शनिवार, अगस्त 1

              मेरी हीरोईन मेरी केला चाची


मेरी बीजी के दुनिया से चले जाने के बाद पहली बार साढ़े तीन साल बाद ममता भरे स्पर्श ने सहलाया गले लगाया बार बार सिर पर हाथ फेरा तो अहसास हुआ कि मां की ममता का जीवन में कितना मोल होता बीजी पापा के बिना जीवन में जो सूनापन है उसे कोई दूर नहीं कर सकता । लेकिन 28 जुलाई को लगभग 35 -36 साल के बाद अपने पैतृक गांव गए तो केला चाची जी ने इतना प्यार इतना  दुलार दिया कि मन और आंखे भर भर कर आ रहे थे । मुझे मेरी बहन और उसके पति को देख कर केला चाची जी कितनी खुश हुई इसे उन्होनें शब्दों में कम और अपने ममता भरे स्पर्श में ज्यादा व्यक्त किया ।
कितना लंबा समय गुज़र गया । गर्मियों की छुट्टियों में जब हम अपने गांव जाते तो खूब धमा चौकड़ी करते थे । केला चाची जी का घर हमारे घर के बिल्कुल साथ था । हमारी बचपन की सखा रूकमणि उसकी बहन उमा भाई सुंदर और बाली के साथ हमारी बहुत पटती थी । रूकमणि परसा दादा जी के परिवार से थी और उसी परिवार से थीं केला चाची जी । बचपन में केला चाची जी को हम बार बार देखा करते उनका सोने सा दमकता रंग और चांद जैसा गोलमटोल  चेहरा नाक में मोती और सीधे पल्ले की सूती धोती पहने केला चाची जी को हमने बहुत मेहनत करते देखा था । सुबह घर के काम धंधें में तो 11 बजे के आसपास वो अपने घेर  में चली जातीं अपने खेतों में जातीं थी । आते जाते वो हमारे घर आती थीं । आकर मेरी दादी जी मेरी ताई जी और मेरी बीजी के पैर छूतीं । हम देखते थे कि जो भी गांव की महिला घर आती थीं पैर छूने के बाद उन पर आशीषों की झड़ी लग जाती --- गूढ़ सुहागन रहो , तेरा साईं जीता रहें  दूधो नहाओ पूतो  फलों आदि आदि लेकिन केला चाची जी जब भी सबके पैर छूतीं सबके चेहरे मलिन से पड़ जाते और गहरी सांस लेकर मेरी दादी बुआ ताई और मेरी बीजी उन्हें कहती -- बहू दीदे गोड़े बने रहें तेरा लाल जीता रहे तुझे बहुत सुख दे । हमारा बालमन बहुत हैरान होता केला चाची जी इतनी सुंदर इतनी प्यारी फिर आशीर्वाद में इनके साथ ऐसा भेद भाव क्यों ।
        फिर धीरे धीरे इस राज़ से भी पर्दा उठा हमें पता चला कि केला चाची जी जब उन्नीस साल की भी नहीं हुईं थीं तो उनके पति चल बसे थे । 16 साल की उम्र में उनकी शादी हुई थी 17 वें साल में गोणा हुआ और तीन साल भी वो पति का सुख नहीं देखपायीं । हां बस एक सकून था कि उनका तीन महीने का एक बेटा था उस समय । जिसे सब शिवला कह कर बुलाते थे । शिवला हम से उम्र में छोटा था लेकिन बहुत ही प्यारा वो भी हमारे साथ खूब धमा चौकड़ी मचाया करता था ।
                                        केला चाची जी के परिवार के दुखों का अंत यहीं नहीं होता उनके ससुर भी दुनिया से चल बसे । पति और पुत्र की अकाल मृत्यु ने केला चाची जी की सास को जीते जी मार दिया । उन्होनें दुनियादारी छोड़ कर भगवान के साथ नाता जोड़ लिया वो केवल भगवान की भगती करतीं शायद अपना ग़म भुलाने का यही एक तरीका था उनके पास । अब 19 साल की केला चाची जी ने पूरी ज़िम्मेदारी अपने उपर ले ली वो चाहतीं तो अपने मायके लौट जातीं । दूसरी शादी कर लेतीं लेकिन नहीं उन्होनें घर बार खेत खलिहान का पूरा जिम्मा ले लिया दिन रात जी तोड़ मेहनत करतीं । हम हर साल गांव जाते केला चाची जी के रूप रंग पर त्याग तपस्या और सतीत्व की चमक बढ़ी हुई ही दिखाई देती । राजपूतों के गांव में बहू केवल घूंघट ही नहीं करती थीं बल्कि साड़ी के ऊपर ढ़ाई गज का एक दुप्पटा भी लपेटतीं  थीं । घर से बाहर निकलने के लिए ये बहुत ज़रूरी था मेरी बीजी का वो दुप्ट्टा आज भी मेरे पास सुरक्षित है । केला चाची जी भारी भरकम गठरियां और बोझ सिर पर रखतीं लेकिन क्या मज़ाल कि कभी उन्होनें किसी मर्यादा का उल्लघंन किया हो । उनके सामने भी वो सभी समस्याएं आयीं जो किसी भी सुंदर युवा विधवा के सामने आ सकतीं हैं लेकिन उन्हें दुनिया का कोई प्रलोभन डिगा नहीं पाया । सारे गांव को उनसे सहानुभूति थी और साथ ही उनकी तारीफ भी हर एक की जुबान पर रहती थी । चाची जी का बेटा शिवला बहुत लायक बच्चा निकला हमारे पूरे परिवार के साथ उसका संबंध आज भी ज्यों का त्यों है । हर खुशी हर गम में शिवला ज़रूर आता है  हमारा छोटा भाई लगता है । शिवले से बहुत बार मिलना हुआ मेरे बीजी पापा जी के निधन पर वो आया केवल आया ही नहीं हर  फ़र्ज भी निभाया । लेकिन चाची जी से मुलाकात अब ही हो पायी ।
