अपराधी कौन डेविड या सिस्टम ?
1992 की बात है।
कनॉट प्लेस की मर्केनटाईल हाऊस बिल्डिंग में मेरा दफ्तर था।
मैं संडे मेल साप्ताहिक और समाचार मेल दैनिक में नगर संवाददाता थी।
गर्मियों के दिन थे। मैं रिपोर्टिंग से लौट कर अपनी रिपोर्ट तैयार कर रही थी कि सिक्योरिटी गार्ड मेरे पास आया और बोला मैडम आपसे मिलने एक आदमी आया है, शायद गांव से आया है कुछ गठरियां बांध कर लाया है । जितनी हैरानी के भाव उसके चेहरे पर थे उतनी ही हैरान मैं भी हो गयी । कोई तो आने वाला नहीं था फिर कौन ? मैं बाहर गयी तो देखा ऑफिस के गेट से बाहर डेविड दो तीन गठरियां लेकर बैठा था।
तुम इतनी गर्मी में ? हां दीदी नमस्ते आपके लिए तरबूज , खरबूजा ककड़ी और खीरे लाया हूं । बहुत मीठे हैं। मैं डेविड को कोई जवाब नहीं दे पायी , मेरा गला भर आया। अपने प्रति उसके निस्वार्थ और अगाध स्नेह को देख कर। तब तक मेरे सभी सहयोगी भी बाहर आ गए सब हंसने लगे। कोई नहीं समझ सकता था कि ये तरबूज , खरबूजे और खीरे ककड़ी डेविड की अनूठी सौगात थे मेरे लिए कोई मुझे लाखों के हीरे भी दे जाता तो शायद मेरे लिए उनकी कीमत भी इनकी तुलना में ना के बराबर होती । खैर मैने डेविड को अंदर रिसेप्शन में बिठाया और ठंडा पिलाया और कुछ खिलाया भी ।
थोड़ी देर बाद डेविड वापस चला गया ।
डेविड से मेरी पहली मुलाकात वीर अर्जुन अखबार के दफ्तर में हुई जहां मैं चीफ सब थी। डेविड दफ्तर की डस्टिंग करता सबके लिए चाय पानी लाता और बहुत खुश रहता। खबरों पर पूरी नजर रखता। हर खबर मैं दिलचस्पी लेता अपनी 'एक्सपर्ट' राय देता मैं दफ्तर मैं नयी थी । वीर अर्जुन में कईं साल से काम कर रही सीमा किरण से उसका अच्छा सा नाता था सीमा उसे प्यार भी करती और डांटती भी। सीमा ने ही बताया कि डेविड तिहाड़ जेल में कई साल बिता चुका है। हर तरह के अपराध कर चुका है। अब जेल से तो छूट गया लेकिन पेशियां लगती रहती हैं। एक शातिर अपराधी और वो भी अखबार के दफ्तर में? सीमा ने कहा सर ( अखबार के मालिक अनिल नरेंद्र ) ने इसे रखा है क्योंकि अब ये अपराधों से तौबा कर चुका है और एक अच्छे व्यक्ति का जीवन बिताना चाहता है औऱ अखबार के दफ्तर मैं ही काम करेगा ये इसने ठान रखा है । और ये लगभग एक साल से यहां है बहुत शराफत और तमीज़ से रहता है । खैर मेरे साथ उसका सीमित संवाद रहता लेकिन वो बहुत प्रेम से हम सब की सेवा करता उसका नाम सीमा ने सेवा संपादक रखा हुआ था । कुछ महीने काम करने के बाद मैने वीर अर्जुन छोड़ दिया । और किसी प्रोजेक्ट पर काम करने लगी ।
