बढ़ता गया । वो साधारण दुकानदार नहीं है बहुत ज्ञान ध्यान की बात करते हैं धार्मिक विषयों पर चर्चा करते हैं । उनका चेहरा उनकी बातचीत औऱ जीवन शैली राजपूतों जैसी भी नहीं हैं । स्वंय भी बहुत साधना करते हैं । औऱ साधना का तेज उनके चेहरे पर साफ दिखता है । आफ उनकी दुकान से कितना भी सामान ले सकते हो आपके पास पैसे हैं तो दे दो नहीं हैं तो ना दो । कब दोगे वो नहीं पूछेंगें आपसे । एक बार कुछ महिलाएं आयीं उन्होनें कहा कि अपने मौहल्ले को मंदिर के लिए उन्हें भगवान कृष्ण के लिए पोशाक चाहिएं लेकिन अभी ये तयनहीं है कि क्या और कितना लेना है क्योंकि पूरी कमेटी देख कर पास करेंगी । जन्माष्टमी का मौका था उन्होंनें दस बारह पोशाकें उठा लीं । औऱ चली गयीं । उनके जाने के बाद मैनें पूछा -- त्यौहार के मौके पर आपने इतनी पोशाकें ले जानें दीं कोई एडवांस भी नहीं लिया सिक्योरिटी भी नहीं ली । वो धीरे से मुस्कारए और बोले -- भगवान के ही तो वस्त्र हैं यदि कमेटी चुन कर अपने मनपसंद वस्त्र उन्हें पहना देगी तो मेरा क्या जाएगा । पैसे का क्या है कभी भी आ जायेंगें । और वो महिलाएं पहली बार धर्मेंद्र जी की दुकान पर आयीं थीं ।
नवरात्रों के अवसर पर एकबार मैं उनकी दुकान पर गयी नवरात्र शुरू होने से पहले ही उनकी दुकान पर भीड़ लगनी शुरू हो जाती है। कईं बार लंबा इंतज़ार भी करना पड़ता है । उन्हे लिस्ट थमा कर हम इंतजा़र कर रहे थे । इतने में एक व्यक्ति आया उसने धर्मेंद्र जी को 21 हज़ार रूपए दिया और कहा -- "माफ करना भाई साहिब पिछले नवरात्र में दुर्गा पूजन के लिए आपसे 21 हज़ार का सामान ले गया था लेकिन आने का समय ही नहीं मिला अब लाया हूं "। धर्मेंद्र जी ने एक भी सवाल नहीं पूछा उल्टा कहा - "अच्छा मुझे याद नहीं "।रूपए लिए और रख लिए । ये एक और झटका था मेरे लिए मुझसे रहा नहीं गया-- भीड़ छंटने के बाद मैनें पूछा लोग हज़ारों का समान ले जाते हैं और आप ना याद रखते हैं और ना तकाज़ा करते हैं । उन्होनें उस दिन मुझे जो उत्तर दिया वो बहुत ही दार्शनिक था --- "देखिए ये भगवान के सामान की दुकान है जो सामान ले कर पैसे दे जाता है उसका पुण्य जो नहीं देता मेरा पुण्य "। इसके आगे मैे उनसे क्या सवाल करती । उन्होनें इतनी बड़ी बात कह दी । वो सचमुच और सही मायने में धार्मिक सामान की दुकान चलाते हैं । पूर्ण भाव से भगवान को समपर्ण । आज सुनहरी मार्किट में उनकी पांच दुकानें है । अब तो उन्होनें पूजा के सामान के अलग अलग स्टोर बना दिए हैं । हमें नोएडा से दिल्ली शिफ्ट किए हुए सात साल हो गए हैं आज भी पूजा का सारा सामान धर्मेंद्र जी दुकान से ही आता है ष कईं बार तो मैं फोन करके सामान लिखवा देती तो वो मेरे फिल्मसिटी स्थित 16 सेक्टर ज़ी न्यूज़ के ऑफिस भिजवा देते पैसे मांगने का तो सवाल ही नहीं कभी भी दूं या ना दूं । आजकल ऐसे लोग बहुत कम हैं ।
LikeLike ·  · Promote · 

बुधवार, मई 7

2014 चुनाव में क्या-क्या पहली बार?


