सर्जना शर्मा
युवक हमें काली देवी के गृभगृह के सामने बने हॉल में ले गया। वहां एक बूढ़ा सा पुजारी बैठा था। उसने पूजा की टोकरी से नारियल चुनरी सिंगार का सामान निकाल लिया और मिठाई का डिब्बा और हार रहने दिया। और वो बिहारी युवक हमें बताता रहा कि होली के बाद का पहला मंगलवार है आज मां का राज्याभिषेक है आज मां के वस्त्र आपको मिल जाएं तो बहुत शुभ होगा। उसकी किसी बात का जवाब दिए बिना हम आगे बढे। लाईन तोड़ कर वो हमें आगे ले गया वहां भी बहुत धक्का मुक्की थी। अब उसने टोकरी मेरे हाथ में पकड़ा दी और स्वयं थोड़ा पीछे खड़ा हो गया। पुजारी ने कहा मां को चढ़ावा चढ़ाओं मैनें टोकरी में 211 रूपए रखे थे लेकिन वो टोकरी में दिख ही नहीं रहे थे। मैनें उस युवक से पूछा चढ़ावा कहां है उसने कहा टोकरी में ही है लेकिन दिखा नहीं पुजारी ने जब शोर मचाया तो उसने कहा प्रसाद के डिब्बे में। मैने डिब्बा खोल कर देखा तो उसने पैसे मिठाई के नीचे दबा रखे थे। खैर वो मैनें चढ़ा दिए तो पुजारी ने फिर भी जिद की कि मंदिर की थाली में मैं कुछ और पैसे चढ़ाऊं। देवी मां को ही चढ़ाना है ये सोच कर मैनें कुछ और रूपए निकाले लेकिन पुजारी ने कहा 1100 रूपए चढ़ाओ। चढ़ावा श्रद्धा से होता है जितना मैं चढ़ाना चाहती थी उतना ही चढ़ा दिया। काली मां के दर्शन कर हम बाहर निकले, वो बिहारी युवक हमें फिर से हॉल में ले गया। वीएन दास जी को उसने कहा कि आप पीछे ही रूकें और बूढ़ा पुजारी मुझे एक तरफ ले गया। दोनों ने दुर्गासप्तशती का श्लोक जयंती मंगला काली ---- मुझ से बुलवाना शुरू किया। लेकिन गलत शलत बोले चले जा रहे थे। मैनें उन दोनों को कहा कि आप प्लीज़ अपना मंत्र बंद करें मुझे ये मंत्र आता है मैं स्वंय जाप कर लूंगीं। खैर बूढ़े ने नारियल तोड़ा , जोत जलवायी और अपनी जेब से निकाल कर एक शेशे मुझे देने लगा जिसमें कुछ सिंदूर , एक रूपया और चुनरी का एक निहायत छोटा सा पीस था। कहने लगा ये मां के राज्याभिषेक का वस्त्र है आपके घर में खुशहाली आयेगी आप राज करोगे हर मनोकामना पूरी होगी। इसके लिए 1100 रूपए दिजिए। अब मुझे उस युवक के निरंतर ये बताने का अर्थ समझ आ गया कि बार बार राज्याभिषेक की बात क्यों कर रहा था। मैनें वो शेशे बूढे को तुरंत वापस कर दिया कहा--' मुझे नहीं चाहिए आप रख लें।' दोनों को ऐसी उम्मीद नहीं थी पहले तो मैनें मंत्र स्वयं पढ़ लिया दूसरे उनका शेशे वापस कर दिया। अब वो थोड़ा सकपका गए लेकिन बोले कि अरे मैडम ये हमें थोड़ा ना दे रही हैं देवी मां को दे ऱही हैं। अब मैनें थोड़ा कड़क हो कर कहा--' जितने दे रही हूं उतने पैसे ले लो वरना जाने दो '। मैनें बूढ़े को सौ रूपए दिए बूढ़े ने चुपचाप लिए और खिसक गया। वीएन दास जी को उन्होने जान बूझ कर अलग खड़ा रखा था शायद वो समझते हैं कि महिलाओं को फुसलाना आसान होता है।
मैनें उस युवक को डांटा कि-- क्या तुम्हारा नेटवर्क चलता है ?
