चर्चा मंच पर ज्ञानवाणी में विवाह संबंधी एक पोस्ट पढ़ी, सुशील बाकलीवाल जी ने उसमें वर वधु दोनों के वचनों के बारे में जानकारी चाही है । मैं अपने को विशेषज्ञ तो नहीं मानती लेकिन आजकल विवाह से संबंधित एक साप्ताहिक कार्यक्रम बनाती हूं तो हर तरह के विवाह पर रिसर्च कर रही हूं, बाकलीवाल जी आशा है आपको मेरी इस पोस्ट में कुछ सवालों का उत्तर मिलेगा ।
जिस विवाह में सप्तपदी होती है वो वैदिक विवाह कहलाता है । सप्तपदी वैदिक विवाह का अभिन्न अंग है । इसके बिना विवाह पूरा नहीं माना जाता सप्तपदी के बाद ही कन्या को वर के वाम अंग में बैठाया जाता है ---"यावत्कन्या न वामांगी तावत्कन्या कुमारिका " जब तक कन्या वर के वामांग की अधिकारिणी नहीं होती उसे कुमारी ही कहा जाएगा ।माता पिता कन्यादान भी कर दें , भाई लाजा होम भी करवा दें , पाणिग्रहण संस्कार भी हो जाए लेकिन जब तक सप्तपदी नहीं होती तब तक वर और कन्या पति पत्नी नहीं बनते । और वैदिक विवाह में अंतिम अधिकार कन्या को ही दिया गया है । माता पिता भले ही कन्यादान कर दें , भाई लाजा होम करवा दें लेकिन जब तक सप्तपदी के सातों वचन पूरे नहीं हो जाते और कन्या वर के वाम अंग में नहीं बैठ जाती तब तक विवाह पूरा माना ही नहीं जाएगा । और आधुनिक विचार धारा वाले चाहे इसे ढ़कोसला कहें या पुरातन पंथी लेकिन उन्हें भी ये जान कर हैरानी होगी कि इसमें दोनों बराबर हैं और सातवें पद के बाद दोनों सखा बन जाते हैं । दुनिया की किसी विवाह पद्धति में ऐसा बराबर का रिश्ता नहीं है ।
जैसे आप सब विवाह जैसे अनुष्ठान को इवेंट मैनेजमैंट बनाए जाने से चिंतित हैं वैसे ही विवाह करवाने वाले कुछ ज्ञानवान पंड़ित भी परेशान हैं उन्होने वैदिक विवाह का महत्व समझाने के लिए पुस्तकें लिखीं जिसका सरल हिंदी में भी अनुवाद किया गया । वैदिक विवाह पद्धति हज़ारों साल पुरानी है, ऋग्वेद और अथर्ववेद इसके आधार हैं ।चारों वेदों में ऋग्वेद सबसे प्राचीन है । ऋग्वेद के दसवें मंडल का 85 वां सूक्त और अथर्ववेद के 14 वें कांड का पहला सूक्त विवाह सूक्त हैं . ऋषि मुनियों ने इन्हीं सूक्तों के आधार पर वैदिक विवाह पद्धति तैयार की । वैदिक विवाह को सर्वश्रेष्ठ माना गया है । क्योंकि ये विवाह माता पिता की सहमति से , नाते रिश्तेदारों , इष्ट मित्रों और गुरूजनों के आशीर्वाद से होता है । और देवी देवता इसके साक्षी रहते हैं । वैदिक विवाह के कईं भाग हैं लेकिन बाकलीवाल जी ने सप्तपदी के बारे में ही जानकारी चाही है इसलिए हम सप्तपदी तक ही केंद्रित रहेगें । सप्तपदी को सनातन धर्म में सात जन्मों का बंधन माना गया है ।
---- पहले पद में वर कन्या से कहता है ---ऊं इष एकपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 1।।
वर कहता है --- हे देवि ! तुम संपत्ति तथा ऐश्वर्य और दैनिक खाद्य और पेय वस्तुओं की प्राप्ति के लिए पहला पग बढ़ाओ , सदा मेरे अनूकूल गति करने वाली रहो । भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।
---- ऊं ऊर्जे द्विपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 2 ।।
---- हे देवी ! तुम त्रिविध बल तथा पराक्रम की प्राप्ति के लिए दूसरा पग बढ़ाओ । सदा मेरे अनूकूल गति करने वाली रहो । भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें...