2014 का आम चुनाव पिछले आम चुनावों से कई मायनों में अलग है। इस चुनाव की अनेक हाइलाइट्स है। पहली बार आम चुनाव में देश के प्रधानमंत्री का कोई अस्तित्व नहीं दिखा। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह नयी सरकार के गठन से पहले ही सुर्खियों से गायब हो गए। दस साल तक देश के प्रधानमंत्री पद पर रहने वाले मनमोहन सिंह को कांग्रेस ने अपने चुनाव प्रचार से बाहर ही रखा। इससे अच्छे तो भूतपूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ही थे जिन्होनें अल्पमत और अल्पदिनों की सरकार होने के बावजूद जम कर चुनाव प्रचार किया था। शायद मनमोहन सिंह को इसका मलाल भी नहीं होगा। उनके पूर्व मीडिया सलाहकार संजय बारू की किताब The accidental prime minister के अनुसार मनमोहन सिंह ने कभी चाहा ही नहीं कि मीडिया में उन्हें गांधी परिवार से ज्यादा तरजीह दी जाए या वो राहुल गांधी से ज्यादा सुर्खियां बटोरें।



पहली बार ऐसा हुआ कि किसी दूसरी पार्टी के नेता ने किसी शहीद का नाम ले लिया तो उस पर हंगामा खड़ा हो गया। पहली बार ऐसा हुआ कि देश पर अपनी जान लुटाने वाले वीरों को भी मज़हबों में बांट दिया गया। शहीद भी तेरे शहीद और मेरे शहीद हो गए। इससे शर्मनाक और क्या हो सकता है? चुनाव प्रचार का स्तर गिरने की सभी सीमाएं इस बार पार हो गईं। देश की रक्षा में हर समय हर पल तत्पर रहने वाली सेना को चुना प्रचार में ऐसे घसीटना दुर्भाग्यपूर्ण है। 

पहली बार ऐसा हुआ कि पूरा चुनाव एक व्यक्ति के आसपास सिमट गया। सियासी दलों की लड़ाई के बजाए व्यक्ति विशेष, की लड़ाई बन गयी। चुनाव नरेंद्र मोदी बनाम राहुल गांधी हो गया। सोशल मीडिया का सियासी दलों ने जम कर इस्तेमाल किया तो आम लोगों के लिए भी ये चुनावी अखाड़ा बन गया। सोशल मीडिया में भी पूरी तरह खेमेबंदी। मोदी समर्थक और मोदी विरोधी खेमे में इतना ज़बरदस्त मुकाबला कि पूछो मत कौन किसके खिलाफ कितना ज़हर उगलता है इसमें भी गला काट प्रतियोगिता। हां आम आदमी पार्टी के समर्थक भी बहुत है लेकिन वो रेस में कुछ पिछड़े से लगे (दिल्ली विधानसभा चुनाव की तुलना में)।

सबकी खबर लेने वाले मीडिया की साख इस बार दांव पर लगी। मीडिया को सोशल साइट्स पर सबसे ज्यादा बुरा भला कहा जा रहा है । यहां तक कि मीडिया भी आपस में बंटा नज़र आ रहा है। विशेष कर नरेंद्र मोदी और राज ठाकरे के इंटरव्यू पर पत्रकारों, लेखकों और बुद्धिजीवियों की करारी टिप्पणियां मीडिया की साख पर बट्टा लगा रही हैं। मीडिया से जुड़ी साइट्स पढ़िए, वहां पत्रकारों को सबसे ज्यादा भला बुरा उनकी अपनी ही बिरादरी कह रही है। सियासी दलों के चुनाव प्रचार से मुख्य मुद्दे और सामाजिक सरोकार गायब हैं तो मीडिया से भी गायब हैं। नेता मुद्दों से भटक कर निजी आरापों के दलदल में फंस गए हैं । चुनाव प्रचार का इतना घटिया स्तर अपनी याद में मैनें कभी नहीं देखा । 


मीडिया को कटघरे में इस तरह पहली बार खड़ा किया गया। हां सबसे ज्यादा अगर किसी की रिपोर्टिंग लोगों ने पसंद की तो एनडीटीवी के रवीश कुमार की। रवीश भी अगर एयरकंडीशंड स्टूडियो में बैठ कर या फिर अलग अलग जगहों पर चुनावी मुकाबले करवाते तो उनकी भी यही गत होती। रवीश ने चुनावी रिपोर्टिंग को एक नया रूप दिया। 
आप को इस चुनाव में पहले चुनावों से क्या अलग और अनोखा दिखा आप भी बताएं । ये मेरा निजी आकलन है । आपने भी बहुत सी बातें इन चुनावों में नोट की होगी प्लीज़ सबके साथ शेयर करें . अब तो चुनाव आखिरी दौर में चल रहा है ।

मंगलवार, अप्रैल 22

जशोदा बेन का मर्म ना जाने कोए...