नहीं नहीं दीदी कैसी बात कर रही हो मैं तो इन्हें जानता भी नहीं बस जो सामने आ जाए उसी से पूजा करा देता हूं।
खैर.. मैं उसका खेल समझ गयी थी। अब वो हमें बाहर उसी दुकान पर लाया जहां उसका साथी हमें फंसा कर लाया था। मैनें 21 रूपए निकाले उसे देने के लिए क्योंकि इतने में ही तय हुआ था। अब तो वो फैल गया इतने में क्या होता है 200 रूपए तो मैं बाहर गेट पर प्रति दर्शानर्थी देता। मैनें पचास रूपए निकाले उसे दिए उसने मुझे वापस कर दिए। मैनें कहा ठीक है लाओ दो लेने हैं तो ले वरना छोड़ दो। अब वो बदतमीजी पर उतर आया। मैनें प्रसाद वापस मांगा क्योंकि टोकरी उसीके पास थी तो बोला उनसे लो मैने देखा एक महिला हाथ में प्रसाद की थैली लिए खड़ी थी। वो भी पैसे मांगने लगी 500 रूपए दो। अब तो मुझे बहुत गुस्सा आया अब पूरे रैकेट का नया किरदार कौन है मैंने सोचा और उससे पूछा--' क्यों अब ये कौन है तुम ले गए थे या ये ले गयी थी मुझे नहीं चाहिए प्रसाद रखो अपने पास '। अब अच्छा खासा तमाशा बनता जा रहा था। इतना ही नहीं कोलकाता के भिखारी भीख भी धौंस के साथ मांगते हैं और फिर लड़ाई भी करते हैं। भिखारियों का एक पूरा झुंड पीछे पीछे चलता है। सबने कहा दाल भात के लिए पैसे दो। मैनें कहा कुछ खा लो मैं खिला देती हूं। मैने रस के बड़े पैकेट लिए और बांटने शुरू किए उनमें से कुछ विद्रोह पर उतर आए बिल्कुल माकपा कार्यकर्ताओं के जैसे तेवर थे। एक भिखारी मुझे हड़काता रहा मैनें उसे रस दिए तो उसने मुझे वापस कर दिए मैनें उससे लेकर दूसरी भिखारिन को दे दिए। लेकिन वो वहीं खड़ा रहा। जब उसने देखा कि मैं सचमुच उसे कुछ नहीं देने वाली तो वो आगे आया मुझे भी दो। 'तुम्हें तो चाहिए ही नहीं फिर क्यों दूं ?" उसने कहा पूरी थैली मुझे दे दो यानि जितने बचे हैं वो सब चाहिएं। उसने लगभग मेरे हाथ से छीन लिए। जैसे तैसे पीछा छुड़ाकर टैक्सी पकड़ी। वीएन दास जी और मैं आपस में बात कर रहे थे तो टैक्सी वाला बोला अरे दीदी काली मां के दर्शन करना बाहर के लोगों के लिए दूभर हो गया है। स्थानीय लोग तो इनकी पकड़ में आते नहीं। उसने बताया पिछले दिनों दिल्ली का एक अमीर सेठ आया था इन्होने उसका पर्स , चेन , मोबाइल सब छीन लिया उसने पुलिस को रिपोर्ट लिखाई तब कहीं जाकर उसका सामान वापस मिला । अब आप ही बताएं कि जिस शक्ति पीठ पर इंसान मन में गहरी आस्था ले कर जाता है और वहां दलालों का पूरा नेटवर्क चल रहा हो तो दिल कैसा हो जाता है। अपने धर्म स्थानों की शुचिता और पवित्रता बनायी रखनी है तो ऐसे नेटवर्क खत्म होना ज़रूरी है। मंदिर प्रबंधन और पुलिस ही कारगर कदम उठा सकती है।
सभी ब्लॉगर साथियों को नमस्कार ,
नव संवत्सर और नवरात्र की शुभ कामनाएं बहुत दिन से ब्लॉग पर जाने का समय ही नहीं मिला।