----ऊं रायस्पोषाय त्रिपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 3 ।।
-----------हे देवि ! धन संपत्ति की वृद्धि के लिए तुम तीसरा पग बढ़ाओ ,सदा मेरे अनूकूल गति करने वाली रहो । भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।।
---- ऊं मयोभवाय चतुष्पदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 4।।
....हे देवि ! तुम आरोग्य शरीर और सुखलाभवर्धक धन संपत्ति के भोग की शक्ति के लिए चौथा पग आगे बढ़ाओ और सदा मेरे अनुकूल गति करने वाली रहो भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।।
--- ऊं पशुभ्यो: पंचपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 5 ।।
--- हे देवि !तुम घर में पाले जाने वाले पांच पशुओं ,( गाय , भैंस , बकरी , हाथी और घोड़ा ) के पालन और रक्षा के लिए पांचवा पग आगे बढ़ाओ और सदा मेरे अनुकूल गति करने वाली रहो भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।। ।
---- ऊं ऋतुभ्य षट्पदी भव सा मामुनव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 6 ।।
---- हे देवि ! तुम 6 ऋतुओं के अनुसार यज्ञ आदि और विभिन्न पर्व मनाने के लिए और ऋतुओं के अनुकूल खान पान के लिए छठा पग आगे बढ़ाओ और सदा मेरे अनुकूल गति करने वाली रहो भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।। ।
--- ऊं सखे सप्तपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 7 ।। ---
----- हे देवि ! जीवन का सच्चा साथी बनने के लिए तुम सातवां पग आगे बढ़ाओ और सदा मेरे अनुकूल गति करने वाली रहो भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।। ।
रामेश्वर दास गुप्त धर्मार्थ ट्रस्ट द्वारा वैदिक विवाह पद्धति में तो सरल भाषा में सातों पदों को कुछ ऐसे लिखा गया है---
--- अन्नादिक धन पाने के हित , चरण उठा तू प्रथम प्रिये ।।
--- और दूसरा बल पाने को , जिससे जीवन सुखी जियें ।।
---धन पोषण को पाने के हित , चरण तीसरा आगे धर ।।
--- चौथा चरण बढ़ा तू देवि , सुख से अपने घर को भर ।।
--- पंचम चरण उठाने से, तू पशुओं की भी स्वामिन बन ।।
---- छठा चरण ऋतुओं से प्रेरक, बन कर हर्षित कर दे मन ।।
---- और सातवां चरण मित्रता के हित आज उठाओ तुम ।
मेरा जीवन व्रत अपनाओ , घर को स्वर्ग बनाओ तुम ।।
सप्तपदी पूरी होने के बाद कन्या को वर के वाम अंग में आने का निमंत्रण दिया जाता है ,लेकिन वामांगी बनने से पहले कन्या भी वर से कुछ वचन लेती है ----
--- तीर्थ , व्रत, उद्यापन . यज्ञ , दान यदि मेरे साथ करोगो तो मैं तुम्हारे वाम अंग आऊंगी ।
---- यदि देवों का हव्य, पितृजनों को कव्य मुझे संग लेकर करोगे तो मैं तुम्हारे वाम अंग में आऊंगी ।
--- परिजन , पशुधन का पालन रक्षण भार यदि है आपको स्वीकार तो मैं वाम अंग में आने
को तैयार ।
---- आय -व्यय , धन- धान्य में मुझ से यदि करोगो विचार , तो मैं वाम अंग में आने को तैयार ।
--- मंदिर , बाग -तड़ाग या कूप का कर निर्माण पूजोगे, यदि तो मुझे वामांगी निज जान ।
--- देश- विदेश में तुम क्रय विक्रय की जानकारी मुझे भी देते रहोगे तो मैं तुम्हारे वाम अंग में आऊंगी ।