(पोस्ट से पहले आपसे कुछ दिल की बात- कहते हैं इंसान दो परिस्थितियों में निशब्द हो जाता है। बहुत दुख में और बहुत खुशी में। और जब बहुत दुख में निशब्द हो जाता है तो बहुत समय लगता है उससे बाहर आने में। सितंबर 2011 के बाद मैनें कुछ नहीं लिखा। 2011 और 2012 में मेरी बीजी की लंबी बीमारी। अस्पतालों में दिन रात रहना और फिर 2012 में उनका हमसे सदा के लिए बिछुड़ जाना। सबको पता है हम सबको जाना है। लेकिन फिर भी ना जाने क्यों हमारा मन ऐसा है अपनों को अलविदा कहना नहीं चाहता। और फिर मेरी बीजी के जाने के बाद मेरे पैतृक परिवार में मानो नंबर लग गया। फरवरी 2012 से जून 2012  तक अपने चार प्रियजनों को अंतिम विदाई दी। मन को नार्मल होने में लंबा समय लगा। खैर लंबी कहानियां हैं आप सबको बोर नहीं करूंगी फिर से मन को बांध कर ब्लॉग लिखना शुरू कर रही हूं। मेरे बहुत से ब्लॉगर मित्र लगातार संपर्क में हैं । दुख सुख के साथी हैं। बहुतों से संपर्क टूट गया था। आप सबका भी कसूर नहीं है मैंने अपने दुख के बारे में कुछ लिखा भी नहीं ब्लॉग पर। आशा है आप मुझे भूले नहीं होंगें। एक बार मैं फिर आई हूं। आप मेरी इस पोस्ट पर अपनी प्रतिक्रिया देंगें तो मैं समझूंगी कि आप मुझे भूले नहीं हैं।- सर्जना शर्मा)
  



जशोदा बेन: सूनी सेज, गोद मोरी सूनी, मर्म ना जाने कोए

         सूनी सेज गोद मोरी सूनी मर्म ना जाने,
         छटपट तड़फे प्रीत जिया की ममता आसूं रोए,
         ना कोई इस पार हमारा ना कोई उस पार,

फिल्म तीसरी कसम का मुकेश का गाया ये गीत ना जाने कितनी महिलाओं के दिल को छू लेता होगा, कितनी महिलाओं के आंखों से आंसू बहते होंगे । गीत के बोल मार्मिक और उस पर मुकेश की आवाज़ का दर्द। जबसे बीजेपी के पीएम पद के उम्मीदवार नरेंद्र मोदी से बरसों पहले विलग हुई जशोदा बेन फिर से सुर्खियों में आयीं है मेरे कानों में इस गीत के बोल गूंजते हैं और जशोदा बेन का चेहरा। जशोदा बेन दशकों  से गुमनाम जीवन जी रही थीं। नरेंद्र मोदी राजनीति के विवादास्पद और चमकते सितारे बने तो जशोदा बेन भी यदाकदा खबरों में आने लगीं। और अब जब मोदी ने वड़ोदरा से पर्चा भरते हुए अपने मैरिटल स्टेट्स को स्वीकार किया और जशोदा बेन का नाम भरा तो मानो तूफान आ गया। मीडिया , नारीवादी संगठन और सियासी दलों ने बावेला मचा दिया। लेकिन जो सबसे ज्यादा भुक्त भोगी है, जिसने अपने जीवन के इतने साल विवाहिता होने के बाद भी अकेले गुजारे उसने तो एक शब्द नहीं बोला, जुबान नहीं खोली । जशोदा बेन के लिए मेरे मन में ममता और करूणा उमड़ कर आती है । बहुत से लोग मुझसे असहमत होंगें मुझे रूढ़िवादी औऱ पुरातनपंथी भी कह सकते हैं। विशेषकर फैमिनिस्ट। वो अपनी जगह ठीक हो सकते हैं लेकिन कभी जशोदा बेन के दर्द को समझने की कोशिश करें।

