मंगलवार, जनवरी 4

क्या मैं सच में आत्मा से मिली थी...सर्जना शर्मा

मेरे सभी ब्लॉगर साथियों को नववर्ष की हार्दिक शुभकामनाएं  । मैं अपने उन सभी नए ब्लागर मित्रों से पहले तो क्षमा मांगनी चाहूंगी कि उन्होने रसबतिया को हाथों हाथ लिया और मेरी  हौसला अफजाई की लेकिन मैं धन्यवाद भी नहीं दे पायी कईं कारणों से व्यस्त रही । मैं आप सबको व्यक्तिगत रूप से मेल लिखूंगीं और आप सबको अच्छे से जानने की कोशिश करूंगी ।आपने तो मेरे सहयोगी खुशदीप जी के माध्यम से मुझे जाना और अपना स्नेह दिया । लेकिन यकीन मानिए आपके स्नेह ने मेरा उत्साह बहुत बढ़ाया है । दिसंबर में एक साथ चार पोस्ट लिखने के बाद मैं कुछ लिख ही नहीं पायी । आज अपनी मौसेरी बहन पर लिखा है । जैसा कि मैनें अपने परिचय में भी  कहा है कुछ दिल की कुछ जग की। आज मैनें अपने दिल की पोस्ट लिखी है । पिछले एक महीने से मैं अपनी इन्हीं मौसेरी  बहन को लेकर मानसिक रूप से बहुत परेशान थी। अब उनकी आत्मा देह  से मुक्त हो गयी है । उन पर लिखा  शायद आपको पसंद आए। पढ़ कर अपनी राय ज़रूर दें, शायद आप मेरे दुख को साझा कर सकें । आपकी राय का मुझे इंतज़ार रहेगा ।


वेदों उपनिषदों में , धार्मिक ग्रंथों में  हम पढ़ते आए हैं , ऋषि मुनियों से सुनते आए हैं कि आत्मा बहुत सुंदर होती है , दिव्य होती है । ये आत्मा ही है जो परमात्मा से मिलवाती है । हाड़ मांस की काया के भीतर आत्मा ही है जो हमें सही और गलत का ज्ञान कराती है । आप सब सोच रहे होंगें मैं कोई धार्मिक प्रवचन दे रही हूं । लेकिन ये प्रवचन नहीं मेरा आत्मा संबंधी एक अनुभव है, जो मैंने हाल ही में 29 दिसंबर को  किया । अब तक आत्मा संबंधी मेरा किताबी ज्ञान ही था लेकिन आत्मा सचमुच सुंदर होती है। और आत्मा का आत्मा से संबंध होता है, ये मैनें स्वयं अनुभव किया ।