---- सुनो सातवीं शर्त यह , पर नारी का संग ,नहीं करोगे तो आऊंगी, स्वामिन् वाम अंग ।
कन्या के इन सात वचनों के उत्तर में वर कहता है-
---तुम अपने चित्त को मेरे चित्त के अनूकूल कर लो , मेरे कहे अनुसार चलना और मेरे धन को भोगना पतिव्रता बन कर रहना तो मैं भी तुम्हारे सारे वचन निभाऊंगा तुम गृह स्वामिनी बन कर सारे सुख भोगना ।
वर एक बार फिर कन्या से पांच वचन लेता है ----
मेरी आज्ञा के बिना , सोमपान , उद्यान ।
पितृघर या कहीं और , मुझको अपना मान ।।
जाओगी यदि तुम नहीं , बन कर मम अनूकूल ।
पतिव्रता बन न करो , मुझ से कुछ प्रतिकूल ।।
वामांगी तब ही तुम्हे मानूंगा कल्याणी
इसमें ही हित जानना नहीं तो निश्चित हानि ।।
ये वचन किसी को अपना दास बनाने के लिए बल्कि एक संतुलित , सुचारू गृहस्थी चलाने के लिए हैं और सातवें पद के बाद दोनों सखा भी तो बन जाते हैं ।
इसके बाद धुव्र तारे के दर्शन कराए जाते हैं धुव्र अपनी अटल भक्ति और दृढ़ निश्यच के लिए जाना जाता है --- वर वधु को धुव्र तारा दिखाता है और कहता है ----- तुम धुव्र तारे को देखो , वधु ध्रुव तारे को देख कर कहती है --- जैसे ध्रुव तारा अपनी परिधी में स्थिर रहता है वैसे ही मैं भी अपने पति के घर में .कुल में स्थिर रहूं ।
उसके बाद --- वर वधु को अरूंधती तारा दिखा कर कहता है --- हे वधु अरूंधती तारे को देखो ।
वधु अंरूधति तारे को देख कर कहती है ---- हे अरूंधती जिस तरह तू सदा वशिष्ठ ( नत्रक्ष ) की परिचर्या में संलग्न रहती है इसी प्रकार मैं भी अपने पति की सेवा में संलग्न रहूं,संतानवती होकर सौ वर्ष तक अपने पति के साथ सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करूं ।
और फिर आती है सबसे रोचक रस्म की बारी--
वर अपने दाएं हाथ से वधु के हृदय को स्पर्श करते हुए कहता हैं ---
---- मैं तुम्हारे, हृदय को अपने कर्मों के अनुकूल करता हूं मेरे चित्त के अनुकूल तुम्हारा चित्त हो । मेरे कथन को एकाग्रचित् हो कर सुनना प्रजा का पालन करने वाले ब्रह्मा जी ने तुम्हें मेरे लिए नियुक्त किया है।
आज पश्चिमी देश जब लिंग भेद की बात कर रहे हैं तो हमारे यहां हज़ारों साल पहले नारी और पुरूष को कितना बराबरी का अधिकार था । विवाह का एक एक वचन दोनों के बराबर के दर्जे की बात करता है . बल्कि वर वधु को अपना सर्वस्व दे रहा है । गृहस्थी को हमारे वेदों में सर्वश्रेष्ठ आश्रम माना गया है । विवाह केवल दो शरीरों का नहीं दो आत्माओं , दो परिवारों का मिलन है । सनातन संस्कृति के 16 संस्कारों में से एक अति महत्वपूर्ण संस्कार है । विवाह को दो आत्माओं का आध्यात्मिक मिलन माना गया है ऋग्वेद में वर वधु विवाह के समय भगवान से एक प्रार्थना करते हैं जिसका हिंदी अनुवाद कुछ इस प्रकार है ------
--- " विश्व के सृजनहार ( ब्रह्मा जी ) , पालनहार ( विष्णु जी ) संहारकर्ता ( आदि देव महादेव ) अपनी शक्ति से और विवाह मंडप में विराजमान देवता और अन्य विद्वान और महान गण अपने शुभ आशीष से हमारी ( वर -वधु ) आत्माओं और हृदयों का एकीकरण इस प्रकार कर दें जैसे दो नदियों और दो पात्रों का जल परस्पर मिल कर एक हो जाता है । अर्थात जिस प्रकार गंगा और यमुना की पवित्र धाराओं का संगम होने पर विश्व की कोई शक्ति उन्हें अलग नहीं कर सकती , इसी प्रकार हमारी आत्माएं भी परस्पर मिल कर शरीर से पृथक होते हुए भी आत्मा और हृदय से एक हो जायें । "