जशोदा बेन का नरेंद्र मोदी से तलाक नहीं हुआ है। वो भले ही रहतीं एक सुहागिन की तरह हैं, लेकिन सरनेम मोदी इस्तेमाल नहीं करतीं। जबकि अनेक प्रगतिशील फैमिनिस्ट महिलाएं नारी मुक्ति का दम भरती हैं, लेकिन अपने जाने माने प्रतिष्ठित पतियों का सरनेम तलाक के बाद भी लगाए रखती हैं। यही महिलाएं टेलिविज़न औऱ महिला पत्रिकाओं में नारी अधिकारों और मुक्ति पर बड़े बड़े इंटरव्यू देती हैं। इनमें से कईं के नाम तो आप भी जानते ही होंगें लिखने की ज़रूरत नहीं है। इनमें से एक नृत्यागंना ने तो मरते दम तक अपने पहले एक्टर पति का सरनेम ही लगाए रखा। सैवी पत्रिका को दिए गए इंटरव्यू में उन्होनें यहां तक कहा था कि- चार पांच पति तो मैं अपने खीसे में रख कर चलती हूं। कोई उनसे पूछे कि चार पांच पति उनके खीसे में रहते थे तो फिर पहले पति का सरनेम क्यों नहीं छोड़ा। इस महिला ने ही देश के जानेमाने उद्योग पति को जेल भिजवा दिया था, उनसे अपनी शादी की तस्वीरें कोर्ट में पेश करके।



खैर छोड़िए, आती हूं उसी पात्र पर जिसके तप और त्याग ने मुझे ये लेख लिखने को मजबूर किया। यानी जशोदा बेन। जशोदा बेन मुझे सुप्रसिद्ध बांग्ला उपन्याकार शरत चंद्र चट्टोपाध्याय और गुरु रबीन्द्रनाथ टैगोर के उपन्यासों की मानिनी, स्वाभिमानिनी, सदाचारिणी. तपस्वनी नायिका लगती हैं । इन दोनों महान बांग्ला साहित्यकारों ने अपने उपन्यासों में जिन नायिकाओं का चित्रण किया है वो पूरी तरह से काल्पनिक नहीं हो सकतीं। उन्होंने अपने आसपास ऐसे चरित्र देखें होंगें, उनका दुख जाना होगा. उनका दर्द समझा होगा। और फिर उन्हें अपनी कलम से शब्दों में ढाला। फिर चाहे परिणीता की ललिता हो , विराज बहू की विराज हो या फिर विनोदिनी की विनोदिनी हो । ये नायिकाएं किसी ना किसी कारण से  विवाहित होने के बावजूद एकाकी जीवन व्यतीत करती हैं । लेकिन उनका आत्मसम्मान, सदाचार, संयमित जीवन, ममता, करूणा, दया स्नेह का खजाना दिन-ब-दिन बढ़ता जाता है । जशोदा बेन भी मुझे वैसी ही लगती हैं। विवाह हुआ लेकिन पति बच्चों गुहस्थी का सुख देखा ही नहीं। अपने मायके में उन्होनें लोगों के सवालों को कैसे झेला होगा. उनके परिवार ने समाज को क्या जवाब दिया होगा. इसका अनुमान आप सहज ही लगा सकते हैं ।



जशोदा बेन की तस्वीर मैंने देखी- किसी भी मध्यमवर्गीय परिवार की सद्गृहस्थन जैसी, चेहरे पर जीवन के कठोर तप की साफ छाप। जसोदा बेन पढ़ी लिखी हैं, सरकारी नौकरी करती हैं वो चाहतीं तो कभी भी हंगामा खड़ा कर सकती थीं। लेकिन नहीं किया, मैं जानती हूं बहुत से लोग मुझसे कतई सहमत नहीं होंगें। लेकिन मैनें अपने बचपन से अपने आसपास बहुत सी ललिताएं, विनोदिनी, विराज बहू औऱ जशोदा बेन देखी हैं। बचपन में तो समझ नहीं आता था लेकिन जैसे जैसे उम्र बढ़ी, शरत चंद्र और रबीन्द्रनाथ टैगौर को पढ़ा, इन सबका जीवन और कठोर तप समझ में आया । समझ में आया कि इनके चेहरे पर इतना नूर क्यों, संतों तपस्वियों जैसी चमक क्यों। चेहरे पर सौम्यता, शालीनता, ममता और करुणा का भाव क्यों। अपने जीवन की कड़वाहट भुला कर दूसरों के जीवन में मिठास घोलने का स्वभाव क्यों ।