आप सबकी होली की शुभकामनाओं का जवाब नहीं दे पायी आप सब से क्षमा चाहती हूं।
मैं चैतन्य महाप्रभु की जन्म स्थली और इस्कॉन के हेडक्वार्टर मायापुर गयी थी। वहां से आकर स्टोरी बनाने में व्यस्त रही। मायापुर पर विस्तृत रिपोर्ट बाद में पहले एक अनुभव काली देवी के दर्शन के समय का।
कोलकाता के काली घाट पर जैसे ही हमारी टैक्सी रूकी माथे पर तिलक लगाए बहुत से युवा हमारा तरफ लपके। हम आपको काली मां के दर्शन करायेंगें। नहीं हम स्वयं दर्शन कर लेंगें आपकी ज़रूरत नहीं है। मैनें उनसे पल्ला छुड़ाना चाहा। नहीं दीदी केवल 21 रूपए दिजिए। मुझे मेरी सहयोगी सीमा पहले ही अलर्ट कर चुकी थी कि काली मां के दर्शन करने जाओ तो किसी दलाल के चक्कर में मत पड़ना। सीमा ने मुझसे एक दिन पहले दर्शन किए थे और वो इनके जाल में फसंने की पूरी कहानी मुझे सुना कर सचेत कर चुकी थी। मैनें कहा बिल्कुल नहीं अब 21 रूपए कि बात कर फिर ज्यादा मांगोगे। नहीं दीदी काली मां की कसम। अच्छा ठीक है चलो। उनमें से एक हमें एक प्रसाद की दुकान पर ले गया बोला चप्पल जूता यहीं उतार दिजिए और प्रसाद और चढ़ावे की टोकरी भी लगे हाथ ले आया। अब उसने हमें एक दूसरे युवक के हवाले कर दिया कि आपको ये दर्शन करायेगा। मेरे साथ इस्कॉन के राष्ट्रीय संपर्क निदेशक वीएन दास थे ।
मैनें उस युवक को डांटा कि-- क्या तुम्हारा नेटवर्क चलता है ?
नहीं नहीं दीदी कैसी बात कर रही हो मैं तो इन्हें जानता भी नहीं बस जो सामने आ जाए उसी से पूजा करा देता हूं।
खैर.. मैं उसका खेल समझ गयी थी। अब वो हमें बाहर उसी दुकान पर लाया जहां उसका साथी हमें फंसा कर लाया था। मैनें 21 रूपए निकाले उसे देने के लिए क्योंकि इतने में ही तय हुआ था। अब तो वो फैल गया इतने में क्या होता है 200 रूपए तो मैं बाहर गेट पर प्रति दर्शानर्थी देता। मैनें पचास रूपए निकाले उसे दिए उसने मुझे वापस कर दिए। मैनें कहा ठीक है लाओ दो लेने हैं तो ले वरना छोड़ दो। अब वो बदतमीजी पर उतर आया। मैनें प्रसाद वापस मांगा क्योंकि टोकरी उसीके पास थी तो बोला उनसे लो मैने देखा एक महिला हाथ में प्रसाद की थैली लिए खड़ी थी। वो भी पैसे मांगने लगी 500 रूपए दो। अब तो मुझे बहुत गुस्सा आया अब पूरे रैकेट का नया किरदार कौन है मैंने सोचा और उससे पूछा--' क्यों अब ये कौन है तुम ले गए थे या ये ले गयी थी मुझे नहीं चाहिए प्रसाद रखो अपने पास '। अब अच्छा खासा तमाशा बनता जा रहा था।
मैनें धमकी दी कि मुंह पर दो थप्पड दूंगी और पुलिस को बुला रही हूं। अब जिसकी दुकान थी वो समझ गया कि मामला बिगड़ सकता है । उसने बिहारी युवक को डांट लगायी। अब वो भी सामने आ गया जो हमें फंसा कर लाया था। मैनें उससे कहा ये क्या तमाशा है। खैर किसी तरह सौ रूपए में उनसे पीछा छूटा। लेकिन मां काली के दर्शन कराने वाले दलालों का एक बड़ा नेटवर्क हैं। पूरी कहानी से आप भी समझ गए होंगें कि दुकानदारों , पुजारियों और दलालों का एक बड़ा नेट वर्क है काली मंदिर के बाहर।
