मंगलवार, मई 24

पानी पानी रे...बिन पानी सब सून


सर्जना शर्मा
भयंकर गर्मी का महीना जयेष्ठ चल रहा है। इस महीने की गर्मी शरीर के लिए बहुत घातक हो सकती है अगर हम अपना ठीक से ध्यान ना रखें तो । भारत पूरी दुनिया में एकमात्र ऐसा देश है जिसमें 6 ऋतुएं हैं। हमारे सारे त्यौहार, पर्व ऋतुओं के अनुकूल ही है । इस महीने में सबसे ज्यादा महिमा जल की है। सूर्य की तेज़ किरणों में धरती के साथ साथ मनुष्य के शरीर के भीतर का जल भी सूखने लगता है। और हमारे ऋषि मुनियों ने इस महीने में जल के सरंक्षण को धर्म से जोड़ा ।  हमारा परंपरागत समाज  पूर्वजों के  बनाए नियमों का पालन भी करता है । आधुनिक लोग भले ही अपने स्वार्थ के दायरे में बंधे रहते हों लेकिन हमने अपने बचपन में देखा कि हमारे पड़ोस की बहुत सी महिलाएं जयेष्ठ के महीने में नंगें पांव रहने और जल ना पीने का व्रत लेती थीं । स्वयं भले ही ना पीएं लेकिन दूसरों के लिए शर्बत बना कर देना , राहगीरों के लिए ज़मीन खोद कर घड़े ऱखना और फिर उसमें स्वयं जल भरने जाना वो भी दिन में दो या तीन बार । हम छोटे थे तो हम चाव चाव से उनके साथ जाते और घड़े पानी के भर कर आते । सूर्य की तपन को अपने पांवों तले महसूस करना और स्वयं प्यासे रह कर ये अनुभव करना कि अगर पानी ना मिले तो क्या हालत होती है ।हमारी संस्कृति की एक ऐसी सोच है जो तप और संयम से दूसरों के लिए जीना सीखाती है । जल की महिमा का बखान हमारे वेदों और पुराणों में है । आज पश्चिमी देश --' सेव वॉटर यानि पानी बचाओ ' का ज्ञान हमें दे रहे हैं लेकिन हमारे पूर्वजों ने  हज़ारों वर्ष पहले लिखा --" जल को दूषित करने वाला नरक में जाता है " । पाप,और पुण्य  , स्वर्ग और नरक  भारतीय जनमानस. में गहरे पैठे रहते हैं ।भले ही नरक और पाप  के डर से  ही सही हमारे पूर्वज जल को स्वच्छ तो रखते थे । अथर्ववेद में जल पर सबसे ज्यादा श्लोक हैं जिनमें जल को जीवन का अमृत और भेषज यानि औषधि माना गया है । जल के दान को महादान बताया गया है । अगर आप अपने व्रत त्यौहारों पर ध्यान से विशलेषण करें तो आप पायेंगें कि सभी त्यौहार और व्रत मौसम से जुड़े हैं । तपती गर्मी में हम शीतल जल , शर्बत पीते हैं सत्तू , खीरा ककड़ी तरबूज और खरबूज खाते हैं ।और आप देखेंगें कि निर्जला एकादशी जो इसी महीने में पड़ती है (इस साल 12 जून को है  ) हम जल से भरा घड़ा , पखां , शरबत की बोतल , खरबूजा , ककड़ी , सत्तू , छतरी और जूते का दान करते हैं । ये वही सब वस्तुएं हैं जिनका हम गर्मियों में बहुत इस्तेमाल करते हैं औऱ इन्ही का हम दान भी करते हैं । यानि सीधा सा गणित है दूसरों की भी मदद करो जिनके पास इन सब वस्तुओं का अभाव है उन्हें दान करो । प्याऊ लगवाना ,पशु , पक्षियों के लिए जल की व्यवस्था करना धर्म माना गया है । इससे कितना पुण्य मिलता है इसका फैसला तो चित्रगुप्त ही करेंगें लेकिन ये तय है कि हमारी संस्कृति में सह अस्तित्व का बहुत महत्व है । इस भयंकर गर्मी में पशु पक्षियों को भी तो पानी चाहिए औऱ हम मनुष्यों को धर्म के माध्यम से ये सीखाया गया कि उनका भी ध्यान रखो ।
                                                                            गर्मी के महीने में गर्मी पड़ना भी बहुत आवश्यक है । अगर जेठ नहीं तपेगा तो सावन नहीं बरसेगा , और सावन नहीं बरसेगा तो किसानों को बहुत नुकसान होगा , फसल का नुकसान होगा और आखिर में हम सबको इसका नुकसान उठाना पड़ेगा । प्रकृति बहुत उदार और विशाल है उसके मौसमी फल भी हमारे शरीर को फायदा पहुंचाते हैं । इस मौसम के सभी  फलों और सब्जियों में पानी की मात्रा बहुत ज्यादा होती है । खीरा विटामिन ए , पोटेशियम से भरपूर होता है तो खरबूजा  पोटेशियम और विटामिन सी से भरपूर होता है । खीरा , ककड़ी तरबूज और खरबूजा शरीर को खनिज लवण देते हैं । ये फल खाने से लू नहीं लगती ।
