सर्जना शर्मा
पिछली पोस्ट में मैनें पंडवानी गायिका प्रभादेवी से आपको मिलवाया था, आज मिलिए हिमाचल प्रदेश की गद्दी जनजाति की मौसादा दायिका कंचन से।
प्रभादेवी और कंचन के संघर्ष और जीवन की परिस्थितियों में बहुत अंतर है . लेकिन दोनों हैं बेहतरीन लोक कलाकार। कंचन अपने पति रोशन के साथ दिल्ली आयी थी इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के निमंत्रण पर इंदिरा गांधी राष्टीय कला केंद्र ने जीवंत परंपरा में महाभारत पर हुए जय उत्सव में दोनों को बुलाया था । रोशन हिमाचल प्रदेश की गद्दी जनजाति का युवक है .और भरमौर क्षेत्र के चंबा जिले से दिल्ली आया था । मौसादा गायन उसका पुश्तैनी पेशा है।मौसादा यानि महाभाररत , रामायण , कृष्ण लीला शिव लीला और विष्णु भगवान का गुण गान। उसने अपने पिता और दादा से गाना सीखा । लेकिन कंचन ऐसे परिवार से आती है जिसका गायन से दूर दूर तक का भी रिश्ता नहीं था।
कंचन बीस साल की थी जब उसकी रोशन से शादी हुई । कंचन सही मायने में रोशन की सहचरी और अर्धांगिनी है। दोनों की जोड़ी देखने में भगवान विष्णु और लक्ष्मी की जोड़ी जैसी लगती है । कंचन अति गौरवर्णा और सुंदर है। तीखे नैन नक्श, पहाड़िनों जैसी ही पतली दुबली। दोनों की जोड़ी जय उत्सव में बहुत हिट रही . दोनों अपनी पांरपरिक पोशाक पहनते । कंचन छींट का कलीदार घाघरा पहने हुए थी जिसे ये घघरू कहते हैं और पूरी बांहों की कुर्ती जिसे ये लुहांचड़ी कहते हैं भारीभरकम घाघरे को टिकाने के लिए बकरी के बालों की बनी काली रस्सी यानि गागी लपेटे रहती थी । और सुंदर गोटेदार सलमें सितारे वाली बड़ी सी ओढ़नी । एक तो रूप इतना और उपर से गद्दी डिज़ाइन के गहने माथे पर टीका (मान टीका ) नाक में बड़ी सी गोल चंद्रमा के आकार की जड़ाऊं नथ ( बालु ) और गले में चंद्रहार । रोशन सफेद रंग की सुत्थन (पायजामा नुमा ) के उपर घेरगार चोगा पहनता है और लिर बहुत प्यारी टोपी जिसमें मोर पंख और फुंदने लगे रहते हैं । सीधेसादे ये गद्दी मूलरूप से भगवान शिव के भक्त हैं । लेकिन इन्हें पूरी महाभारत और रामायण ज़ुबानी याद है । और भगवान विष्णु और लक्ष्मी की आराधना भी । हिमाचल प्रदेश में मौसादा गायक को गुराई और गायिका गुराइन कहते हैं ।
कंचन जब पूरी तरह सजी धजी होती है तो साक्षात देवी लगती है । मानो किसी कलाकार ने एक मूर्ति गढ़ दी हो । कंचन का स्वर रोशन से भी ज्यादा मधुर है और रोशन जहां भूल जाता है वहीं से कंचन सुर पकड़ लेती है।
कंचन तुम्हारे परिवार में तो गायन की कोई परंपरा नहीं फिर तुम कैसे इतना अच्छा गाने लगी हो ?
