शनिवार, जनवरी 22

रेलवे का दोहरा मानदंड

  सर्जना शर्मा
आमतौर पर आपने देखा  होगा कि हम अपने अमीर दोस्तों और रिश्तेदारों की खातिर तव्वजो को लेकर बहुत सचेत होते हैं। अपने   मेहमान की आर्थिक  हैसियत के अनुसार उसके लिए ख़ातिरदारी के इंतज़ाम  करते हैं। भारतीय रेलवे भी ऐसा ही करता है ये मुझे पहली बार पता चला ।
जनवरी के दूसरे सप्ताह में एक शादी में लुधियाना गयी तो जाते समय दिल्ली से स्वर्ण शताब्दी पकड़ी ये दिल्ली से अमृतसर तक का रास्ता तय करती है। स्वर्ण शताब्दी में लगभग सात साल बाद सफर कर रही थी  इस ट्रेन का तो कायाकल्प ही हो गया है। कालका और देहरादून शताब्दी में तो अकसर आना जाना होता रहता है। लेकिन स्वर्ण शताब्दी में कहीं ज्यादा सुविधाएं , कहीं ज्यादा सफाई है।
  लालू यादव जब रेल मंत्री थे तो उन्होनें रेलवे का फायदा दिखाने के लिए शताब्दी ट्रेनों और अन्य ट्रेनों के एसी कोच  की बहुत सी सुविधाएं छीन ली थीं और सीटें ऐसी कि जैसे आम कोच की । खैर बात मुद्दे की, स्वर्ण शताब्दी में क्योंकि पंजाब के ज्यादातर एन आरआई या विदेशों में बसे भारतीय सफर करते हैं इसलिए इसके रखरखाव और सफाई  पर कुछ ज्यादा ही ध्यान दिया गया है। ट्रेन का फर्श बहुत बढ़िया बना रखा है । बाथरूम ऐसे कि जैसे किसी अच्छे होटल के हों । लिक्विड सोप डिस्पेंसर , टिस्शू पेपर     डिस्पेंसर जो कि कालका , देहरादून और भोपाल शताब्दी में देखने को भी  नहीं मिलता । कईं बार तो शीशी में लिक्विड सोप होती ही नहीं और टिस्शू होने का तो सवाल ही नहीं।
  बाथरूम एकदम साफ  चकाचक  और वर्दी पहने सफाई कर्मचारी मुस्तैद खड़े रहते हैं। क्योंकि बाथरूम का फर्श गीला है या सीट गीली है या पूरी सफाई नहीं है तो इस ट्रेन में सफर करने वाले अप्रवासी भारतीय अंदर जाते ही नहीं। और केवल एक बार कहने पर ही सफाई कर्मचारी झट से आकर सफाई कर देते हैं। जबकि  अन्य़. शताब्दी ट्रेन  में ऐसा नहीं होता। कई बार तो इतनी गंदगी होती है कि इंसान बाथरूम की स्थिति देख कर ही लौट आता है। किराया तो भारतीय रेलवे सभी शताब्दियों में ही बराबर लेता है फिर स्वर्ण शताब्दी जैसी सुविधाएं बाकी शताब्दियों में क्यों नहीं ? जब ये सुविधाएं अप्रवासी भारतीयों को दी जा सकती हैं तो  भारतीयों  को क्यों नहीं ?              
  इस ट्रेन  में खाना परोसने वाले बेयरे बहुत साफ सुथरे और चुस्त दुरूस्त थे जबकि बाकी शताब्दियों में सब बेयरे इतने साफ सुथरे नहीं होते। एक बार भोपाल शताब्दी से ग्वालियर गई तो खाना परोसने वालों को देख कर अजीब सा अनुभव हुआ । इसमें सफेद सलवार और काली अचकन ड्रैस है। ज्यादातर की सफेद सलवार मैली कुचैली और मुड़ी तुड़ी थी। कईयों ने शेव ही नहीं बना रखी थी ,बिखरे बिखरे बाल,  देख कर लग रहा था कि सो कर उठ कर सीधे चले आएं हैं , मुंह तक नहीं धोया। उन्हें देख कर उनके हाथ का कुछ खाने को मन ही नहीं किया । तो क्या भारतीय रेलवे इन शताब्दियों  की तरफ ध्यान ही नहीं देता है। अगर स्वर्ण शताब्दी में  इतनी सफाई इतनी सुविधाएं हो सकती हैं तो बाकी शताब्दियों में क्यों नहीं ?
   अब बाकी ट्रेनों के एसी कोच का हाल भी जान लिजिए लुधियाना से वापसी में मैनें शाने--ए पंजाब ट्रेन ली। ये ट्रेन भी अमृतसर से नयी दिल्ली तक चलती है। इसके एसी कोच का हाल बदहाल है सीटें मैली कुचौली । ना जाने कब से सफाई  नहीं हुई है।  ज्यादातर सीटें  टूटी पड़ी हैं। बाथरूम आम कोच के डिब्बे से बदतर, ना सफाई ना हाथ धोने को साबुन। रेलवे को भी पता है वो सुविधाएं दें या ना दें उनकी कोच तो फुल जायेंगी ही। फुल ही नहीं वेट लिस्ट भी  लंबी चौड़ी रहेगी। इसलिए बेचारे इंडियन की मजबूरी है और नॉन रेज़िडेंट इंडियन क्योंकि विदेश से आया है उसे कोई तकलीफ नहीं होनी चाहिए। इंडियन को आदत पड़ी रहती है सब कुछ झेलने की।
 रेलवे के ये दोहरे मापदंड क्यों?  इसका जवाब तो भारतीय रेलवे के अफसरों के अलावा कोई नहीं दे सकता। आप में से किसी के पास इसका जवाब हो तो कृप्या ज़रूर बताएं ?
        