                 इस मौसम में शरीर में पित्त उभरता है . गर्मी लगती है और प्यास भी लगती है ।  हमारे परंपरागत ठंडे पेय में शिकजंवी , आम का पाना , इमली का पाना , सत्तू और छाछ  पीया जाता था । जो शरीर को बाहरी नहीं भीतरी शीतलता देते थे । पोषक आहार विशेषज्ञ अरूण कुमार पानी बाबा  कहते हैं कि शिकजंवी में मिल की बनी चीनी ना डाल कर देसीतरीके से बना बूरा मिलाना चाहिए । और उसमें त्रिकटू ज़रूर डालना चाहिए । त्रिकटू काली मिर्च , सौंठ और पीपल को बराबर मात्रा में मिला कर कूट कर बनाया जाता है । अरूण जी कहते हैं त्रिकटू को फलों की चाट में , रायते में सबमें मिलाएं तो वात , कफ और पित्त तीनों संतुलित रहते हैं । और त्रिकटू 12 महीने प्रयोग किया जा सकता है । कच्चे आम , प्याज पुदीने और हरी मिर्च की चटनी भी इस मौसम में वरदान मानी गयी है । जो लोग प्याज नहीं खाते वो बिना प्याज़ के भी ये चटनी बना सकते हैं ।
               ज्योतिष शास्त्र में भी इस महीने की अनोखी व्याख्या है । हमारे परिचित ज्योतिषाचार्य अशोक कुमार जी ने जल और ज्योतिष विषय पर गहन अध्ययन किया है  ।उन्होने जल और मनुष्य के ज्योतिषय संबंध का अद्भुत विश्लेषण किया है । भारतीय महीनों के नाम नक्षत्रों के हिसाब से रखे गए हैं । जयेष्ठ मास की पूर्णिमा को चंद्रमा जयेष्ठा नक्षत्र में होता है । इस नक्षत्र का स्वामी बुध है जो दूसरों के कष्ट की अनुभूति कराता है ।  ये महीना जब आरंभ होता है तो चंद्रमा वृश्चिक राशि में होता है वृश्चिक भी जल की राशि है और इस महीने के सभी त्यौहार जल से जुड़े हैं . निर्जला एकादशी , गंगा दशहरा और भगवान जगन्नाथ की स्नान पूर्णिमा । और इसी महीने में भगवान जगन्नाथ की चंदन यात्रा और नौका विहार होता है ।इस नक्षत्र के देवता इंद्र है जो वर्षा के देवता है । यहां इंद्र , इंद्रियों के शमन का प्रतीक है और जप तप का संदेश देते हैं ।
                                चंद्रमा को मन का स्वामी माना गया है । चंद्रमा की घटती बढ़ती किरणों का प्रभाव मनुष्य के शरीर पर पड़ता है ।मनुष्य के शरीर में भी 72 फीसदी जल है । पृथ्वी का अधिकतर भाग भी जल से भरा है । वृश्चिक राशि में चंद्रमा नीच का माना जाता है औऱ इसकी नीचता को शुभता में बदलने के लिए जल के दान का विधान रखा गया है । आप जल जितना दान करेंगें चंद्रमा उतना ही शुभ होगा और मन भी प्रसन्न रहेगा । मन ठीक होगा तो शरीर भी प्रसन्न रहेगा । प्रसन्न रहने पर तन मन में उर्जा और उत्साह का संचार रहता है . उत्साह और उर्जा से सकारात्मक सोच बनती है । अशोक जी का मानना है इससे बुध ग्रह शुभ हो जाता है । अच्छी बुद्धि होने पर इंसान कर्म भी  अच्छे ही करता है यानि शनिदेव शुभ हो गए । अच्छे कर्मों से कामनाएं पूर्ण होती हैं और सुख की अनुभूति होती है अर्थात शुक्र शुभ हो गया । और अच्छे रास्ते से धन कमाने वालों का मन फिर आध्यात्म और भक्ति की और मुड़ता है । यानि देवगुरू बृहस्पति शुभ हो गए । . भक्ति मार्ग में रूकावटें डालने वाला राहू भी जब मनुष्य की सरलता और निष्कपटता देखता है तो वो अनूकूल हो जाता है । धर्म अर्थ और काम के बाद शेष बचता है मोक्ष केतु मोक्ष देने वाला ग्रह माना गया है और वही मोक्ष की राह पर चलने की बुद्धि देता है । यानि जल का  और संरक्षण मनुष्य का जीवन ही बदल देते हैं । इसलिए तपती गर्मी में जन कल्याण , धरती के अन्य प्राणियों के कल्याण और अपने कल्याण के लिए जल को शुद्ध रखो , संरक्षण करो , नदियों सरोवरों की पवित्रता बनाए रखो और जितना हो सके जल का दान करो । उतना ही पानी इस्तेमाल करें जितना ज़रूरी है बर्बाद ना करें । निर्जला एकादशी को निर्जल व्रत रखने के पीछे भी यही सोच रही होगी कि जल का सरंक्षण करो अपने लिए भी और धरती के सभी प्राणियों के लिए भी । अपने घर के आसपास पानी के घड़े रखें , पशु पक्षियों के लिए पीने का पानी  रखें । आप अगर पाप पुण्य में  बी  विश्वास नहीं रखते तो नेक काम करके आपके दिल को शांति तो अवश्य मिलेगी ।  