मेरी मौसेरी बहन सरोज जो हमेशा मेरी सगी बहन से भी बढ़ कर थी मेरे लिए । बचपन की उनकी जो यादें मेरे मन मैं हैं । वो रात को मुझे और मेरी छोटी बहन को अपने पास सुलाती थी कहानियां सुनाती । उन्हें बचपन में पोलियो हो गया था। मेरी मां उन्हें सहारनपुर से अपने पास पंचकूला ले आयी थीं । पास ही के साकेत विकंलाग संस्थान में उनका इलाज चलता था । और अगर कभी  मेरे मौसा जी जिन्हें हम पिता जी कहते थे उन्हें आकर ले जाते तो मैं उनके बिना बीमार पड़ जाती और चार के दिन भीतर उन्हें छोड़ने आना पड़ता । मैं सात या आठ साल की रही होंगी कि उनकी शादी हो गयी । उनका गोल सुंदर चेहरा , गोरा रंग मेरे जेहन में आज भी ताज़ा है । उनकी शादी के बाद सब खुश थे कि चलो अच्छा घर मिल गया और शादी हो गयी । सरोज बहन जी मेरी सबसे बड़ी मौसी की बेटी थी । और मेरी मां चारों बहनों में सबसे छोटी । लेकिन जल्द ही सब की खुशी मायूसी में बदल गयी, पता चला कि उनके पति काफी धूर्त किस्म के व्यक्ति थे । एक दिन उन्होनें मेरा बहन को कुछ गोलियां खाने को दीं लेकिन मेरी बहन ने अपने पास रख लीं और कहा बाद मैं खा लूंगी । उसी दिन पता नहीं क्यों मेरे मौसा जी को लगा कि सरोज के साथ कुछ अप्रिय होने वाला है और वो अपने दफ्तर से ही उनकी ससुराल चले गए। बहन जी ने मौसा जी को वो गोलियां दिखायीं तो मौसा जी ने गोलियां अपनी जेब में डाल लीं और बहन जी से कहा कि अपना सामान पैक कर लो और ससुराल वालों से ये कह कर उन्हें ले आए कि इसकी मां की तबियत खराब है, वो इससे मिलना चाहती है । और उसके बाद बहन जी कभी  अपनी ससुराल नहीं गयी । क्योंकि वो ज़हर की गोलियां थी । शायद ये एक पिता के दिल की आवाज़ थी जो उस दिन उन्हें बेटी के ससुराल ले गयी। अगर वो उस  दिन ना जाते तो ना जाने क्या  अनर्थ  हो जाता । मौसा जी ने ना अपना सामान वापस मांगा, ना कोई रिपोर्ट लिखाई । उन्हें बस इसी बात की खुशी थी कि उनकी बेटी की जान बच गयी। पंचायतऔर बिरादरी बुला कर रिश्ता हमेशा हमेशा के लिए तोड़ दिया गया । हम उस समय बहुत छोटे थे लेकिन बड़ों की कुछ कुछ बातें सुनते और बाद में जब बड़े हुए तो पूरे किस्से समझ आए ।

सरोज बहन जी भी चार बहनें हैं। उनके भी कोई भाई नहीं है। लेकिन चारों और दो हम बहनें पिता जी यानि मौसा के दिल के टुकड़े थे, वे हमें बेहद प्यार करते थे । मौसा जी की रिश्तेदारी में एक महिला सरोज बहन जी के लिए दोबारा रिश्ता लायी जो कालका ( हरियाणा में शिमला के रास्ते में है ) के पंजाबी ब्राह्णण परिवार का था लेकिन प्रस्तावित वर राजेंद्र जी विधुर थे । उनकी अपनी चार संतान थीं- एक पुत्र सबसे बड़ा और तीन बेटियां । बहन जी की शादी उनसे हो गयी और बहन जी फिर से हमारे पास ही आ गयीं । राजेंद्र जीजा जी बहुत भले इंसान थे और रेलवे में अच्छे पद पर थे । उनका बड़ा संयुक्त परिवार था और सब एक साथ रहते थे। वो सबसे बड़े थे । उनके तीन भाई जिनमें से दो उस समय शादी शुदा थे। तीन बहनें जिनमें से दो शादी शुदा थीं। माता-पिता भी थे। और उनके  इतने बड़े परिवार में मेरी बहन विमाता बन कर गयीं । आप सोच ही सकते हैं बड़े संयुक्त परिवार में सौतेली मां कि क्या गत रही होगी । मेरी बीजी बहन जी का वो सब करतीं जो कोई भी मां अपनी शादी शुदा बेटी के लिए करती है । त्यौहारों पर हम बहन जी के घर जाते उनकी ससुराल वाले वैसे  बहुत अच्छे थे लेकिन मेरी बहन के लिए राह आसान नहीं थी ये मुझे बचपन में भी अहसास होता था । लेकिन मुंह पर एक शिकन लाए बिना उन्होनें घर की बड़ी बहू और मां के सभी कर्तव्य हंसते हंसते निभाए हांलांकि वो अपनी देवरानियों से उम्र में बहुत छोटी थी । उनके प्रति हमारा. हमारे प्रति उनका स्नेह बहुत ज्यादा रहा । यहां तक कि अपनी सगी बहनों से भी उनका वो रिश्ता नहीं था जो हमारे साथ था । उनकी हर बात में हमारे लिए विशेष स्नेह रहता, शादी ब्याहों में पूरा परिवार एकत्र होता तो उनका पूरा ध्यान मुझ पर और मेरी बहन पर रहता। ये पहनो, बाल ऐसे बनाओ। हमारी पढ़ाई में उनकी विशेष रूचि रहती । वो स्वयं तो बहुत ज्यादा नहीं पढ़ पाई । लेकिन जब मैं और मेरी बहन उच्च शिक्षा लेते गए तो उनकी खुशी का ठिकाना नहीं था । शायद अपने अधूरे अरमानों को वो हमारे भीतर पूरा होते देखती थी ।
                                        