चार साल बाद 1991 मैं मैने डालमिया ग्रुप का संडे मेल साप्ताहिक और समाचार मेल दैनिक सांध्य ज्वाइन कर लिया । नगर संवाददाता थी तो तो रोज़ मेरे नाम से रिपोर्टस छपने लगीं । तब हमारा दफ्तर ग्रेटर कैलाश में था । एक दिन रिसेप्निस्ट ने मुझे बाहर बुलाया कि कोई मिलने आया है देखा तो डेविड था । डेविड बहुत खुश था कि मैं फिर से अखबार में नौकरी करने लगी हूं । कहने लगा दीदी मैं आपकी रिपोर्टिंग में मदद करूंगा । दीदी का नाता उसने कैसे जोड़ लिया मुझे समझ नहीं आया मैं तो वीर अर्जुन में उससे ज्यादा बात भी नहीं करती थी । तुम मेरी मदद करोगे ? हां दीदी क्यों नहीं मैं सब जानता हूं कहां और कैसे अपराध हो रहे हैं ? कहां क्या धंधे चल रहे हैं ? , पुलिस क्या करती है ?। मुझे बहुत भरोसा तो नहीं हुआ । मैंने उसे बहुत गंभीरता से नहीं लिया । लेकिन फिर डेविड हमें अच्छी स्टोरीज़ देने लगा । अंदर की खबरें वही दे सकता है जो खुद इससे पूरी तरह वाकिफ हो । लेकिन वो खुद बहुत परेशान भी रहता था कहता था दीदी मैं अपराध की दुनिया से अपना पीछा छुड़ाना चाहता हूं लेकिन पुलिस है कि मेरा पीछा ही नहीं छोड़ती । वो जहांगीर पुरी में रहा करता था । कहता मेरे इलाके मैं पुलिस की मुखबिरी करने वालों की आंख का मैं रोड़ा हूं । और गलत धंधे करने वालों को बी मुझसे परेशानी है । अब वो अकसर ऑफिस आ जाता अपनी बाते बताता और साफ साफ बताता कि किस दिन उसने कितने की जेब काटी । तुम तो अपराधों की दुनिया से तौबा कर चुके हो फिर जेब क्यों काटते हो ? क्या करूं दीदी पेशी वाले दिन तो मुझे जेब काटनी ही पड़ती है । कोर्ट मैं जाकर हर आदमी का फिक्स है सबको देना पड़ता है आवाज़ लगाने वाले से लेकर पुलिस तक को लेकिन उतने की जोब काटता हूं जितने कोर्ट मैं देने को चाहिएं । जेबतराशी मैं मिले रूपयों मैं इससे ज्यादा होता है तो किसी गरीब को दे देता हूं या मंदिर मैं दान कर देता हूं । डेविड ने तो साफ गोई से अपनी मजबूरी बता दी लेकिन मैं सोचने को मजबूर हो गयी अपराध की दुनिया छोड़ कर एक इंसान नेकी की राह पर चल रहा है लेकिन हमारा करप्ट सिस्टम उसे फिर वहीं धकेल रहा है । खाकी वर्दी और सरकारी कर्मचारी अच्छे हैं या ये डेविड ? अपराधी कौन है ? क्या अपराध मिटाने के लिए बनी एजेंसियां खुद अपराध को बढ़ावा नहीं दे रही हैं ?
