लोहड़ी की आप सबको शुभकामनाएं । खुशियों का ये त्यौहार ऐसा त्यौहार है जिसे सब मिल कर मनाते हैं, अपनी खुशियां पड़ोसियों दोस्तों और नाते रिश्तेदारों के साथ बांटते हैं । किसी के घर में बच्चा हुआ हो या किसी के बेटे की नयी नयी शादी हुई हो तो उस घर में तो खुशियां होगीं ही होगीं, पूरा आसपड़ोस दोस्त नाते रिश्तेदार भी खुशियां मनाएंगें । हम ऐसे स्थान में रहते थे जहां पंजाबी हरियाणवी परिवार बहुत रहते थे । सब लोग मिल कर सबके त्यौहार एक साथ मनाते । हमारे पड़ोस में 50 -60 से ज्यादा बच्चे थे और सब लगभग हम उम्र ही थे । तीन चार साल का अंतर ही ज्यादा से ज्यादा था और वहां एक ही स्कूल था सब बच्चे उसी स्कूल में पढ़ते । त्यौहारों पर जो रौनक और हो हल्ला हमारे यहां होता ऐसा कहीं शायद ही होता होगा ।
लोहड़ी का त्यौहार भर सर्दी में आता है लेकिन हमें कहां सर्दी की परवाह । हम लोग मिल कर लोहड़ी मांगने जाते । हमारा रिंग लीडर होता था रोशन । रोशन अब डॉक्टर है । हम एक चादर ले लेते । चार बच्चे उसके चार कोने पकड़ते और साथ में एक टोकरी भी । और फिर समवेत स्वर में लोहड़ी गाते हुए निकलते । ज़ोर ज़ोर से गाते --- "दे माई लोहड़ी तेरा पुत्त चढ़ेगा घोड़ी " ,दे माई पाथी ( गोबर के उपले ) तेरा पुत्त चढ़ेगा हाथी "। लोहड़ी है भई लोहड़ी है । अगर किसी का दरवाज़ा बंद होता तो उसके घर के सामने गाते ---- खोल माई कुंडा जीवे तेरा मुंडा -- मां दरवाजे की सांकल खोल दे तेरा मुंडा यानि तेरा बेटा जीए । हमारा कोई भाई तो नहीं है लेकिन हमारे घर के समाने गाते ---- खोल माई ताक्की ( खिड़की) जीवे तेरी काकी ( पंजाब में छोटी लाडली बेटी को काकी कहा जाता है ) । मेरी छोटी बहन का नाम घर में काकी है और पूरा मौहल्ला उसे इसी नाम से बुलाता था । ताक्की केवल हमारे घर की खुलवाई जाती थी । और वो भी दस मिनट तक ।
रोशन बहुत ही चपल चंचल था नचवा लो, गवा लो , नकले उतरवा लो । रोशन ने अच्छी लोहड़ी देने वालों के लिए बना रखा था --- कंघा भई कंघा ए घर चंगा । यानि हमें अच्छी लोह़ड़ी दी ये घर बहुत अच्छा है. और हम लोग समवेत स्वर में उस घर के सामने ये गाते । चादर में हम उपले और लकड़ियां डलवाते थे और टोकरी में रेवड़ी, मूंगफली , गज्जक और मक्की के दाने । जिस घर में नवजात शिशु और नयी दुल्हन की पहली लोहड़ी होती उसके घर से तो बहुत कुछ लेते ,रूपए पैसे भी । छोटी सी जगह थी सब एक दूसरे को जानते थे, सबमें अच्छे संबंध थे परिवार जैसे ही ।
सब को पता होता था कि वानर सेना आने वाली है इसलिए सब लोहड़ी देने का अच्छा इंतज़ाम करके रखते थे । और कहीं किसी ने हमारी उम्मीद से कम दिया तो फिर उसकी खैर नहीं । उसके घर के समाने कम से कम 15 मिनट गाते-- हुक्का भी हुक्का ए घर भुक्का । ऐसी अपनी दुर्गत कोई नहीं करवाना चाहता था इसलिए गनीमत इसी में होती थी कि बच्चों की फौज को खुश रखा जाए । लेकिन शर्त ये भी होती थी कि लोहड़ी पूरी गाकर सुनायी जाएगी ।