साल बीतते गए देखते देखते बहन जी के भी अपने दो बेटे हो गए और जीजा जी की पहली पत्नी के बच्चों की भी शादियां होती गयीं । हम नौकरी के लिए दिल्ली आ गए उनसे मिलना जुलना कम होता गया लेकिन संपर्क बना रहा । मेरे पापा नहीं रहे तो वो जीजा जी के साथ दिल्ली आयीं और छह महीने बाद जीजा जी भी नहीं रहे । उसके बाद वो बीमार रहने लगीं । दो महीने पहले फोन आया कि सरोज बहन जी को कैसर हो गया है आकर मिल जाओ । जब मैं और मेरी बहन 5 दिसंबर को उन्हें देखने कालका गए तो वो लगभग अचेत अवस्था में थीं । घर में ही बिस्तर पर अचेत पड़ी मेरी प्यारी बहन हड़्डियों का पिंजरा बन चुकीं थीं । नाक में नली लगी थीं । हमने सोचा सो रही है लेकिन हमें बताया गया कि वो कोमा में है । उन्हें इस हालत में देख कर हम दोनों स्तब्ध रह गए । सबने बताया कि कईं दिन से कुछ रिस्पांड नहीं कर रही हैं । मैंने उनका हाथ थामा और उन्हें आवाज़ लगायी- सरोज बहन जी, तो उनकी आंखों से अविरल आंसू बहने लगे । वो देर तक रोती रही हम भी रोते रहे। उनका पूरा परिवार हैरान था  कि आपको ही रिस्पांस दे रही हैं । हमने कहा इन्हें अस्पताल में दाखिल करा दो लेकिन उनके पूरे परिवार का एक ही जवाब था कि डॉक्टरों ने मना कर दिया है कुछ नहीं हो सकता । सरोज बहन जी की हालत देख कर मेरे दिमाग ने काम करना ही बंद कर दिया, उसी दिन कालका से हम दिल्ली लौट आए । दिल्ली आकर मैनें सरोज बहन जी की सगी बहनों को फोन करके उनके हालात के बारे में बताया और कहा कि कालका बात करें। उन्हें अस्पताल में दाखिल कराएं। लेकिन उन्होनें ये कह कर पल्ला झाड़ लिया कि ये उनके घर का मामला है हम क्या करें ।
                                           