              शिवले ने अपने घेर  ( पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पशुओं को बांधने , चारा रखने आदि के स्थान को घेर कहते हैं ) को अब अपना घर बना लिया है बहुत बड़ा और विशाल घर शिवले के चार बच्चे हैं ज़मीन जायदाद अच्छी खासी है खेती करता है और वो भी ऑर्गेनिक ।
        खैर इतने साल बाद जब केला चाची जी से मिलना हुआ तो उनसे बहुत सारी बातें हुईं दिल की ,घर की ,रिश्तेदारी की परिवार की । समय कम और किस्से ज्यादा थे । वो थोड़ी देर बाद कह देतीं आज तुम कैसे आ गयीं मेरा जीवन सफल हो गया । बहुत अच्छा लगा तुम आयीं । मेरी बीजी के साथ उनका एक खास रिश्ता था । जब वो बहुत दुखी होतीं थीं तो मेरी बीजी के पास आतीं थीं बहुत देर तक बातें करतीं आंखों में बहते आंसू धोती के पल्लू से पोंछतीं रहती थीं । हमारे मन में भी उनके प्रति बहुत प्रेम रहता था । जब उनसे चार दशक के बाद मिली तो लगा ही नहीं कि इतने साल बाद मिल रही हूं उनके रोम रोम से ममता उमड़ रही थी उनका हाथ बार बार हम दोनों बहनों के सिर पर आ जाता । शिवले की पत्नी ने हमारे लिए बहुत स्वादिष्ट खाना बना कर रखा था । केला चाची जी गिलास भर कर गाय का दूध ले कर आयीं मैं दूध पसंद नहीं करती लेकिन उनके स्नेह का मान रखना था इसलिए पी लिया लेकिन देसी गाय का दूध दिल्ली के दूध से कहीं ज्यादा स्वादिष्ट लगा ।  हमें दिन के दिन दिल्ली लौटना था लेकिन चाची जी थीं कि सोच रहीं थी हमें कहां बिठा दें ,क्या खिला दें ,क्या उपहार दे दें । वो मरवे के पत्ते तोड़ कर लायीं बोलीं चटनी बना लेना । फिर बोलीं मेरे पास मरवे के बहुत सारे बीज हैं तुम ले जाओं दिल्ली अपने घर गमले में लगा लेना ।
                   फिर जवें लेकर आयीं । जवें नूडल्स का देसी वर्जन है जो महिलाएं घर में आटा बना कर खुद तोड़तीं हैं । तीन चार किलो जवें उन्होनें हमें दिए । और फिर मेरी बहन के पति जिन्हें उन्होनें पहली बार देखा था उनकी टीका  करके विदाई की । हमारे यहां जवांई को टीका करके शगुन और नारियल को गोला दिया जाता है । उन्होनें सारी वो रस्में निभाई जो बेटी के मायके आने पर निभाई जातीं हैं मुझे और मेरी बहन को भी टीका करके शगुन दिया ।
                            अपने गांव से  जब हम लौटे तो बहुत सारी यादें ताज़ा करके,  केला चाची जी का प्यार और  बहुत सारी ममता ,शिवले  भाई का स्नेह अपनी झोली में भर कर लौटे ।  ममता को तरसते किसी इंसान को ममता का सागर ही मिल जाए तो फिर और क्या चाहिए । सच ही है प्यार का कोई मोल नहीं है । रिश्ते मन के हैं  मन के भीतर उगे ऐसे पौधे हैं जो कभी मरते नहीं मुरझा ज़रूर जाते हैं लेकिन जैसे ही ममता और स्नेह का स्पर्श मिलता है फिर से खिल उठते हैं । केला चाची जी अगर कोई आधुनिक स्त्री होतीं तो उनकी संघर्ष की गाथा पत्रिकाओं का हिस्सा बनतीं , टीवी पर आने वाले स्त्री संबंधी कार्यक्रमों की कहानी बनतीं । लेकिन मेरे दिल में केला चाची जी बचपन से सुंदर ,बहादुर , त्यागमयी , तपस्यामयी ममतामयी हीरोइन रहीं हैं । और हमेशा रहेंगी ।
कठिन रास्तों को उन्होनें अपने तप के बल पर अकेले पार किया अपने बेटे को अकेले पाला पोसा बिना किसी सहारे के ।  मुझे पूरा विश्वास है केला चाची जी जैसी और भी बहुत सी साहसी महिलाएं हमारे समाज में हैं और उन्होनें अपने समाज में आदर्श स्थापित किए हैं ।

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