अस्पताल के गलियारे में वो मुझे यदा कदा टहलते मिलतीं, छोटा सा कद, भारी भरकम शरीर हम दोनों की नज़रें मिलती लेकिन संवाद कोई नहीं होता. एक सुबह जब मैं नर्सिंग स्टेशन से नर्स को बुला कर लौट रही थीं तो उन्होनें पूछा आपका कौन दाखिल है ? मुलायम, मीठी आवाज़ में आत्मीयता थी । मैंने बताया मेरी मां दाखिल है और उनकी सर्जरी होगी । उन्होनें बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ाया, बोलीं- मेरी भी सर्जरी हुई है । एक हर्निया की और दूसरे यूटरेस निकलवाना पड़ा । बहुत तकलीफ में थी पांच साल से । मैनें पूछा इतनी तकलीफ क्यों बरदाश्त की, पहले क्यों नहीं करा लिया ? कहने लगीं मेरी उम्र ही क्या है केवल 37 साल । मेरी दो बेटियां है सोच रही थी एक बेटा हो जाए लेकिन भगवान ने सुनी ही नहीं । अपनी सोच के अनुसार मैनें उन्हें तसल्ली दी और कहा क्या फर्क पड़ता है, आजकल बेटी हो या बेटा ।
उनकी बड़ी बड़ी आंखों में आंसू भर आए --फर्क क्यों नहीं पड़ता पड़ता है हमारी जाति में तो बेटे की बहुत अहमियत है । मेरे भी चार भाई हैं, मेरे पति तीन भाई हैं, बाकी दो भाइयों के बेटे हैं, मेरी ननदों के भी बेटे हैं. हम बनिए हैं हमारे समाज में बेटा होना ज़रूरी है । समाज को छोड़िए अपनी सोचिए आपको फर्क नहीं पड़ना चाहिए । उनकी आंखों से आंसू बहने लगे मुझे भी फर्क पड़ता है , बहुत फर्क पड़ता है । कल को मेरी बेटियों का क्या होगा उनका तो पीहर ही नहीं रहेगा. आप जानती हैं ताऊ चाचा के बेटे कौन किसी के अपने भाई ही अपने होते हैं । अब मुझे देखो मेरे चार भाईयों से मेरा पीहर हरा भरा है, बार-त्यौहार को मेरे भाई भतीजे आते हैं, मैं अपने मायके जाती हूं । वो दलीलें पर दलीलें देती जा रही थीं । अब मैनें चुप रहने में ही अपनी भलाई समझी उनका मन बहुत आहत था मैं उन्हें और दुखी नहीं करना चाहती थीं उनकी मनस्थिती किसी की बात सुनने की नहीं लग रही थी । शायद वो अपने मन का भार हल्का करना चाह रही थीं, ये सब बातें शायद वो अपनी देवरानी , जेठानी या ननद से नहीं कहना चाहती थीं...
कई बार किसी अपने के सामने अपने दिल की बात कहने में हमें संकोच होता है और किसी बिल्कुल अंजान के सामने हम अपना दिल हल्का कर लेते हैं । फिर वो मेरी मां से मिलने भी आयीं, मेरी मां ने भी उन्हें समझाने की कोशिश की, लेकिन एक बेटा ज़रूर होना चाहिए, इस के पक्ष में उनके पास अकाट्य तर्क थे ।
उनकी सोच के लिेए उन्हें दोषी नहीं ठहराया जा सकता परंपरागत परिवार में पालन पोषण पारंपरिक सोच और बेटे को वंश का वाहक माना जाना इसके कारण हैं। बेटे की मां का रूतबा ससुराल में उस बहु से ज्यादा होता है जिसके केवल बेटियां होती हैं । ससुराल में अपनी स्थिती मज़बूत बनाने के लिेए भी महिलाओं के लिए बेटे सबसे बड़ा माध्यम होते हैं । जिन बेटों के लिए कोख में ही कन्या भ्रूण हत्याएं की जा रही हैं क्या वो सचमुच मां बाप के बुढ़ापे का सहारा बनते हैं । बहनों के लिए मायके के दरवाज़े हमेशा खुले रहते हैं ? अगर इस बारे में सर्वे कराया जाए तो परिणाम उन महिलाओं के लिए निराशाजनक होंगें जो बेटों के लिए अ्काट्य तर्क देती हैं । इसके अनेक उदाहरण आप सबके पास भी होंगें । मैं आपको एक ताजा़ उदाहरण देती हूं।
अस्पताल में मेरी बीजी जिस कमरे में हैं उन्हीं के साथ वाले बेड़ पर एक पंजाबी बुजुर्ग महिला भर्ती हैं । उनके साथ अस्पताल में उनकी सेवा के लिेए ज्यादतर उनकी बेटियां ही रहती हैं । विवाहित और अविवाहित । अपनी मां को बेडपैन देना , उल्टी आदि साफ करना सब बेटियां ही कर रही हैं । जबकि उनके बेटे बहू भी हैं । मैनें उन्हें कईं बार कहते सुना --" जै मेरियां धीयां ना होंदियां ते मेरा की होंदा ।"(अगर मेरी बेटियां ना होतीं तो मेरा क्या होता )
बेटा होने पर बेटियों के लिए मायके के दरबाज़े खुले ही रहेंगें इसकी भी क्या गारंटी है । मेरे बचपन की सहेली है स्कूल के दिनों से एक साथ पढ़े उसकी छोटी बहन मेरी छोटी बहन की सहपाठी थी । पंजाब में उनका बड़ा ज़मींदारा था, आठ गांव के मालिक थे । हम चारों बहनों की तरह रहते । उनके बीब्बी पिता जी हमारे लिए बीब्बी पिता जी और हमारे बीजी पापा जी उनके बीजी पापा जी । उनके दो भाई ,दोनों बहनों से बड़े । दोनों भाइयों की मामूली घरों की लडकियों से इसलिए शादी की गयीं की, कायदे से रहेंगीं । उनके कुछ गांवों की ज़मीन शहर बसाने के लिए एक्वायर की गयी । करोड़ों रूपया मुआवज़ा मिला । पिता जी ने दोनों बेटियों को मुआवज़े में से 30 - 30 लाख रूप दे दिया । बस यहीं से रिश्ते बिगड़ गए , भाभियों ने घोर विरोध किया , भाइयों की क्या हिम्मत की अपनी पत्नियों की बात का विरोध करें । इसी बात को लेकर क्लेश इतना बढ़ा कि बीबी पिता जी को विशाल घर छोड़ कर किराए के मकान में रहना पड़ा । और दोनों बहनों की घर में एंट्रीं बंद ।
ना तीज ना त्यौहार । जब सारे समाज ने थू थू किया तो उन्हें माता पिता को घर वापस लाना पड़ा । क्योंकि पूरे इलाके में पिता जी का सामाजिक रूतबा था । लेकिन बहनों के लिए घर के दरबाज़े बंद हैं । अगर बहनें अपनी पर उतर आतीं और बराबर के हिस्से के लिए अदालत चलीं जातीं तो भाई भाभियों को लेने के देने पड़ जाते। पिर लाख तो क्या करोड़ों से हाथ धोने पड़ते और मौजूदा संपत्ति में बराबर का हिस्सा भी देना प़ड़ता । लेकिन दोनों बहनें अब भी अपने भाइयों को दिल से प्यार करती हैं और कहतीं है जायदाद के लिए कभी अदालत नहीं जाएंगीं । अपने आसपास आप ना जाने कितने ऐसे किस्से रोज़ घटते देखते होंगें लेकिन फिर भी बेटों की चाह कम नहीं होती । हरियाणा में क्या हालत पैदा हो चुके हैं ये तो खबरों में हम और आप पढ़ते ही रहते हैं । दूसरे राज्यों से शादी के लिए लड़कियां खरीद कर लायी जा रही हैं ।
अब भी समाज ने सोच नहीं बदली तो परिणाम भयंकर होंगें । बेटे और बेटियां दोनों ही होंगें तो आबादी का संतुलन बना रहेगा । बेटी ना हो केवल बेटे ही हों ये सोच बदलनी होगी । ये याद रखना है कि बेटे के लिए बहू बन कर किसी दूसरे की बेटी आपके घर में आएगी । और आपकी बेटी किसी के घर दुल्हन बन कर जाएगी । इसलिए कन्या भ्रूण की कोख में ही हत्या ना करें उसे दुनिया का उजाला देखने दें, वो आज आपके घर की रौनक तो कल किसी के धर के आंगन की शोभा बनेगीं ।
सर्जनाजी, हजारों वर्ष की परिवार संस्था में पुत्र ही माता-पिता की देखभाल करता रहा है शायद आज भी। इसी कारण अपने बुढ़ापे को सुरक्षित रखने के लिए पुत्र की चाहना रहती है। लेकिन समाज बदल रहा है, अब पुत्रियां माता-पिता की सेवा कर रही हैं। पुत्री के रूप में पुत्र-वधु ही सेवा करती है। आप और हम जैसे लाखों-करोड़ों लोग इस बदलाव से प्रभावित हैं और पुत्रियों के पक्ष में खड़े हैं। इसका अर्थ यह हुआ कि बदलाव आ रहा है लेकिन हजारों वर्ष की परम्परा कुछ वर्षों में नहीं बदली जा सकती है। बदलाव तीव्रता से हो रहा है इसलिए शायद आगामी कुछ दशकों में ही परिणाम सामने आ जाएगा। बस लेखन और विचार के माध्यम से निरन्तर जागरूकता विकसित करने की आवश्यकता है। अच्छा आलेख बधाई।
जवाब देंहटाएंसंतुलन बना रहे।
जवाब देंहटाएंसटीक उदाहरण दिए हैं ... पुत्र बुढ़ापे का सहारा बनेगा ..यह भ्रम टूट रहा है ..जागरूक करती अच्छी पोस्ट
जवाब देंहटाएंजीवित माता-पिता को, पुत्र रहे दुत्कार।
जवाब देंहटाएंपितृपक्ष में उमड़ता, झूठा श्रृद्धा प्यार।।
सबसे पहले तो आपकी माता जी जल्द से जल्द स्वास्थय लाभ प्राप्त करें।आपने एक सटीक विषय उठाया है और सही बात कही है मगर अभी पूरी तरह से जागरुकता नही आयी है । बेशक पहले से फ़र्क पडा है मगर आज भी हमारा पढा लिखा समाज ही इस चक्रव्यूह मे ज्यादा फ़ंसा है।
जवाब देंहटाएंअच्छा और सामयिक विषय। ये असंतुलन बिल्कुल ठीक नहीं।
जवाब देंहटाएंमाता जी के जल्द स्वस्थ होने के लिए मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं।
Bahut sundar post, Sach ka sath deti post.