हमने उनके सौतले बड़े बेटे जो कि अमीर बिज़नेसमैन है से बात की कि आप अपनी मां को अस्पताल में भर्ती करा दो ।  बहुत कठिनाई से वो माना । मैने चंड़ीगढ़ के 32 सेक्टर के अस्पताल में उनके लिए बेड का इंतज़ाम करवाया। हमारे बचपन की सहेली सुनीता वालिया  ने सारा प्रबंध किया और कहा कि वो बहन जी की देखभाल और इलाज करवा लेगी । क्योंकि सरोज बहन जी से उनका भी लगाव था । लेकिन अगले दिन बहन जी की सौतेली बड़ी बेटी का फोन आ गया कि हमें फोन कर कर के परेशान मत करो, तुम्हे क्या लगता है कि हम इनका इलाज नहीं करवा रहे हैं । हमने बेस्ट इलाज करवा लिया । अब हमारे पास कोई रास्ता नहीं बचा था । सबने हमें समझाया कि अब भगवान पर छोड़ दो । हर समय दिल में उन्हीं का ख्याल रहता लेकिन बेबस थे ।
 29 दिसंबर की रात को मैनें सपने में सरोज बहन जी को देखा वो इतनी सुंदर लग रही थीं जैसी अपनी पहली शादी में। उससे भी कहीं ज्यादा सुंदर चेहरा भरा हुआ, बिल्कुल गोरी चिट्टी और मुखमंडल पर देवी जैसी आभा। चेहरे के चारों तरफ प्रकाश वलय । मैनें उनसे पूछा बहन जी आप टीक हो गयीं। उन्होने कहा हां. लेकिन अब मैं जा रही हूं। ये कह कर उन्होनें मुझे अपने सीने से लगा लिया । और हम दोनों बहुत रोए । पिर वो चलीं गयीं । मेरी आंख खुल गयीं । मैं समझ गयी कि अब उनकी आत्मा शरीर से मुक्त होने वाली है, मन बहुत उदास हो गया । मैनें अपना सपना घर में किसी को नहीं बताया । इकत्तीस दिसंबर मेरे पापा की पांचवी बरसी थी । मेरे पापा ने सफला एकादशी के दिन  देह त्यागी थी । उसी दिन सुबह आठ बजे कालका से फोन आया सरोज बहन जी नहीं रहीं । मेरा सपना सच हो गया । तो क्या 29 दिसंबर की रात को उनकी आत्मा मुझसे मिलने आयी थी । मैं तो यही कहूंगी कि उनकी आत्मा उतनी ही सुंदर थी जितनी वो मन से सुंदर थीं । हड्ड़ियों का पिंजरा बन चुकी बहन जी का वो रूप तो सपने के रूप से बिल्कुल अलग था। वो जाने से पहले अच्छे से मिल कर गयीं । उनकी बुरी खबर मैनें अपनी बीजी  को बतायी तो वो रोने लगीं । हालांकि पता तो था ही कि वो ज्यादा दिन की मेहमान नहीं हैं ।फिर मेरी बीजी ने भी अपना सपना बताया जो उन्हें 30 दिसंबर की रात को आया कि एक गाय के मुंह से एक बहुत सुंदर चिड़िया निकल कर उड़ गयी । मेरी बहन सरोज सचमुच स्वभाव से गाय थीं और वो सुंदर चिड़िया उनकी आत्मा ।

तो क्या उनकी हाड़ मांस की काया ही जीर्णशीर्ण हो गयी थी । काया के भीतर उनकी सुंदर आत्मा का वास था जो 29 दिसंबर की रात को मुझ से मिलने आयी थी । और उन्होने देह त्यागने का दिन वही चुना जो मेरे पापा और उनके मौसा जी ने चुना था । सनातन धर्म में माना जाता है कि एकादशी के दिन बैकुंठ के कपाट खुले होते हैं     और आत्मा सीधे विष्णु जी के चरणों में जाती हैं जहां मोक्ष मिल जाता है । अगर ये सच है तो मेरी विष्णु जी ये यही प्रार्थना है कि वो मेरी भोली भाली त्यागमयी करूणामयी बहन को मोक्ष  दे दें । फिर उनका धरती पर जन्म ना हो, क्योंकि इस जन्म में उन्होनें जितनी तकलीफें उठायीं, दुख भोगा, उन्हें फिर कभी ना भोगना  पड़े।                    

15 टिप्‍पणियां:

  1. जबरदस्त संस्मरण...

    सरोज जी की आत्मा को भगवान विष्णु अपने चरणों में अवश्य स्थान दे चुके होंगे...

    जय हिंद...