जिस विवाह में सप्तपदी होती है वो वैदिक विवाह कहलाता है । सप्तपदी वैदिक विवाह का अभिन्न अंग है । इसके बिना विवाह पूरा नहीं माना जाता सप्तपदी के बाद ही कन्या को वर के वाम अंग में बैठाया जाता है ---"यावत्कन्या न वामांगी तावत्कन्या कुमारिका " जब तक कन्या वर के वामांग की अधिकारिणी नहीं होती उसे कुमारी ही कहा जाएगा ।माता पिता कन्यादान भी कर दें , भाई लाजा होम भी करवा दें , पाणिग्रहण संस्कार भी हो जाए लेकिन जब तक सप्तपदी नहीं होती तब तक वर और कन्या पति पत्नी नहीं बनते । और वैदिक विवाह में अंतिम अधिकार कन्या को ही दिया गया है । माता पिता भले ही कन्यादान कर दें , भाई लाजा होम करवा दें लेकिन जब तक सप्तपदी के सातों वचन पूरे नहीं हो जाते और कन्या वर के वाम अंग में नहीं बैठ जाती तब तक विवाह पूरा माना ही नहीं जाएगा । और आधुनिक विचार धारा वाले चाहे इसे ढ़कोसला कहें या पुरातन पंथी लेकिन उन्हें भी ये जान कर हैरानी होगी कि इसमें दोनों बराबर हैं और सातवें पद के बाद दोनों सखा बन जाते हैं । दुनिया की किसी विवाह पद्धति में ऐसा बराबर का रिश्ता नहीं है ।
जैसे आप सब विवाह जैसे अनुष्ठान को इवेंट मैनेजमैंट बनाए जाने से चिंतित हैं वैसे ही विवाह करवाने वाले कुछ ज्ञानवान पंड़ित भी परेशान हैं उन्होने वैदिक विवाह का महत्व समझाने के लिए पुस्तकें लिखीं जिसका सरल हिंदी में भी अनुवाद किया गया । वैदिक विवाह पद्धति हज़ारों साल पुरानी है, ऋग्वेद और अथर्ववेद इसके आधार हैं ।चारों वेदों में ऋग्वेद सबसे प्राचीन है । ऋग्वेद के दसवें मंडल का 85 वां सूक्त और अथर्ववेद के 14 वें कांड का पहला सूक्त विवाह सूक्त हैं . ऋषि मुनियों ने इन्हीं सूक्तों के आधार पर वैदिक विवाह पद्धति तैयार की । वैदिक विवाह को सर्वश्रेष्ठ माना गया है । क्योंकि ये विवाह माता पिता की सहमति से , नाते रिश्तेदारों , इष्ट मित्रों और गुरूजनों के आशीर्वाद से होता है । और देवी देवता इसके साक्षी रहते हैं । वैदिक विवाह के कईं भाग हैं लेकिन बाकलीवाल जी ने सप्तपदी के बारे में ही जानकारी चाही है इसलिए हम सप्तपदी तक ही केंद्रित रहेगें । सप्तपदी को सनातन धर्म में सात जन्मों का बंधन माना गया है ।
---- पहले पद में वर कन्या से कहता है ---ऊं इष एकपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 1।।
वर कहता है --- हे देवि ! तुम संपत्ति तथा ऐश्वर्य और दैनिक खाद्य और पेय वस्तुओं की प्राप्ति के लिए पहला पग बढ़ाओ , सदा मेरे अनूकूल गति करने वाली रहो । भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।
---- ऊं ऊर्जे द्विपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 2 ।।
---- हे देवी ! तुम त्रिविध बल तथा पराक्रम की प्राप्ति के लिए दूसरा पग बढ़ाओ । सदा मेरे अनूकूल गति करने वाली रहो । भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें...