डेविड अक्सर आता रहता अपने दुख भरे किस्से भी सुनाता रहता । पुलिस उसे जब तब उठा कर ले जाती थी उसने वीर अर्जुन की नौकरी भी छोड़ दी ताकि अनिल नरेंद्र जी की बदनामी ना हो । फिर एक दिन वो मेरे पास आया उस दिन वो खबर नहीं लाया था बहुत मायूस सा था बोला दीदी आप मेरी मदद करोगी ? अब तक मेरा उसके साथ स्नेह संबंध जुड़ चुका था । क्यों नहीं बोलो तो सही । कहने लगा दीदी मैं सब्जी की दुकान खोलना चाहता हूं आप मुझे कुछ रूपए दे देंगीं ? मैने उसके हाथ मैं एक अच्छा अमांऊंट थमा दिया। और फिर बहुत दिन तक ना उसका कोई फोन आया।
और ना ही वो आया। मैंने भी ये सोच कर उससे संपर्क नहीं किया कि अपनी नयी नयी दुकान जमा रहा होगा। इस बीच हमारा दफ्तर भी ग्रेटर कैलास से कनॉट प्लेस आ गया औऱ कईं महीने बाद वो आया तो मेरे लिए तरबूज खरबूजे खीरे और ककड़ी लेकर। मुझे बहुत खुशी हुई कि उसका काम जम गया। मेरे लिए जो सौगात लाया, वो मेरे प्रति आभार जताने का उसका एक तरीका था। मैं अभिभूत थी कि चलो डेविड की ज़िदगी पटरी पर तो आ गयी। फिर उससे बरसों कोई संपर्क नहीं रहा।
ज़ी न्यूज़ मैं मेरी एक रिपोर्ट देख कर एकदिन वो फिर मिलने आया था खुश था ।
अब कहां है पता नहीं ।
बहुत अच्छा संस्मरण।
जवाब देंहटाएंआपने तो ज़िन्दगी की एक सच्चाई को पेश कर दिया ……………सुन्दर और सोचने को मजबूर करता संस्मरण।
जवाब देंहटाएंडेविड जैसी परिस्थितियों से जूझने की प्रवृत्ति सब में हो।
जवाब देंहटाएंसच्चा और प्रेरक संस्मरण पढवाने के लिए आभार
जवाब देंहटाएंभगवान करे डेविड जहां कहीं भी हो सकुशल अपने परिवार का पालन कर रहा हो...
जवाब देंहटाएंवैसे अपराध जगत की ये रीत रही है कि कोई इससे निकलना भी चाहे तो सिस्टम उसे निकलने नहीं देता...फिल्म नाम का एक डॉयलॉग याद आ रहा है...अंडरवर्ल्ड में सिर्फ वनवे ट्रैफिक होता है...एक बार जो आ जाए, वापस नहीं मुड़ सकता...
जय हिंद...
धारा प्रवाह और सारगर्भित लेखन! वास्तव में प्रशंसा योग्य,
जवाब देंहटाएंब्लॉग जगत में आपका स्वागत है' ऐसी आशा है कि पुष्प वाटिका के समान सोहित इस ब्लॉग वाटिका में आप अपनी रचनाओं के माध्यम से जन-मन के अन्तर्मन को छू लेगी अगर हो सके तो राष्ट्रवादी और सामयिक विषयों पर आधारित इस ब्लॉग पर भी कभी दस्तक देवें.........
http://hindugatha.blogspot.com
लेखन के मार्फ़त नव सृजन के लिये बढ़ाई और शुभकामनाएँ!
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आलेख-"संगठित जनता की एकजुट ताकत
के आगे झुकना सत्ता की मजबूरी!"
का अंश.........."या तो हम अत्याचारियों के जुल्म और मनमानी को सहते रहें या समाज के सभी अच्छे, सच्चे, देशभक्त, ईमानदार और न्यायप्रिय-सरकारी कर्मचारी, अफसर तथा आम लोग एकजुट होकर एक-दूसरे की ढाल बन जायें।"
पूरा पढ़ने के लिए :-
http://baasvoice.blogspot.com/2010/11/blog-post_29.html
सिर्फ डेविड ही नहीं है इस जहां में....
जवाब देंहटाएंऔर भी हैं वर्दी बेवर्दी वाले डेविड जो सच में डेविड को डेविड नहीं बनने देते।
http://chokhat.blogspot.com/
भगवान करे डेविड जहां कहीं भी हो सकुशल हो|
जवाब देंहटाएंआपका यह संस्मरण ऐसे भटके लोगों के लिए प्रेरणादायक है और बाकी लोगों के लिए भी की हम कैसे मजबूर लोगों की मदद कर सकते हैं ..
जवाब देंहटाएंइस नए सुंदर से चिट्ठे के साथ आपका ब्लॉग जगत में स्वागत है .. नियमित लेखन के लिए शुभकामनाएं !!
जवाब देंहटाएंइस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.
जवाब देंहटाएं" भारतीय ब्लॉग लेखक मंच" की तरफ से आप, आपके परिवार तथा इष्टमित्रो को होली की हार्दिक शुभकामना. ....
जवाब देंहटाएंभारतीय ब्लॉग लेखक मंच