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  2. जब कोई दिल के इतना करीब हो और हमारा ध्यान हर पल उसकी तरफ हो तो सपने मे आना कोई बडी बात नही अक्सर कई बार हमे आने वाले समय मे क्या होने वाला है इसकी आहट मन से मिल जाती है। भगवान आपकी बहन की आत्मा को शान्ति दे। उसकी आत्मा को पुकार कर उसके मोक्ष मे अडचन मत डालें। साहस से काम लें। शुभकामनायें।

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  3. निर्मला दी ने सही कहा है ……………उनसे सहमत हूँ ऐसा भी होता है जहाँ ज्यादा लगाव होता है।भगवान आपकी बहन की आत्मा को शान्ति दे।

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  4. आत्मा सचमुच में सुन्दर ही होती हैं ।

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  5. aisa anubhaw hota hai... ise bhejen rasprabha@gmail.com per parichay tasweer aur blog link ke saath vatvriksh ke liye

    http://urvija.parikalpnaa.com/

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  6. jisse man mila ho uski aatma se milna hosakta hai aisa hota hai aur hua bhi hoga.aapke anubhav bhare is aalekh ne hridya dravit kar diya.mere blog kaushal par bhi aapka swagat hai..

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  7. आपकी अनुभूतियां दिल को छू गयीं ..ईश्वर आपकी बहन की आत्मा को मुक्ति दे ..

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  8. सही है गहराई से जुडाव को ही तो आत्मिक जुडाव कहते हैं वही टेली्पेथी, स्वप्न दर्शन , पोज़िटिव कल्पना, आत्मा से साक्षात्कार के रूप में द्रश्य होती है....

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  9. bahut bhavpoorn aalekh.mere blog vicharon ka chabootra,vikhyat par bhi aayen....

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  10. आप सबने मेरे संतप्त मन को जो तसल्ली दी उसके लिए मैं दिल से आपकी आभारी हूं । अब मुझे लग रहा है दिल की बात कहने का मंच हम सब बना ही लेंगें ।

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  11. यह भी उन रहस्यों में से एक है जिसका उत्तर विज्ञान अभी तक नहीं पा सका है।

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  12. Bhagwan Krisana says in 'Bhagwadgeeta'
    "Mumavansho jeevloke jeevbhoota sanatana,
    Manashasthani indrayani prkiritisthani karshti".
    Means: is shareer me ye sanatan jeevaatma mera hi ansh hai aur wahi prakrti me man sahit pancho indrio ko aakarsan karta hai.
    Jab bhagwan khud sat-chit-anand hai to unka ansh bhi sat-chit-anand swaroop hoga hi.Ye to man aur indrio ke prakriti ki malinta me lipt
    hone ke karan hi malinsa dikhta hai,varna nirmal
    hirdey ko to aatma ki sundarta ka ahsas hota hi
    rehata hai.Aapke nirmal hirdey me sundarta ke darshan hue yeh bade harsh ki baat hai.Bhagwan ne Geeta me yeh bhi kaha hai ki 'Utkramantam isthitam vaapi bhunjjanm va gudanvitam,vimooda na-anupashyanti pashyanti gyanchkshush' means:
    shareer ko chodkar jate huye ko athwa shareer me isthit hue ko athwa vishyo ko bhogte hue ko is prakar teeno guno se yukt hua ko agyanijan nahi jante,parantu viveksheel gyanijan hi gyan ki aankho se jaan pate hai.
    Aapka itna samey liya iska khed hai lakin raha nahi gaya aapke anubhavo ko padhne ke baad.

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  13. राकेश जी ,
    इतनी अद्भुत व्याख्या , आपने मेरे अनुभव को श्रीमद्भगवत गीता और भगवान कृष्ण से जोड़ आपने जो विश्लेषण किया है उससे मुझे एक नयी जानकारी मिली है । ये तो पता नहीं कि मेरी आत्मा निर्मल है या नहीं लेकिन मुझे बस इसी बात का संतोष है कि देह त्यागने से पहले मेरी बहन मुझ से मिल कर ही परलोक गयीं । आपने इतना समय निकाल कर गहन अध्ययन किया उसके लिए मैं आभारी हूं

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  14. बहुत ही मार्मिक चित्रण..

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