" शादी हो कर आयी तो परिवार की परंपरा को निभाना ज़रूरी था क्योंकि मेरी सास भी मेरे ससुर के साथ गाने जाती है । शुरू में तो गांव गांव जा कर गाने में शर्म आती थी लेकिन इनके साथ जा जाकर गाना सीखा इन्हें ध्यान से सुनती और अब तो मैं इनकी भी गलतियां सुधार देती हूं " ।
कंचन अपने पति की छाया बन कर चलती है दोनों के बीच एक मधुर रिश्ता है । दोनों को देख कर उनके बीच के मूक मधुर संवाद को देख कर कोई भी उनके रिश्ते की मिठास का अहसास कर सकता है । दोनों एक दूसरे के बिना अधूरे हैं । दोनों एक दूसरे के पूरक हैं । रोशन कहता है वैसे तो मैं अकेले गा सकता हूं लेकिन अब कंचन के बिना मज़ा नहीं आता । रोशन वायलियननुमा एक छोटा रूबाना बजाता है और दूसरे हाथ में खंजड़ी रखता है । दांए हाथ से रूबाना बजाता है और बांए हाथ में घुंघरू बांध कर खंजड़ी बजाता है । और कंचन के हाथ में रहते हैं कांसी के मंजीरे । और तीन वाद्य यंत्रों के साथ ये अपने मधुर स्वर में पुराणों और महाकाव्यों को अपनी भाषा में लोक शैली में गाते हैं ।
गद्दी जनजाति भरमौर इलाके में रहती हैं पहले ये बंजारों जैसा जीवन जीते थे पशु पालन करते थे लेकिन अब रोशन का परिवार बंजारा जीवन नहीं जीता . उनका अपना बड़ा सा घर और खेती बाड़ी की ज़मीन है । बकरी और गाएं पाल रखी हैं । गद्दियों में भी चार वर्ण है । रोशन और कंचन बताते हैं वो ब्राह्मण हैं और उनके पुरखे सदियों से ऐसे ही भगवान का गुणगान करते आ रहे हैं । दोनों दसवीं तक पढ़े हैं और उनके तीनों बच्चे भी पढ़ रहे हैं ।
रोशन के परिवार का पूरे इलाके में बहुत मान सम्मान है । उन्हें जागरण के लिए बुलाया जाता है , चौकी के लिए बुलाया जाता है । मंदिरों में व्रत उत्सवों पर ये गाते हैं । अब तो सरकार भी इन्हें लोक गायन के लिए बुलाती है । और दिल्ली के जय उत्सव में इन्हें गाने का अवसर मिला तो ये अपना सौभाग्यशाली मानते हैं।
इन्होने जय उत्सव में जो महाभारत गायी उसका एक छोटा सा अंश-
कौरवों का दरबार लगा है पांडवों से कैसे निपटा जाए इस पर विचार चल रहा है
--- हस्तिनापुर रंहदे पांडव राजे --- बो हां
मेरा मालक जाणे---- बाजो ले हां जी
भद्रपुरी रहंदे राजा दुर्योधना--- बो हां जी हां
ना मुके पांडव ना मुके कौरवां ओ हां जी हां
ना चुक्के रोज़ां के हो झगड़े हां जी
मेरा मालक जाणे बाजो ले हांजी
इंद्रप्रस्थ तांइए थी लड़ाई बो हांजी
लड़ाई बो हां मेरा मालक जाणे बो हांजी हां
सुण सुण ओ मेरे राजा दुर्योधना --हां
हो दुर्योधना हो हां जी हां हां --- हो
तां के बोला मेरा राजा दुर्योधना हां जी
दुर्योधना हां मेरा मालक जाणे दुर्योधनमा हां जी
दुर्योधन कहता है -------------
इन्हा पांडवां नहीं मरणा मेरे भगवाना हो जी
मेरा मालक जाणे बाजो ले हांजी
मेरी छाती ना गम हटणा वो हांजी