रोशन के नेतृत्व में सब ज़ोर ज़ोर से गाते -- सुंदर -मुंदरिए -- होए -- तेरा कौन बिचारा होए -- दुल्ला भट्टी वाला । पूरी लोहड़ी गाकर फिर उसके परिवार को शुभ कामनाएं देते बधाई देते और आगे बढ़ जाते ।
लोहड़ी बच्चों के साथ बड़ों के लिए भी प्रेम मोहब्बत का, रूठों को मनाने का समय होता । अगर कभी किसी बात को लेकर पड़ोसिनों में मनमुटाव हो भी गया तो त्यौहारों पर खत्म हो जाता । जिसके घर में बेटे के जन्म या शादी की लोहड़ी होती उस घऱ की महिलाएं सबको साथ लेकर लोहड़ी बांटने जातीं । और लोहड़ी बांटने जाने का न्यौता एकदिन पहले ही दे दिया जाता । सब अपने सुंदर सुंदर कपड़े और गहने पहनकर लोहड़ी बांटने जाते। हां उस समय ब्यूटी पार्लर में जाकर तैयार होने का चलन नहीं था, इसलिए सबकी सुंदरता नेचुरल होती थी । आज भी मेरे ज़ेहन में विशुद्ध सुंदर चेहरे सामने आ जाते हैं । लोहड़ी बांटना मतलब सबके घरों में रेवड़ी , मूंगफली , गज्जक , मक्की के भुने हुए दाने बांटे जाते । बड़ी बड़ी टोकरियों में ये सामान रखा जाता और बड़े बड़े कटोरों से सबके घरों में बांटे जाते । और साथ ही न्यौता दिया जाता कि लोहड़ी पर बहू के मायके से क्या आया है वो भी देख जाओ । पहली लोहड़ी पर बहू के मायके से कपड़े, गहने, मिठाई आती सर्दियों के कपड़े शॉल स्वेटर आते । नवजात बच्चा होता तो उसके कपड़े भी आते । यानि सबको पता रहता किस की बहू के मायके क्या आया है । कोई अपनी बेटी की ससुराल में लोहड़ी भेजता तो वो भी सबको दिखाया जाता । अब ना वो पड़ोस रहा ,ना किसी को दिखाने का रिवाज़ । मुझे याद है कि ऐसे अवसरों पर बच्चों को कह दिया जाता कि जाओ सद्दा ( बुलावा ) दे आओ । हम लोग आनन फानन में सद्दा दे आते । बहु के घर से आया सामान या फिर बेटी की ससुराल भेजे जाने वाला सामान मंजी (खाट ) पर सुंदर चादर बिछाकर सजा दिया जाता और सब बड़े चाव से देखने आते । और फिर उस पर महिला मंडल बैठक भी चलती । फिर एक नतीजे पर पहुंचा जाता लोहड़ी कैसी आयी सामान्य या बहुत अच्छी । लेकिन अंत में एक टिप्पणी ये भी होती चलो जी जो आ गया अच्छा ही है बस प्यार बना रहे । हम तो छोटे थे लेकिन महिलाओं की बातें रस लेकर सुनते थे ।
लोहड़ी बांटने और मांगने में अंतर है, बांटती थीं बड़ी महिलाएं और मांगने जाते थे बच्चे, उन दिनों की यादें आज भी मन में ताजा है मेरी मां ,पड़ोस की चाची ,ताई और मौसी सज धज कर लोहड़ी बांटने जाती थीं । और फिर रात में जलाई जाती लोहड़ी । लोहड़ी की पूजा तिल और मक्की के दानों से की जाती । तिल तड़के दिन सरके कहा जाता । लोहड़ी का अलाव जलाया जाता । मांग मांग कर ही हम इतनी लकड़ी इतनी पाथियां जुटा लेते थे कि पूरी रात भी जलाएं तो कम नहीं पड़ता था । लोहड़ी के आसपास ही खाना पीना होता, सब लोग अपने घरों से लेकर आते और जो हम लोहड़ी मांग कर लाते वो भी कम नहीं होता था । देर रात तक गाना बजाना चलता । ढ़ोलक पर गीत गाए जाते गिद्धा किया जाता । बच्चे या बहू को नेग भी दिया जाता । यानि सबकी खुशियां सब मिल कर बांटते, सर्दी की रात में घर से बाहर निकल कर एक साथ बैठने का लोहड़ी एक अच्छा मौका रहती ।