जवाब देंहटाएंMy Blog: Life is Just a Life
My Blog: My Clicks
.
सोंच बदलनी पड़ेगी अन्यथा सृष्टि ही बदल जाएगी ! अच्छी पोस्ट
जवाब देंहटाएंये याद रखना है कि बेटे के लिए बहू बन कर किसी दूसरे की बेटी आपके घर में आएगी । और आपकी बेटी किसी के घर दुल्हन बन कर जाएगी । इसलिए कन्या भ्रूण की कोख में ही हत्या ना करें उसे दुनिया का उजाला देखने दें, वो आज आपके घर की रौनक तो कल किसी के धर के आंगन की शोभा बनेगीं ।
जवाब देंहटाएंबहुत ही सार्थक प्रस्तुति है आपकी.
भविष्य से आगाह कराती हुई.
दीपावली व धनतेरस के पावन पर्व की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.
समय मिलने पर मेरे ब्लॉग पर आईयेगा.
बहुत ही सुन्दर सार्थक लेख !
जवाब देंहटाएंके लिए बधाई स्वीकार करें !
मेर ब्लॉग पे आपका हार्दिक स्वागत है!
सदस्य बन रहा हूँ !
ये पब्लिक है सब जानती है फ़िर भी मानती नहीं ना
जवाब देंहटाएंसर्जना जी, आपसे परिचय,विचार और भावों का सुन्दर आदान
जवाब देंहटाएंप्रदान वर्ष २०११ की अति सुखद और महत्वपूर्ण उपलब्धि रही.
आपने अपने सुन्दर और सर्जनात्मक लेखन से ब्लॉग जगत को
रोशन किया है.
नववर्ष की आपको बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.
नूतन वर्ष का नित दिन,नित पल आपके जीवन में सुख,शान्ति
और निर्मल आनन्द का संचार करे,यही दुआ और कामना है मेरी.
✿♥❀♥❁•*¨✿❀❁•*¨✫♥
♥सादर वंदे मातरम् !♥
♥✫¨*•❁❀✿¨*•❁♥❀♥✿
कन्या भ्रूण की कोख में ही हत्या ना करें उसे दुनिया का उजाला देखने दें,
वो आज आपके घर की रौनक तो कल किसी के घर के आंगन की शोभा बनेगीं
बेटी के बिना सृष्टि की कल्पना भी कैसे की जा सकती है ?!
आदरणीया सर्जना शर्मा जी
आपसे सहमत !
संयोगवश मैंने अभी बेटियों पर ही एक और गीत लगा रखा है अपने ब्लॉग पर ।
समय मिलने पर दृष्टि डाल लीजिएगा -
शीतल हवाएं बेटियां
सावन घटाएं बेटियां
हंसती हुई फुलवारियां
कोमल लताएं बेटियां
जो धर्म-ग्रंथों में लिखी
पावन ॠचाएं बेटियां
... वैसे आपको पोस्ट बदले हुए समय हो गया ।
आशा है सपरिवार स्वस्थ-सानंद हैं ।
नव वर्ष की शुभकामनाओं के साथ ही
हार्दिक मंगलकामनाएं …
लोहड़ी एवं मकर संक्रांति के शुभ अवसर के लिए !
... और शुभकामनाएं आने वाले सभी उत्सवों-पर्वों के लिए !!
:)
राजेन्द्र स्वर्णकार
✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿◥◤✿✿◥◤✿