मंगलवार, अक्तूबर 21
अष्ट लक्ष्मी आठ रूप आठ मनोकामनाएं
अश्वदायि गोदायी धनदायि महाधने ।
धनं मे जुषतां देवि सर्वकामांश्च देहि मे ।।
पुत्रपौत्र धनं धान्यं हस्त्यश्र्वाश्र्वतरी रथम् ।
प्रजानां भवसि माता आयुष्मन्तं करोतु मे ।।
धन ,ऐश्वर्य,वैभव ,संपदा की देवी लक्ष्मी से केवल धन की नहीं घोड़े , गाय , सर्वकामना पुत्र पौत्र धन धान्य रथ सब के लिए कामना की गयी है श्री सूक्त की इन पंक्तियों में । वेदों में भगवान विष्णु की पत्नी लक्ष्मी की कृपा की कामना हम और आप जैसे साधारण मनुष्य तो क्या स्वर्ग के देवता भी करते हैं । वेदों में देवी लक्ष्मी को महालक्ष्मी , कमला पद्माक्षी आदि नाम दिए गए हैं तो पुराणों में अष्टलक्ष्मी का वर्णन है । महालक्ष्मी के ये आठ रूप केवल धन ही नहीं देते बल्कि धरती पर आकर जितने भी प्रकार के सुख हैं वो सब प्रदान करती हैं । दुनिया में आने वाले हर मनुष्य को धन की कामना रहती ही है । गरीब आदमी गुज़ारे लायक पैसा कमाने , लखपति करोड़पति और करोड़पति अरबपति बनने की इच्छा रखता है । जितना धन कमा लो उतना कम जितनी सुख सुविधाएं जुटा लो उतनी कम इच्छाएं अनंत अपार हैं । जिनकी कामना हर मनुष्य के मन में हैं वो स्वयं कहां रहना पसंद करती हैं ये जानना भी ज़रूरी है ।
महाभारत के अनुशासन पर्व में लक्ष्मी स्वंय , गुणवती , पतिपरायण , सबका मंगल चाहने वाली तथा सद्गुण संपन्न होती हैं । भगवान कृष्ण की पटरानी रूकमिणी को बताती है --- “ मैं उन पुरूषों के घर सदा निवास करती हूं जो सौभाग्यशाली , निर्भिक , सच्चचरित्र और कर्तव्यपरायण हैं । अक्रोधी, भक्त , कृतज्ञ , जितेंद्रिय तथा सत्व संपन्न होते हैं । जो स्वभाव से ही निज धर्म , कर्तव्य तथा सदाचरण में तत्पर रहते हैं । धर्मज्ञ और गुरूजनों की सेवा सदा लगे रहते हैं । मन को वश में रखने वाले , क्षमाशील और सामर्थ्यशाली हैं ।
इसी प्रकार में उन स्त्रियों के घर में रहती हूं जो क्षमाशील जितेंद्रिय , सत्य पर विश्वास रखने वाली होती हैं जिन्हें देख कर सबका चित्त प्रसन्न हो जाता है । जो शीलवती, सौभाग्यवती , गुणवती , पतिपरायण , सबका मंगल चाहने वाली तथा सद्गुण संपन्न होती हैं “।
यानि लक्ष्मी किसके पास आएंगी उनकी भी अपनी कुछ शर्तें और नियम हैं । केवल धनवान हो जाना ही सनातन परंपरा में विशेष मायने नहीं रखता उसके साथ साथ उपरोक्त सभी गुण होना भी आवश्यक है । हमारे वेदों और शास्त्रों में जीवन में के चार पुरूषार्थ -- धर्म , अर्थ , काम और मोक्ष । इनका क्रम ऐसे ही तय नहीं किया गया है उसके पीछे हमारे मनीषियों , ऋषि मुनियों की गहन सोच थी । सबसे पहले धर्म धर्म का अर्थ यहां इंग्लिश के रिलीजन शब्द से ना लगाया जाए यहां इसका अर्थ है अपने कर्तव्यों को धारण करते हुए नैतिकता की राह पर चलना । और इस राह पर चल कर धन कमाना , धन से अपनी सांसारिक कामनाओं की पूर्ति करना और जीवन के सभी सुख भोग कर मोक्ष की राह पर चलना । माना गया है कि धर्म की राह पर चल कर कमाए गए धन से ही मोक्ष प्राप्ति की इच्छा मन में जागती है।
