रविवार, जून 29
कलियुग का धाम श्री जगन्नाथ पुरी ---
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पुरूषोत्तम पुरी या कहे तो श्री जगन्नाथ पुरी भारत की सात प्राचीन पवित्र नगरियों में से एक है । वेदों, पुराणों और उपनिषदों में ओड़ीशा का उत्कल प्रदेश के नाम से वर्णन पाया जाता है । स्कंदपुराण में एक पूरा उत्कल खंड है । जिसमें पुरी औऱ भगवान जगन्नाथ का विस्तार से वर्णन है । आदुनिक ओड़ीशा राज्य की राजधानी भुवनेश्वर से पुरी लगभग 60 किलोमीटर दूर है । बंगाल की खाड़ी के किनारे ये पवित्र शहर बसा है । यहां का समुद्र महोदधि के नाम से जाना जाता है । पुरी भारत के चार पवित्र धामों में से एक है । चार धामों के क्रम में ये तीसरा धाम है और कलियुग का धाम है । पहला धाम उत्त्तर भारत में हिमालय की ऊंची चोटियों पर नर और नारायण पर्वत के बीच श्री बदरीनाथ है । यहां भगवान विष्णु बदरी के नाथ के नाम से विराजते हैं । कहते हैं एक बार भगवान विष्णु यहां कठोर तप करने आए तो लक्ष्मी जी को उनकी बहुत चिंता हुई औऱ उन्होनें बदरी यानि बेर के पेड़ का रूप लेकर विष्णु जी को धूप गर्मी सर्दी और बरसात से बचाया । इसलिए भगवान बदरीनाथ कहलाए । माना जता है भगवान विष्णु यहां स्नान करते हैं और ये सतयुग का धाम कहलाता है । दूसरा धाम पश्चिम भारत में सौराष्ट्र के तट पर द्वारका है । यहां भगवान विष्णु अपने द्वापर युग के अवतार भगवान कृष्ण के रूप द्वारकाधीश के नाम से विराजमान हैं । ये द्वापर का धाम है और भगवान विष्णु यहां वस्त्र बदलते हैं । स्नान करके वस्त्र बदल कर भगवान विष्णु पुरी जाते हैं । पुरी भगवान विष्णु का अन्न क्षेत्र है । यहां वो भोजन करते हैं । पुरी के श्री मंदिर में दुनिया की सबसे बड़ी रसोई है । इस रसोई की अग्नि कभी शांत नहीं की जाती माना जाता है अगर कभी शांत हो गयी तो फिर 12 साल के बाद प्रजल्लवित होगी । भगवान के लिए यहां अनेक प्रकार के भोग बनाए जाते हैं । भगवान को जब भोग लगाने के लिए भोजन ले जाते हैं तो सेवक अपना नाक ढ़क लेते हैं ताकि उन्हें भोजन की सुंगध भी ना आ सके । पुरी को अन्न क्षेत्र कहा जाता है यहां अन्न दान का सबसे ज्यादा महत्व है । माना जाता है पुरी में आतकर आप कुछ और दान करें या ना करें अन्न का दान ज़रूर करें क्योंकि अन्न दानम् महा दानम् है । यहां भोजन करके भगवान रामेश्वरम चले जाते हैं औऱ वहां जाकर सागर में शेषनाग की शैय्या पर विश्राम करते हैं । रामेश्वरम् त्रेता युग का धाम है । भारत के चार कोणों में बसे ये चार धाम पूरे देश को एकता के सूत्र में पिरोते हैं । आदिगुरू शंकराचार्य ने पुरी में पूरब की पीठ की स्थापना की ।