नरेंद्र मोदी की पहचान राजनीति में आने से पहले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के एक प्रचारक के रूप में थी । मोदी विवाहित हैं या अविवाहित ये प्रश्न कभी उठा ही नहीं । सच कहूं तो उनसे मेरा व्यक्तिगत परिचय रहा है जब वो संघ के प्रचारक थे । हम उन्हें एक विशुद्ध प्रचारक के रूप में ही देखते थे और कभी ये विषय ना उठा और ना ही कोई मतलब था, इस मुद्दे पर बात करने का। जब उन्हें गुजरात का मुख्यमत्री बना कर भेजा गया तो विरोधी खेमे और शायद अपने ही खेमे के अंतुष्टों ने जशोदा बेन को खोज निकाला। वो सीधी सादी महिला अचानक अखबारों की सुर्खियां बन गयीं । लेकिन चौदह साल के मुख्यमंत्री काल में उन्होनें कभी ऐसा अवसर नहीं आने दिया जिससे नरेंद्र मोदी को नीचा देखना पड़े। वो चाहतीं तो पूरा बदला ले सकती थीं। अब कुछ लोग ये भी कहेंगें कि नरेंद्र मोदी ने डराया धमकाया होगा। वो कोई अनपढ़ महिला नहीं हैं जिन्हें धमकाया जा सके या जिनका मुंह जबरन बंद किया जा सके ।

अब जब जशोदा बेन को सावर्जनिक रूप से कानूनी रूप से पत्नी का दर्जा मिला तो भी ना वो खुश हुईं ना दुखी। तटस्थ भाव। मीडिया तुंरत पहुंचा इस आस में कि कोई चटपटी खबर मिलेगी। लेकिन जशोदा बेन ने बयान देना तो दूर मीडिया से मिलना भी उचित नहीं समझा । यानि निर्विकार निर्लिप्त समभाव। ना खुशी का इज़हार, ना शिकायत । सोलह सत्रह बरस की उम्र से अब तक एकाकी, आत्मस्वाभिमानी , शांत जीवन जी रहीं जशोदा बेन ने मौन व्रत नहीं तोड़ा। कोई प्रतिक्रिया नहीं । 
                     
जशोदा बेन जैसी अनेक त्यागिनी, मानिनी, स्वाभिमानीनियों से इतिहास औऱ काव्य भरा पड़ा है। गुरू रबीन्द्रनाथ टैगौर ने अपनी कृति  काव्येर उपेक्षिता  में ऐसे विरही एकाकी चरित्रों का बखूबी वर्णन किया है । सुप्रसिद् कवि स्वर्गीय मैथिली शरण गुप्त ने  साकेत  में लक्ष्मण की पत्नी उर्मिला की दशा का वर्णन किया है लेकिन कहीं भी दीन हीन नहीं दिखाया। पति से मिलने की उत्कंठ चाह भी नहीं दिखायी। यशोधरा में मैथिलीशरण  गुप्त ने महात्मा बुद्ध की पत्नी यशोधरा की व्यथा का वर्णन है । राजकुमार सिद्धार्थ अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल को सोता हुआ छोड कर चले जाते हैं। सिद्धार्थ बाद में महान बने और महात्मा बुद्ध कहलाए। अहिंसा, त्याग, तप और करूणा के प्रतीक बने लेकिन क्या किसी ने ये समझा कि सिद्धार्थ को महात्मा बुद्ध बनाने के पीछे यशोधरा की भी तपस्या कम नहीं है । लेकिन यशोधरा के मन के मलाल को गुप्त जी ने अपने शब्दों का रूप दिया है ---

        सिद्धि हेतु स्वामी गए यह गौरव की बात,
         पर चोरी चोरी गए यही बड़ा आघात...

नरेंद्र मोदी ने जशोदा बेन से क्या कहा होगा घर कैसे छोड़ा होगा इसका अनुमान नहीं है । लेकिन जशोदा बेन ने यशोधरा कि तरह ही अपने पति को उनके मनचाहे मार्ग पर चलने दिया । यशोधरा के पास कम से कम एक पुत्र था राहुल। जिसके पालन पोषण का भार यशोधरा पर था। लेकिन जशोदा बेन की कोई संतान भी नहीं है। पर यशोधरा भी इस स्थिति से बहुत प्रसन्न नहीं थीं। मैथिलीशरण गुप्त के यशोधरा काव्य की कुछ पंक्तियों से लगता है कि यदि राहुल ना होता तो यशोधरा आत्महत्या कर लेती --

            सखी मुझको मरने का भी न दे गए अधिकार,
            छोड़ गए मुझ पर अपने राहुल का भार...
           