अब जबसे दिल्ली में हूं वैसी लोहड़ी कभी मनायी ही नहीं ।यहां होती भी है तो बस बोनफायर जला लिया जाता है, डीजे चलाकर हाथ पांव मार लिए जाते हैं । अखबारों में होटलों और रेस्तरां के बड़े बड़े विज्ञापन आते हैं-- इंज्वाय लोहड़ी विद बोनफायर , डिनर एंड डीजे । लोहड़ी अब प्रेम और खुशियां बांटने का त्यौहार नहीं बोनफायर , डिनर एंड डीजे एंज्वॉय करने का त्यौहार बन गया है । सोसायटी फ्लैट्स और मॉल कल्चर के युग में शायद यही लोहड़ी है और ऐसी ही रहेगी . अब वो दिन नहीं लौटेंगें --- दे माई लोहड़ी तेरा पुत्त चढ़ेगा घोड़ी । खोल माई कुंडा जीवे तेरा मुंडा ।
सर्जना जी,
जवाब देंहटाएंआपको लोहड़ी की लख लख बधाईयां...
जय हिंद...
आपको लोहड़ी की हार्दिक शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंसर्जना जी, बहुत अच्छा संस्मरण। यही सामूहिकता का भाव और आपसी प्रेम ही तो कहीं छूट गया है। बस दिखावा है केवल। मन का उल्लास तो कहीं नहीं है। आपको भी लोहड़ी की बधाई।
जवाब देंहटाएंआपको लोहड़ी की लख लख बधाईयां|
जवाब देंहटाएंबातों ही बातों में संस्मरण साझा करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.जैसा की अजीत जी ने भी कहा है आज कल हम लोग इन त्योहारों में समाहित मूल भावना को भूलते जा रहे हैं.
जवाब देंहटाएंलोहड़ी की आपको सपरिवार हार्दिक शुभकामनाएं.
सादर
आपको लोहड़ी की हार्दिक शुभकामनायें। बेहद रोचक संस्मरण्…………वैसे अब पहले वाली बात तो किसी भी त्योहार मे नही रही।
जवाब देंहटाएंज्ञानवर्धक पोस्ट आपको भी लोहड़ी की बधाई आज ब्लॉगजगत के सामने एक बड़ा सवाल खड़ा कर दिया ऐसे लोगों ने...
जवाब देंहटाएंआपको लोहड़ी की हार्दिक शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंबडे ही दिलचस्प संस्मरण हैं आपके इस लोहडी पर्व के और उससे भी अधिक दिलचस्प लगे वे छोटे-छोटे गीत जो जिनका प्रयोग बच्चे लोहडी मांगने अलग-अलग घरों में अलग-अलग तरीके से करते । हमारे दिमागी दायरे में तो फिल्म वीर-जारा के लोहडी प्रसंग से ज्यादा कुछ कभी नहीं रहा क्योंकि इन्दौर (म. प्र.) में ऐसा कुछ कभी देखने में आया ही नहीं ।
जवाब देंहटाएंआपको भी लोहडी की बहुत-बहुत शुभकामनाएं...
अब त्यौहार मनाये नहीं निभाए जाते है, लोहड़ी की बहुत बहुत बधाई
जवाब देंहटाएंआप सबको मेरी तरफ से धन्यवाद, दिल तो करता है आप सब को लोहड़ी गाकर सुनाऊं और आपसे लोहड़ी मांगू . लेकिन ........
जवाब देंहटाएंचलिए कोई बात नहीं मैं खुश हूं कि इस लोहड़ी पर मेरे कितने सारे नए मित्र हैं, ब्लॉग परिवार है ---- लोहड़ी दी लख लख बधाई
बहुत सुंदर संस्मरण...... लोहड़ी की शुभकामनायें......
जवाब देंहटाएंबढ़िया प्रस्तुति. मकर संक्रांति पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं और बधाई ....
जवाब देंहटाएंआपको लोहड़ी की हार्दिक शुभकामनायें।
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