यहां तो पुलिस चौकी है फिर पुलिस दर्शन करने वालों की मदद क्यों नहीं करती? टैक्सी वाला स्थानीय बंगाली था। उसने कहा --- सब तो बांग्लादेशी है दलालों से मिले हुए हैं। इन सबको ज्योति दा ने भर्ती किया क्योंकि वो स्वयं भी प्रवासी बंगाली है। उसके कहने का शायद ये अर्थ था कि विभाजन के समय बांग्लादेश से आए बंगालियों को ही ज्योति दा ने थोक के भाव नौकरी दी।
जहां श्राईन बोर्ड जैसी कु्छ अच्छी संस्थायें काम कर रही हैं, उनको छोड कर भारत के लगभग हर धर्मस्थल पर अब ऐसा ही नजारा देखने को मिल रहा है।
जवाब देंहटाएंप्रणाम
सर्जना जी, बहुत दिनों बाद आपकी पोस्ट पढने का मिली। यह ही इस देश का दुर्भाग्य है कि धर्म और आस्था के नाम पर हम लुट रहे हैं। कमोबेश ऐसी स्थिति सब जगह है। मुझे आजतक समझ नहीं आया कि हम भिखारी क्यों बनते जा रहे हैं? हम कर्म में विश्वास क्यों नही कर रहे हैं? क्यों दर-दर जाकर इन आस्था के केन्द्रों पर इन पण्डों से लुट रहे हैं? मेरी पूर्ण आस्था प्रभु के प्रति है लेकिन उतनी ही दृढ़ आस्था कर्म के प्रति भी है। इसलिए केवल कर्म करने में विश्वास रखती हूँ, कभी मन्दिर में जाती हूँ तो उस प्रभु को केवल अपनी श्रद्धा व्यक्त करने, बस। ना प्रसाद और ना कोई पूजा। अभी शिरडी जाना हुआ था वहाँ भी ऐसा ही नाटक था। जगन्नाथपुरी में भी ऐसी ही लूट है। इसलिए आस्था के केन्द्रों पर जब लूटेरे बैठ गए हैं तब वहाँ आस्था कैसे रहे?
जवाब देंहटाएंयह तो बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है।
जवाब देंहटाएंबिलकुल सही लिखा आपने ,,,
जवाब देंहटाएंदेवस्थानों पर इस तरह के दलाल लुटेरों की वजह से बड़ी तकलीफ होती है , प्रशासन को अवश्य कार्यवाही करनी चाहिए |
काली मन्दिर का मुझे भी व्यक्तिगत अनुभव है.बहुत दुःख होता है और गुस्सा भी आता है कि किस प्रकार आज हमारे सभी प्रसिद्द मन्दिर एक आस्था का व्यापार स्थल बन चुके हैं. हरेक जगह पंडे/पुजारी किस तरह लूटने की कोशिश करते हैं यह देख कर शर्म आती है. गौहाटी का कामाख्या देवी का मन्दिर मैंने इस सम्बन्ध में एक अपवाद पाया, जहां पुजारी ने श्रद्धा से पूजा कराई और दक्षिणा के लिये कोई झगडा नहीं किया. कह नहीं सकता कि यह स्तिथि वहाँ पर आज भी है या नहीं. बाकी सभी मन्दिर लूट के स्थान बने हुए हैं.
जवाब देंहटाएंहमारी श्रदा का ही ये सब पंडे ,दलाल या भिखारी नाजायज फायदा उठाने की कोशिश करते है.प्रशासन को इसकी कोई चिंता नहीं है.जब बहुत से लोग खुद लुटने को तैयार है तो लूटने वालो का हज्जुम भी तैयार हो ही जाता है.