दीपावली के अवसर पर प्रथम पूज्य गणेश के साथ लक्ष्मी पूजन की परंपरा सदियों से चली आ रही है । गणेश मंगलकारी , रिद्धि सिद्धि शुभ और लाभ के दाता हैं और लक्ष्मी भौतिक सुख साधनों की दात्री । लक्ष्मी की उपासना सबसे पहले भगवान नारायण ने बैकुठं लोक में महालक्ष्मी के रूप में की । ब्रह्मा जी ने दूसरी बार इनकी पूजा की फिर भगवान शिव ने भगवान विष्णु ने क्षीर सागर में इनकी उपासना की । इसके बाद स्वायंभुव , मनु , मानवेंद्र ,ऋषियों , मुनियों और फिर सद्गृहस्थों ने की । भगवती महालक्ष्मी स्वर्ग के राजा इंद्र के राज्य में सभी ऐश्वर्यों के साथ विराजमान थीं लेकिन महर्षि दुर्वासा के शाप के कारण राजा इंद्र को छोड़ कर सुमुद्र में चली गयी । श्रीहीन होने से राजा इंद्र और अन्य देवी देवताओं का सारा वैभव और ऐशवर्य चला गया । तब सबने मिल कर बैकुंठ लोक में जा कर नारायण से प्राथर्ना की कि कि किसी तरह लक्ष्मी स्वर्ग में फिर से लौट आएं । लक्ष्मी को फिर से पाने के लिए समुद्र मंथन किया गया देवताओं औऱ राक्षसों ने मिल कर मंथन किया समुद्र से निकले चौदह रत्नों में धरती के वासियों के लिए सबसे सुंदर उपहार लक्ष्मी ही थीं । समुद्र मंथन से निकली लक्ष्मी ने भी भगवान विष्णु को ही अपने पति के रूप में वरण किया ।
सनातन परंपरा में आदि शक्ति के तीन रूप है महाकाली , महालक्ष्मी और महासरस्वती । ये तीनों क्रम से तमो , रजो और सतो गुणों की प्रतीक हैं । हमारे समाज में घर की बेटी औ बहू की तुलना लक्ष्मी से की गयी है । किसीके धर बेटी जन्म लेती है तो कहा जाता है लक्ष्मी आयी है । और बहु आती है तो उसे गृह लक्ष्मी की पदवी दी जाती है । यहां ये विचारणीय है कि बेटी और बहू को काली या सरस्वती नहीं कहा जाता लक्ष्मी ही कहा जाता है । लक्ष्मी भगवान विष्णु की पत्नी हैं भगवान विष्णु जगत के पिता यानि पालनहार है । लेकिन भगवान विष्णु स्वयं कहते हैं कि उनकी शक्ति लक्ष्मी हैं । वही उनसे जगत का पालन करवाती हैं । श्रीमद् देवी भागवत पुराण में लक्ष्मी के सुंदर रूप का वर्णन है --- जो देवी अपनी स्नेहभरी दृष्टि से विश्व को निरंतर निरखती और लक्षित करती रहती हैं, वही अत्यंत गौरवांन्वित होने के कारण महालक्ष्मी के नाम से प्रसिद्ध हुईं । योगसिद्धि के कारण नाना रूपों में विराजमान हुईं । परिपूर्णतम , परमशुद्ध सत्वस्वरूपा भगवती लक्ष्मी संपूर्ण सौभाग्यों से संपन्न हो कर महालक्ष्मी के नाम से बैकुंठ में निवास करती हैं । प्रेम के कारण समस्त नारी समुदाय में उन्हें ही प्रधान माना गया । स्वर्ग में राजा इंद्र के यहां वे स्वर्ग लक्ष्मी के नाम से , पाताल में पाताल लक्ष्मी के नाम से , राजाओं या आज के संदर्भ में कहें तो सत्ता वर्ग के यहां राज्य लक्ष्मी के नाम से विराजती हैं । और आम समाज में वो घर घर में गृह लक्ष्मी के नाम से जानी जाती हैं । घर ग-स्थी चलाना बच्चों का पालन पोषण करना पूरे परिवार की स्नेह . ममता करूणा के भाव के साथ देख भाल करना गृह लक्ष्मी के गुण हैं । इसी लिए महिलाओं की तुलना ऐश्वर्य और सौभाग्य की अधिष्ठात्री देवी श्री महालक्ष्मी से घर की बहु बेटी की तुलना की गयी है । महालक्ष्मी गृहस्थों के घरों में संपूर्ण मंगलों को भी मंगल प्रदान करने वाली देवी संपत्ति स्वरूपा हो कर वास करती हैं । भूषण ,रत्न , फल, जल ,राजा, रानी ,दिव्य नारी ,गृह, संपूर्ण धान्य, वस्त्र, पवित्र स्थान, देवताओं की प्रतिमा ,मंगल कलश , माणिक्य ,मोतियों की सुंदर मालाएं , बहुमूल्य हीरे ,चंदन ,वृक्षों की सुंदर शाखाएं और नूतन मेघ इन सभी में भगवती लक्ष्मी का अंश विराजमान है । पालनहार भगवान विष्णु की शक्ति महालक्ष्मी पूरे जगत का ऐसे ही पालन करती है जैसे मां अपने नवजात शिशु को अपना दुध पिला कर पालती है । संपूर्ण सौभाग्य दायिनी होने के कारण महालक्ष्मी अनेक रूपों में पूजी जाती हैं । उन्हें अष्ट लक्ष्मी के रूप में पूजा जाता है । प्रचलित अष्टलक्ष्मी स्तोत्र के अनुसार अष्टरूप हैं --
आदि लक्ष्मी ,धान्य लक्ष्मी , धैर्य लक्ष्मी , गज लक्ष्मी , संतान लक्ष्मी , विजय लक्ष्मी , विद्या लक्ष्मी और आठवीं हैं श्री धन लक्ष्मी ।
आदि यानि जिसका ना आरंभ है ना अंत है जो सतत और शास्वत हैं । सृजन और संहार से परे हैं वो हैं आदि शक्ति । जो पूरे जगत का निरंतर पालन करती हैं ।
अब यदि आप अपनी समृद्ध परंपरा पर गौर करें तो पायेंगें कि देवी देवता बड़े बूढे जब किसी को आशीर्वाद देते हैं तो कहते हैं – “तुम्हारा घर सदा धान्य से भरपूर रहे “। खाद्यान्न , फल , सब्जी प्रदान करके धान्य लक्ष्मी भूख मिटाती है । जहां धान्य लक्ष्मी की कृपा रहती है वहां खाने पीने के किसी सामान की कमी नहीं रहती भंडारे सदा भरे रहते हैं ।
तीसरा रूप है धैर्य लक्ष्मी । मन में शांति विवेक और धैर्य से ही जीवन सुखद सरल रहता है । संकट विपत्ति और विपरीत समय होने पर मन में धैर्य धारण करके परिस्थिति का सामना करना और संकट से उबरना एक विवेकशील स्त्री और पुरूष दोनों के गुण हैं । औऱ ये गुण प्रदान करती हैं धैर्य लक्ष्मी । विपरीत परिस्थितियों में बहुत दुखी होना या फिर क्रोधित होना या फिर मानसिक संतुलन खो बैठना अपेक्षित नहीं होता । अगर किसी घर की स्वामिनी परिस्थितियों से निपटना ना जानती हो तो अनेक समस्याएं खड़ी हो जाती हैं । इसलिए मन में धीरज धरना बहुत ज़रूरी है । आपने देखा होगा कि पुरूषों के मुकाबले कठिन परिस्थितियों में महिलाएं भावनात्मक रूप से ज्यादा मज़बूत रहती हैं । और क्योंकि हर घर में महालक्ष्मी गृह लक्ष्मी के रूप में विराजमान हैं तो वो गृह लक्ष्मियों को धैर्य भी प्रदान करती हैं ।
गज लक्ष्मी ,भव्य सुंदर हाथी पर बैठी ऐशवर्य और शक्ति की प्रतीक गज लक्ष्मी राजसी शान और गौरव की प्रतीक हैं ।
मां का स्वभाव ही है अपने बच्चे का पालन पोष्ण करना सदा उस पर नज़र रखना उसके कल्याण और विकास में लगे रहना । संतान लक्ष्मी बच्चों पर अपनी कृपा बनाए रखती हैं । मां के रूप में महिलाओं से केवल संतान का पालन ही नहीं करवाती बल्कि प्यार से स्नेह से सावधानी से बच्चे के पल पल के विकास पर नज़र रखती हैं । अपने आशीर्वाद से संतान का कल्याण करती हैं । उन्हें बुद्दि . विकास और सफलता देती हैं ।