----ऊं रायस्पोषाय त्रिपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 3 ।।
-----------हे देवि ! धन संपत्ति की वृद्धि के लिए तुम तीसरा पग बढ़ाओ ,सदा मेरे अनूकूल गति करने वाली रहो । भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।।
---- ऊं मयोभवाय चतुष्पदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 4।।
....हे देवि ! तुम आरोग्य शरीर और सुखलाभवर्धक धन संपत्ति के भोग की शक्ति के लिए चौथा पग आगे बढ़ाओ और सदा मेरे अनुकूल गति करने वाली रहो भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।।
--- ऊं पशुभ्यो: पंचपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 5 ।।
--- हे देवि !तुम घर में पाले जाने वाले पांच पशुओं ,( गाय , भैंस , बकरी , हाथी और घोड़ा ) के पालन और रक्षा के लिए पांचवा पग आगे बढ़ाओ और सदा मेरे अनुकूल गति करने वाली रहो भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।। ।
---- ऊं ऋतुभ्य षट्पदी भव सा मामुनव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 6 ।।
---- हे देवि ! तुम 6 ऋतुओं के अनुसार यज्ञ आदि और विभिन्न पर्व मनाने के लिए और ऋतुओं के अनुकूल खान पान के लिए छठा पग आगे बढ़ाओ और सदा मेरे अनुकूल गति करने वाली रहो भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।। ।
--- ऊं सखे सप्तपदी भव सा मामनुव्रता भव विष्णुस्त्वानयतु पुत्रान् विन्दावहै बहूंस्ते संतु जरदष्टय: ।। 7 ।। ---
----- हे देवि ! जीवन का सच्चा साथी बनने के लिए तुम सातवां पग आगे बढ़ाओ और सदा मेरे अनुकूल गति करने वाली रहो भगवान विष्णु तुम्हें इस व्रत में दृढ़ करें और तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।। ।
रामेश्वर दास गुप्त धर्मार्थ ट्रस्ट द्वारा वैदिक विवाह पद्धति में तो सरल भाषा में सातों पदों को कुछ ऐसे लिखा गया है---
--- अन्नादिक धन पाने के हित , चरण उठा तू प्रथम प्रिये ।।
--- और दूसरा बल पाने को , जिससे जीवन सुखी जियें ।।
---धन पोषण को पाने के हित , चरण तीसरा आगे धर ।।
--- चौथा चरण बढ़ा तू देवि , सुख से अपने घर को भर ।।
--- पंचम चरण उठाने से, तू पशुओं की भी स्वामिन बन ।।
---- छठा चरण ऋतुओं से प्रेरक, बन कर हर्षित कर दे मन ।।
---- और सातवां चरण मित्रता के हित आज उठाओ तुम ।
मेरा जीवन व्रत अपनाओ , घर को स्वर्ग बनाओ तुम ।।
सप्तपदी पूरी होने के बाद कन्या को वर के वाम अंग में आने का निमंत्रण दिया जाता है ,लेकिन वामांगी बनने से पहले कन्या भी वर से कुछ वचन लेती है ----
--- तीर्थ , व्रत, उद्यापन . यज्ञ , दान यदि मेरे साथ करोगो तो मैं तुम्हारे वाम अंग आऊंगी ।
---- यदि देवों का हव्य, पितृजनों को कव्य मुझे संग लेकर करोगे तो मैं तुम्हारे वाम अंग में आऊंगी ।
--- परिजन , पशुधन का पालन रक्षण भार यदि है आपको स्वीकार तो मैं वाम अंग में आने
को तैयार ।
---- आय -व्यय , धन- धान्य में मुझ से यदि करोगो विचार , तो मैं वाम अंग में आने को तैयार ।
--- मंदिर , बाग -तड़ाग या कूप का कर निर्माण पूजोगे, यदि तो मुझे वामांगी निज जान ।
--- देश- विदेश में तुम क्रय विक्रय की जानकारी मुझे भी देते रहोगे तो मैं तुम्हारे वाम अंग में आऊंगी ।
---- सुनो सातवीं शर्त यह , पर नारी का संग ,नहीं करोगे तो आऊंगी, स्वामिन् वाम अंग ।
कन्या के इन सात वचनों के उत्तर में वर कहता है-