16 टिप्‍पणियां:

  1. सर्जना जी ऐसा नहीं है, कोई भी नया प्रयोग सीमित स्वरूप में ही होता है। एक ट्रेन कई सौ करोड़ की होती है, उसे एक साथ सभी जगह चला पाना कठिन होता है। परिवर्धन की प्रक्रिया सतत है, अन्तर दिखना स्वाभाविक है।

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  2. ghar ki murgi daal brabar -shayad railway is ka hi anusaran kar raha hai ya mehmaan bhagvan hota hai ka .

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  3. शताब्दी में सफ़र करना अभी तो अपने लिए सपने जैसा है.
    लेकिन आपका लेख पढ़कर इतना ज़रूर कह सकता हूँ की भेद भाव तो हमारे दैनिक जीवन का अंग बन चुका है.किसी न किसी रूप में सभी इसका शिकार हो रहे हैं.शायद भारतीय रेलवे भी इसी परम्परा का निर्वाह कर रही है.

    सादर
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    मैं नेता हूँ

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  4. serjana ji ,
    ye to sach hai ki hamari sarkar aur bharatiya railway iske liye jimmedar hai kintu ye kahkar ham apni jimmedari se muhn nahi mod sakte.ham logo me se kitne hi log aise hain jo apna ghar to khoob saf karte hain kintu bat sarvjanik ho to ham bhi kuda karkat failane se baj nahi aate..

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  5. ये तो खबर है जी.किसी भी चैनल या अखबार की नजर नहीं पड़ी इस पर। पड़ी भी होगी तो यात्रा का आंनंद लेकर भूल गए होंगे। आपकी पैनी निगाह से बच नहीं पाए। आप व्यवस्थागत खामियो पर अपनी पैनी निगाहें गड़ाए रखिए..बहरी हो चुकी सरकारी व्यवस्था पर असर हो ना हो, जनता जागरुक होगी। ये भेदभाव हमारी वर्षो की गुलामी की देन है..पता नहीं कब मुक्त होंगे हम।

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  6. सर्जनाजी,
    मेरा सौभाघ्य. आपकी टिप्पणी जो कहीं देखने में नहीं आती उसका दीदार मेरे ब्लाग 'नजरिया' पर मुझे मझे देखने को मिला । किन्तु "फ्लर्ट करते रहने" का आशय पूरी तरह से मेरे समझ में नहीं आ पाया । यदि आप थोडा विस्तृत रुप से मेरा ज्ञानवर्द्धन करवा सकें तो स्वयं को उलझनमुक्त अवस्था में रखकर पूरा आशय समझ प्रसन्न या उदास हो लूं ।
    अप्रवासी भारतीयों के प्रति रेल विभाग के विशेष सुख-सुविधाओं का नजारा दिखाती आपकी यह पोस्ट जानकारीवर्द्धक लगी ।

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  7. आपके ब्लाग को शायद सेटिंग में जाकर प्रारुपण को सिलेक्ट करते हुए पांचवे नम्बर पर समय क्षेत्र को "(जी एम टी +5.30) भारतीय मानक समय" पर सेट करने की आवश्यकता है । धन्यवाद...

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  8. सर्जनाजी,
    आपकी प्रति टिप्पणी मिल गई धन्यवाद.
    प्रायः फ्लर्ट करने से आशय छेडछाड से ही चलता है, इसलिये बात मेरे सिर से उपर से गुजरती सी लगी कि अब उम्र के 60वें पडाव के करीब पहुँचते-पहुँचते ये कौनसी तोहमत जुडने लगी है ।
    आपकी व्यस्तता तो आपके बताये बगैर भी मेरे समझ में श्री खुशदीपजी द्वारा दिये गये आपके परिचय के माध्यम से जानकारी में रही है । धन्यवाद... शुभकामनाएँ...

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  9. Kash pravin ji ki baat sach ho.
    Aapne Jo anubhaw kiya, usase aapki chinta sahi hai .Ho sakata hai yah pariwartan ki pahali kiran ho.

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  10. चलिए आपके बहाने हम भी सजग रहेंगे।

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    क्‍या आपको मालूम है कि हिन्‍दी के सर्वाधिक चर्चित ब्‍लॉग कौन से हैं?

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  11. रजनीश जी बहुत बहुत धन्यवाद बेहतरीन जानकारी देने के लिए आपने सर्वश्रेष्ठ बल्ॉगरों की जो सूची जारी की है उसे पढ़ कर अच्छा लगा भविष्यमें बी ैसी जानकारियां देते रहिएगा ।

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  12. प्रवीण जी के कहने के बाद कुछ कहने को शेष नहीं रहता कम से कम इस विभागीय मामले में.

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  13. ये भेदभाव हमारी वर्षो की गुलामी की देन है..
    पता नहीं कब मुक्त होंगे हम।

    गणतंत्र दिवस की बहुत-बहुत शुभकामनायें !

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  14. ज्ञान चंद जी अगर ये परिवरतन की पहली किरण है तो निश्चित रूप से सुधारों का उजाला भी होगा आसा तो यही है धन्यवाद

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  15. ये भेदभाव हमारी वर्षो की गुलामी की देन है पोस्ट जानकारीवर्द्धक लगी ...

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  16. अप्रवासी भारतीयों के प्रति रेल विभाग के विशेष सुख-सुविधाओं का नजारा दिखाती आपकी यह पोस्ट जानकारीवर्द्धक लगी ।

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