पुरी की पूरी अर्थ व्यवस्था श्री मंदिर के इर्द्गिर्द घूमती है । साल भर यहां लाखों तीर्थयात्री आते हैं । और रथ यात्रा के समय तो 8 से 10 लाख भक्त आते हैं । रथ यात्रा वो समय है जब भगवान अपने गैर हिंदु भक्तों को भी दर्शन देते हैं । श्री मंदिर में आज भी गैर हिंदुओं का प्रवेश वर्जित है । रथ यात्रा के समय हर कोई भगवान जगन्नाथ का दर्शन करता है । दर्शन ही नहीं करता बल्कि उनके विग्रह से गले लग लग कर रोता है खुश होता है । ये दृश्य मैनें अपनी आंखों से देखा है । भगवान को गले लगाकर उनके भक्त फूट फूट कर रोते हैं ।
पुरी एकमात्र ऐसा स्थान है जहां भगवान के मूल विग्रह को गर्भगृह से बाहर निकाल कर दस दिन के लिए दूसरे मंदिर में स्थापित किया जाता है । दस दिन भगवान का रत्न सिंहासन सूना रहता है । इन दस दिनों में मंदिर की मरम्मत का काम पूरा किया जाता है । वर्तमान श्री मंदिर लगभग 1000 वर्ष पुराना है ।
पुराणों में पुरी की अपार महिमा बतायी गयी है --- ब्रह्म पुराण में लिखा है ---
यथा सर्वेश्वरो विष्णु: सर्वलोकोत्तमोत्तम : ।
तथा समस्ततीर्थानां वरिष्ठं पुरूषोत्तमम् ।।
पुरी में बारह महीने तीस दिन भक्तों का तांता लगा रहता है । हर प्रदेश की अपनी भक्ति परंपरा है . इस मंदिर के विशाल प्रांगण में लोग भगवान का लगा हुआ भोग लेकर खाते हैं । भजन कीर्तन करते हैं । प्रवचन होते हैं । आजकल मुझे जब भी पुरी जाने का सौभाग्य प्राप्त होता है पुरी से हमारे पारिवारिक मित्र मुकेश गोयंका औऱ उनकी पत्नी संगीता गोयंका साथ होते हैं । एयरपोर्ट से भी वही लेते हैं । अपने घर ले जाते हैं प्रेम औऱ आदर से खिलाते पिलाते हैं औऱ फिर हमें अपनी गाड़ी से पुरी ले जाते हैं । और बहुत खुश होते हैं । उनका मानना है प्रभु उन्हें सेवा का अवसर दे रहे हैं । जब हम उनके साथ श्री जगन्नाथ जी के दर्शन करते हैं तो मंदिर में कुछ देर बैठते ज़रूर हैं । वो कहते हैं--- "दीदी भगवान के घर कभी भी भागम भाग में नहीं आना चाहिए दर्शन के बाद कुछ देर बैठो ज़रूर । क्योंकि मान लो हम अपने किसी मित्र या रिश्तेदार के घर जा कर बैठे ना उसका आथित्य स्वीकार ना करें तो क्या उन्हें बुरा नहीं लगेगा । ऐसे ही भगवान भी बुरा मानते हैं " । मुकेश गोयंका का तर्क मुझे समझ आता है । सही लगता है । और श्री जगन्ननाथ पुरी आ कर श्री मंदिर के अंदर ही केले के पत्ते पर जो स्वादिष्ट और अमृत के समान भोजन मिलता है उसके तो कहने ही क्या । मुकेश के पंड़ाश्री हरि हर भगवान के भोग सेवक हैं और भगवान की कृपा से हमें हर बार बहुत गर्म और स्वादिष्ट भोजन प्रसाद के रूप में मिला है और वो भी जी भर कर । आप भी कभी श्री जगन्नाथ के दर्शन को जाएं तो वहां की रसोई में बना भोजन ज़रूर प्रसाद के रूप में लें ।
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जगन्नाथ भगवान और पुरी की यात्रा के बाद छत्तीसगढ़ के राजीव लोचन के दर्शन की परम्परा है। तभी पुरी की तीर्थ यात्रा पूर्ण मानी जाती है। :)
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