---तुम अपने चित्त को मेरे चित्त के अनूकूल कर लो , मेरे कहे अनुसार चलना और मेरे धन को भोगना पतिव्रता बन कर रहना तो मैं भी तुम्हारे सारे वचन निभाऊंगा तुम गृह स्वामिनी बन कर सारे सुख भोगना ।
वर एक बार फिर कन्या से पांच वचन लेता है ----
मेरी आज्ञा के बिना , सोमपान , उद्यान ।
पितृघर या कहीं और , मुझको अपना मान ।।
जाओगी यदि तुम नहीं , बन कर मम अनूकूल ।
पतिव्रता बन न करो , मुझ से कुछ प्रतिकूल ।।
वामांगी तब ही तुम्हे मानूंगा कल्याणी
इसमें ही हित जानना नहीं तो निश्चित हानि ।।
ये वचन किसी को अपना दास बनाने के लिए बल्कि एक संतुलित , सुचारू गृहस्थी चलाने के लिए हैं और सातवें पद के बाद दोनों सखा भी तो बन जाते हैं ।
इसके बाद धुव्र तारे के दर्शन कराए जाते हैं धुव्र अपनी अटल भक्ति और दृढ़ निश्यच के लिए जाना जाता है --- वर वधु को धुव्र तारा दिखाता है और कहता है ----- तुम धुव्र तारे को देखो , वधु ध्रुव तारे को देख कर कहती है --- जैसे ध्रुव तारा अपनी परिधी में स्थिर रहता है वैसे ही मैं भी अपने पति के घर में .कुल में स्थिर रहूं ।
उसके बाद --- वर वधु को अरूंधती तारा दिखा कर कहता है --- हे वधु अरूंधती तारे को देखो ।
वधु अंरूधति तारे को देख कर कहती है ---- हे अरूंधती जिस तरह तू सदा वशिष्ठ ( नत्रक्ष ) की परिचर्या में संलग्न रहती है इसी प्रकार मैं भी अपने पति की सेवा में संलग्न रहूं,संतानवती होकर सौ वर्ष तक अपने पति के साथ सुख पूर्वक जीवन व्यतीत करूं ।
और फिर आती है सबसे रोचक रस्म की बारी--
वर अपने दाएं हाथ से वधु के हृदय को स्पर्श करते हुए कहता हैं ---
---- मैं तुम्हारे, हृदय को अपने कर्मों के अनुकूल करता हूं मेरे चित्त के अनुकूल तुम्हारा चित्त हो । मेरे कथन को एकाग्रचित् हो कर सुनना प्रजा का पालन करने वाले ब्रह्मा जी ने तुम्हें मेरे लिए नियुक्त किया है।
आज पश्चिमी देश जब लिंग भेद की बात कर रहे हैं तो हमारे यहां हज़ारों साल पहले नारी और पुरूष को कितना बराबरी का अधिकार था । विवाह का एक एक वचन दोनों के बराबर के दर्जे की बात करता है . बल्कि वर वधु को अपना सर्वस्व दे रहा है । गृहस्थी को हमारे वेदों में सर्वश्रेष्ठ आश्रम माना गया है । विवाह केवल दो शरीरों का नहीं दो आत्माओं , दो परिवारों का मिलन है । सनातन संस्कृति के 16 संस्कारों में से एक अति महत्वपूर्ण संस्कार है । विवाह को दो आत्माओं का आध्यात्मिक मिलन माना गया है ऋग्वेद में वर वधु विवाह के समय भगवान से एक प्रार्थना करते हैं जिसका हिंदी अनुवाद कुछ इस प्रकार है ------
--- " विश्व के सृजनहार ( ब्रह्मा जी ) , पालनहार ( विष्णु जी ) संहारकर्ता ( आदि देव महादेव ) अपनी शक्ति से और विवाह मंडप में विराजमान देवता और अन्य विद्वान और महान गण अपने शुभ आशीष से हमारी ( वर -वधु ) आत्माओं और हृदयों का एकीकरण इस प्रकार कर दें जैसे दो नदियों और दो पात्रों का जल परस्पर मिल कर एक हो जाता है । अर्थात जिस प्रकार गंगा और यमुना की पवित्र धाराओं का संगम होने पर विश्व की कोई शक्ति उन्हें अलग नहीं कर सकती , इसी प्रकार हमारी आत्माएं भी परस्पर मिल कर शरीर से पृथक होते हुए भी आत्मा और हृदय से एक हो जायें । "
विवाह की संस्था पर सार्थक व स्तरीय चर्चा। मौलिक संदर्भों में साम्य दिखता है।
जवाब देंहटाएंप्रवीण जी त्वरित पठन और टिप्पणी के लिए धन्यवाद
जवाब देंहटाएंbahut hi uchchstariye lekhan aur vyakhyaa
जवाब देंहटाएंvaidek vivah ko varnit karti sarahniye post .bahut bahut aabhar .