मामा शकुनि गल्ल गलानां----- बो हांजी ( मामा शकुनि कहते हैं )
डर मत करे मेरे भांजे राजा दुर्योधना--- हां जी
अब नहीं रहणा पांडवां दुर्य़ोधना---- हां जी ओ हां जी
कौरवों की सभा में धृतराष्ट्र , द्रोणाचार्य , कृपाचार्य भीष्म पितामह सब बैठे हुए हैं सब दुर्योधन को सलाह देते हैं ----
सुण सुण मेरे राजा दुर्य़ोधना हां जी
सुण लेणी बात हमारी रामा हो जी ---हां -- हां
कृष्ण राजा के रे पास चली जाइयो दुर्योधना हो जी -- हां
मेरा मालक जाणे बाजो ले हां जी -- हां -----
दुर्योधन भगवान कृष्ण के पास जाता है । भगवान कृष्ण कहते हैं ---
ता के बोलदे मेरे कृष्ण भगवाना महाराज जी हां -------
सुण सुण मेरे राजा दुर्योधना हो जी हां ---
सुण सुण हो मेरे राजा अरजुना जी हां हां ----
ग्वालु केरी खेल नहीं होणी बो हां जी हां
मेरा मालक जाणे बाजो ले हां जी -- हां -----
ऐ ता होणा महाभारता रामा महाभारता---- जी हां
सतक्षुणी सेना अर्जुना जो करी बक्शंत हो मेरे मालका जी हां हां ---
ग्यारह क्षुणी सेना जो करी बक्शंत हो मेरे मालका हो -----
ए ता होणा महाभारता जी हो हां हां ।
कुरूक्षेत्रा रामा पुज्जी कीणा जांदे बो हां जी ----
मेरा मालक जाणे बाजो ले हां जी -- हां -----
दोनों सेना कट्ठी लग्गी होण हां जी -- हां
ए ता होणा महाभारता जी हो -- हां हां जी -- हां
हर तरह के बाजे बजूरे लगे बजण हो हां जी हां
मेरा मालक जाणे बाजो ले हां जी -- हां -----
वैसे तो इसका अर्थ लगाना मुश्किल नहीं है लेकिन पंजाबी भाषा ना समझने वालों के लिए सरल अर्थ -----
हस्तिनापुर में पांडव राजा रहते थे
मेरा मालिक मेरा भगवान जानता है
भद्रपुरी में राजा दुर्योधन रहता था
उनके रोज़ के लड़ाई झगड़े खत्म नहीं हो रहे थे
उनके रोज़ के झगड़े बढ़ते ही जा रहे थे
इंद्रप्रस्थ को लेकर लड़ाई थी
कौरवों की सभा लगी है
दुर्योधना कहता है
ये पांडव मर क्यों नहीं
जब तक ये नहीं मरेंगें तब तक मेरी छाती का गम नहीं मिटेगा .
मामा शकुनि अपने भांजे दुर्योधन से कहते हैं मेरे भांजे तू डर मत
अब पांडव नहीं रहेंगें
कौरवों के दरबार में बैठे भीष्म पितामह , कृपाचार्य , द्रोणाचार्य दुर्योधन को सलाह देते हैं
कि तुम जा कर भगवान कृष्ण से मिलो
दुर्य़ोधन भगवान कृष्ण से मिलने जाता है और युद्ध के लिए मदद मांगता है
भगवान कृष्ण कहते हैं सुम नेरे राजा दुर्योधन ये कोई ग्वालों का खेल नहीं है
अब तो महाभारत होगा , संग्राम होगा
भगवान कृष्ण ने दुर्योधन को ग्यारह अक्षुणी सेना दी और
अर्जुन को शतक्षुणी सेना दी और कहा
अपनी अपनी सेनाएं लेकर अब तुम दोनों कुरूक्षेत्र के मैदान में पहुंच जाओ
कुरूक्षेत्र के मैदान में कौरवों पांडवों की सेनाएं एकत्र होने लगीं
रणभेरी बजने लगी तरह तरह के वाद्य बजने लगे
ये गद्दी महाभारत की एक छोटी सी झलक है महाभारत महीनों तो क्या पूरे साल भर गायी जा सकती है ।