5 टिप्‍पणियां:

  1. परम्परागत स्रोत तो सुखा दिये, अब स्वयं सूखने की परम्परा का भी निर्वाह करे मानव जाति।

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  2. आज तो पूरा शोध-प्रबन्‍ध है। भारत ही ऐसा देश है जहाँ जल के सदुपयोग के लिए बार-बार आग्रह किया गया है। इसीकारण हम जल-स्रोतों को पूजते हैं। गंगा का माता मानते हैं। राजस्‍थान में तो खेतों में तरबूज जमीन में गाड़ दिए जाते थे जिससे राहगीर पानी के स्‍थान पर तरबूज से अपनी प्‍यास बुझा सके।

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  3. वाह्…………अति उत्तम आलेख …………ज्ञानवर्धक और उपयोगी जानकारी दी है।

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  4. बहुत ही ज्ञानवर्धक आलेख...

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  5. 'रहिमन पानी राखिये बिन पानी सब सून
    पानी गए न उबरे मोती, मानुष, चून'

    पानी की महत्ता को समझना ही होगा हम सभी को.
    त्रिकटू (शायद त्रिकूट भी कहते हैं) का अच्छा उपयोग बताया है आपने.
    ज्ञानवर्धक प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.

    आप मेरे ब्लॉग पर आयीं इसके लिए भी आभारी हूँ आपका.

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