जवाब देंहटाएंआधुनिक विचार धारा वाले चाहे इसे ढ़कोसला कहें या पुरातन पंथी लेकिन उन्हें भी ये जान कर हैरानी होगी कि इसमें दोनों बराबर हैं और सातवें पद के बाद दोनों सखा बन जाते हैं । दुनिया की किसी विवाह पद्धति में ऐसा बराबर का रिश्ता नहीं है ।
जवाब देंहटाएंसर्जना जी यही हिंदू धर्म की सबसे बडी उपलब्धि है…………जब पति पत्नि एक दूसरे को सखा मान लेते हैं तो फिर कोई छोटा या बडा नही रहता सखा से व्यवहार बराबर के स्तर पर किया जाता है…………आपने एक बहुत ही उत्कृष्ट आलेख लगाया है …………सप्तपदी और वैवाहिक जीवन के महत्त्व को दर्शाता आलेख सच मे सराहनीय है।
बहुत ग्यानवर्द्धक आलेख है। बेशक लोग विश्वास न करें लेकिन उस समय वर वधू इसे ध्यान से सुनते भी हैं और उनके मन पर असर भी होता है। लेकिन आज कल के पँडित बहुत शार्ट कट मारने लगी है। विधी को सरल करने के लिये पूरी विधी से इसका पालन नही कर रहे। बहुत अच्छा आलेख है। बधाई।
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छी जानकारी दी आपने.
जवाब देंहटाएंसादर
-----
गणतंत्र को नमन करें
आभार।
जवाब देंहटाएं---------
हंसी का विज्ञान।
ज्योतिष,अंकविद्या,हस्तरेख,टोना-टोटका।
बहुत अच्छी जानकारी दी आपने। आभार।
जवाब देंहटाएंसर्जनाजी,
जवाब देंहटाएंसबसे पहले तो क्षमा चाहूँगा कि आज दिन भर बिजली बन्द रहने के कारण मोबाईल द्वारा आपकी इस पोस्ट से अपना ज्ञानवर्द्धन करने के बाद भी टिप्पणी नहीं दे पाया ।
सप्तपदी जिसे मैंने 'सात फेरे - सात वचन' के रुप में जानने की उत्सुकता शायद सुश्री वाणी गीतजी की पोस्ट पर उनकी एक तरफा वचनों की जानकारी के सन्दर्भ में प्रकट की थी उस पर आपने इतने सुन्दर तरीके से विस्तृत जानकारी प्रस्तुत कर सभी पाठकों का विस्तृत ज्ञानवर्द्धन किया ।
नई जानकारी यह भी लगी कि संस्कृत के सातों वचनों में "तुम्हें श्रेष्ठ संतान से युक्त करें जो बुढापे में हमारा सहारा बनें ।" पंक्ति का उल्लेख होता है । और भाई द्वारा लाजा होम करवाने का अर्थ समझ में नहीं आया । क्योंकि हमारे जैन समाज में वैवाहिक रीति-रिवाजों में भी बहुत कुछ बदलाव हो जाते हैं उसी मुताबिक शायद ये शब्द भी बदल जाते हैं ।
बहरहाल इस जानकारीवर्द्धक पोस्ट के सुन्दर प्रस्तुतिकरण हेतु आभार आपका. धन्यवाद...
सुशील जी धन्यवाद । आपकी ज्ञिज्ञासा के कारण मैंने सप्तपदी पर लिखा
जवाब देंहटाएंकन्यादान ,लाजा होम और पाणिग्रहण संस्कार पर भी लिखूंगीं । लाजा होम वधु के भाई करवाते हैं । इस पर विस्तार से लिखूंगी । वैदिक विवाह पद्धति एक तरह से पूरी लोकतांत्रिक पद्धति हैं ।
संजना जी ,
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छे और विस्तृत रूप से सप्तपदी के विषय में जानकारी दी है. इसके विषय में हम लोगों को तो ज्ञात है लेकिन हमारी नई पीढ़ी इसके बारे में इतने विस्तार से जाने इसके लिए ऐसे आलेख जरूरी हैं. इन मन्त्रों के साथ जीवन भर के लिए बंधने वाले भी इसको सहज तोड़ने कि हिम्मत नहीं जुटा पाते हैं
नाम के अनुरूप ब्लॉग .... अति सुन्दर .बधाई ..........बेहतरीन ....विमर्श .
जवाब देंहटाएंआप सब को धन्यवाद
जवाब देंहटाएंSarjana ji fere me pratham war age rahta hai ya wadhu
जवाब देंहटाएं