श्री रामचरित मानस में भगवान राम के छोटे भाई लक्ष्मण को हमारे समाज में बड़े भाई के प्रति प्रेम, त्याग, अनुराग और श्रद्धा का प्रतीक माना जाता है। भ्राता प्रेम का वो सबसे बड़ा उदाहरण हैं लेकिन अवध में उर्मिला ने 14 बरस कैसे बिताए इसकी ज़रा कल्पना कीजिए। उर्मिला को मैथिलीशरण  गुप्त ने साकेत में और गुरु रबीन्द्र नाथ टैगौर ने काव्येर उपेक्षिता में बहुत ऊंचा दर्जा दिया है । उसके त्याग को लक्ष्मण से बड़ा बताया है । इन दोनों कवियों ने उर्मिला के त्याग, तपस्या, ममता, करूणा, धैर्य, संयम का सु्ंदर शब्दों में बहुत सम्मान के साथ वर्णन किया है  । 


"हाय वेदनामयी उर्मिला एकबार तुम्हारा उदय प्रात:कालीन नक्षत्र की तरह समेरू पर्वत हुआ था । इसके बाद दर्शन नहीं हुए लोग तुम्हें भूल गए" - रबीन्द्रनाथ टैगौर  

मैथिलीशरण गुप्त ने उर्मिला को ऐसी विरहनी की तरह दिखाया है जो अपना दुख छिपा कर दिन रात अपने को व्यस्त रखती है । अपने कर्तव्य से मुंह नहीं मोड़ती है, लेकिन रहती ससुराल में ही है। किसी से शिकायत नहीं करती किसी पर आरोप नहीं लगाती। यहां तक कि भगवान राम, सीता और लक्ष्मण के वनवास का कारण बनीं अपनी सास कैकेयी से भी बुरा व्यवहार नहीं करती। छोटी सी उम्र में त्याग और तपस्या की मूर्ति बन कर रहती है। मैथिली शरण उन्हें बहुत ऊंचा दर्जा देते हैं-

   मानस मंदिर में सती पति की प्रतिमा थाप ,
जलती सी उस विरह में बनीं आरती आप ...

 मुझे यहां भी जशोदा बेन का त्याग और तप उर्मिला से बड़ा लगता है । उर्मिला अपने ससुराल में तो रहती हैं। जशोदाबेन तो अपने मायके में अपने माता पिता भाई भाभी के साथ रहतीं हैं । माता पिता तो नहीं रहे अब उनके भाई हैं जिन्होनें मीडिया को बताया कि जशोदा अपने पति के लिए चार धाम यात्रा पर जा रही हैं। यदि जशोदा बेन के भाई की बात को सच माना जाए तो   जशोदाबेन के मन में अपने पति नरेंद्र  मोदी के लिए कोई दुर्भावना नहीं है। वो चाहती हैं कि उनके पति प्रधानमंत्री बनें। जशोदा बेन जैसी महिलाओं को ऐसा जीवन जीने की कोई मजबूरी नहीं है। वो चाहतीं तो अपनी खुशियां कहीं भी तलाश सकती थीं लेकिन उन्होनें त्याग तप और संयम का मार्ग ही चुना । राज्य के मुख्यमंत्री की कानूनी रूप से पत्नी होने के बाबजूद अपना अधिकार नहीं मांगा । शायद वो जानती हैं कि रिश्ते कानून से नहीं मन से बनते हैं । भावनाओं से गढ़ते हैं । 

प्रगतिशील सोच रखने वाले हो सकता है जशोदा बेन के प्रति मेरी इस ममता स्नेह को दकियानूसी मानें। लेकिन मेरी अपनी सोच है। मैंने पहले भी लिखा है कि मैनें अपने बचपन से अपने आसपास ऐसी बहुत सी महिलाओं को देखा है, उनके बारे में भी लिखूंगी । जिस गीत की पंक्तियों से मैनें ये पोस्ट शुरू की, उसी से समापन भी करूंगी। पता नहीं तीसरी मंज़िल फिल्म में ये गीत राजकपूर पर क्यों फिल्माया गया। जबकि इसमें नारी के मन का व्यथा औऱ दुख है। एक ऐसी महिला जिसका पति उसे दूर है कोई संतान भी नहीं है। सूनी सेज गोद मोरी सूनी मर्म ना जाने कोए जशोदा बेन की भी यही कहानी है । ये समापन नहीं है मैं आपका ऐसे और बहुत से चरित्रों से परिचय कराऊंगी। जिन्हें मैंने देखा है, जिनका जीवन दूसरों के लिए आदर्श है।