महालक्ष्मी का छठा रूप है विजय लक्ष्मी । कार्य सिद्धि हर कार्य में विजय . राजदरबार में, कोर्ट कचहरी में जीवन के रण में हर कार्य में सिद्धि देती हैं विजय लक्ष्मी ।
सा विद्या या विमुक्तये यानि जिसके द्वारा मुक्ति प्राप्त हो वही विद्या है । श्रुति , स्मृति , इतिहास पुराण , दर्शन आदि सभी एक स्वर से भगवती विद्या की स्तुति करते हैं । विद्या को अमृत भी कहा गया है । विद्या के स्वरूप भी समय काल परिस्थिति के अनुसार बदले । उच्च शिक्षा प्राप्त भी धन कमाने का साधन बन गया है । विद्या के बिना जीवन अधूरा है । ज्ञान चक्षु खुलने पर मनुष्य विवेक और बुद्धि प्राप्त करता है । लक्ष्मी केवल धन की प्रतीक नहीं है बल्कि जीवन के उच्च आदर्शों और सद्गुणों की प्रतीक भी हैं । केवल धनवान होना ही पर्याप्त नहीं है बल्कि ज्ञानवान , बुद्धिमान , विवेकशील होना भी आवश्यक है । अष्ट लक्ष्मी के क्रम में आठवीं हैं धन लक्ष्मी । यानि धन सर्वोपरि नहीं उसके पहले बहुत से सद्गुणों का संचय होना चाहिए । केवल धम कमा लिया और मन को सुख नहीं या समाज में सम्मान नहीं तो फिर एसे धन का क्या लाभ । इसीलिए कहा गया है कि सद्गृहस्थों के घर में महालक्ष्मी उल्लू वाहिनी नहीं होनी चाहिए गरूड़ वाहिनी होनी चाहिए . गरूड़ वाहिनी लक्ष्मी भगवान विष्णु के साथ निवास करती हैं और सद् मार्ग पर चलने की प्रेरणा देती हैं । काला धन कमा कर भौतिक सुख सुविधाएं सब जुटायीं जा सकती हैं लेकिन जीवन का सच्चा सुख औऱ आनंद गरूड़ वाहिनी लक्ष्मी ही देती हैं । आज जीवन में महालक्ष्मी के ये आठ रूप धर्म , अर्थ काम मोक्ष जीवन के चारों पुरूषार्थ प्रदान करते हैं । नोट – लोक रक्षा के लिए आदि शक्ति ने श्री या कहें तो लक्ष्मी का रूप धरा । श्री और लक्ष्मी सबके लिए लक्ष्यमाणा होती हैं लोग जिससे आकृष्ट होते हैं जिसका लक्ष्य करते हैं जिसका आक्षय चाहते हैं वही लक्ष्मी हैं श्री हैं । शक्ति का श शब्द है वो ऐशवर्य का प्रतीक है । क्ति पराक्रम का प्रतीक है । ऐश्वर्य और पराक्रम दोनों देने वाली शक्ति कहलाती हैं । सभी ऋद्धि सिद्धि की अधिष्ठात्री समस्त वैभव की जननी समस्त सुख सुहाग ऐशवर्य की दात्री हैं । महर्षियों ने स्त्रियों को शक्ति स्वरूपा बताया है महर्षि आत्रेय ने चरक संहिता में माता, बहन बेटी ,पत्नी और पुत्रवधु अनेकों अनंत रूप धारण करके समाज में शक्ति का संचालन करती हैं । महर्षि आत्रेय के अनुसार स्त्रियों में प्रीति का वास है वो जननी हैं धर्म का वास स्त्रियों में हैं इसलिए धर्म पत्नी हैं । अर्थ स्त्रियों में है इसलिए लक्ष्मी हैं । माया प्रकृति और शक्ति तीनों एक हैं लेकिन अनेक रूप हैं और ये आठ लक्ष्मियां भी शक्ति के ही विभिन्न रूप हैं ।
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