जवाब देंहटाएंबहुत अच्छा संस्मरण प्रस्तुत किया आपने.
अब मेरी दो पोस्ट 'बिनु सत्संग बिबेक न होई' और 'वन्दे वाणी विनयाकौ' आपका बेसब्री से इंतजार कर रहीं हैं.आशा है आप जरूर आएँगी.
अन्ना हजारे जिस का प्रतिरोध कर रहे हैं, वो यही सब हैं मतलब उसी भ्रष्टाचार की फैली शाखाएं हैं, जो लोगों की आस्था और विश्वास का खून पी पीकर पोषित हो रही हैं। इसके प्रति रोष भी कामयाब नहीं हो रहा है क्योंकि कानून की व्यवस्था में नून पड़ गया है। पुलिस वाले अपने शिकार की तलाश में, दलाल अपने शिकार की तलाश में - अब जब सब ही शिकार नजर आयेंगे तो .... शिकार ही होगा न, उसमें बेगुनाह ही फांसा जाएगा। इनसे बचने का रास्ता वहां जाना बंद करके ही होगा। कर्म ही पूजा और मन की भावना ही बने भगवान, यही हो सकता है इन बुराईयों से बचने का समाधान।
जवाब देंहटाएंमाफ़ कीजियेगा ...दोषी आप खुद हैं , आस्था के प्रवाह में बहती हुई आप खुद ही इन गुंडों को पैसे बांटने की दोषी हैं ! क्या इस प्रकार दिया हुआ धन, आस्था का मज़ाक उड़ाने के काम नहीं आ रहा ! मैं बरसों से मंदिर नहीं जाता उसके पीछे यही वजह है ! यही पैसे वृद्धाश्रम अथवा किसी अपाहिज के काम आते तो सार्थक पूजा मानी जाती !
जवाब देंहटाएंहार्दिक शुभकामनायें आपको !
प्रिय सर्जना जी, इतना उद्बोधक व अर्थपूर्ण लेखन प्रस्तुति हेतु हार्दिक अभिनन्दन व आभार । दुर्भाग्यवश हमारे अधिकांश धर्मस्थान ऐसे ही अराजक तत्वों व बिचौलिए-दलालों के चंगुल में फँसे पडे हैं, और उनके कारण धर्म-भीरु दर्शनार्थियों को बडी मुश्किलों का सामना करना पडता है । मेरा स्वयं का कुछ ऐसा ही अनुभव जगन्नाथपुरी जैसे हमारे अति महत्वपूर्ण मन्दिर में हुआ था । ईश्वर से यही कामना है , स्थिति में सुधार हो .
जवाब देंहटाएंमन चाणन ते जग चाणन...
जवाब देंहटाएंश्रद्धा मन में होती है मठों में नहीं...
जय हिंद...
काली मंदिर में कुछ सालो पहले मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ था हमारा तो रास्ता ही रोक लिया था एक पंडे ने |लगभग सभी स्थानों हरिद्वार ,में गंगा आरती में ,मथुराजी में सब जगह अलग मान्यताये बतलाकर हमारी अस्थाव का शोषण किया जाता है |ये तो मन्दिर है कोई भी प्रवचन में दान की इतनी महिमा बतायेगे की भक्त अपने गहने तक उतार देते है |\और बड़े बड़े आधुनिक भगवानो के आश्रमों में क्या बिना पैसे के जाया जाता है ?
जवाब देंहटाएंमन चंगा तो कठौति में गंगा ।
जवाब देंहटाएंबाकि तो सभी जगह यही हाल है जितना बडा दर्शन नाम उतना ही बडा लूट-खसौट का ये नेटवर्क करीब-करीब हर कहीं अलग अलग रुपों व तौर तरीकों में देखा जा सकता है ।
सचमुच दुख होता है यह सब देखकर।
जवाब देंहटाएं............
ब्लॉगिंग को प्रोत्साहन चाहिए?
एच.आई.वी. और एंटीबायोटिक में कौन अधिक खतरनाक?
You are absolutely correct.
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